44 % बच्चे अपनी इंटरनेट एक्टिविटी पैरेंट्स से छुपाते हैं
आज की मॉर्डन लाइफस्टाइल में बच्चों को इंटरनेट से दूर रखना या ऐसा सोचना लगभग नामुमकिन सा हो गया। लेकिन इंटरनेट उनके लिए खतरनाक चीजों से भरा पड़ा है। ग्लोबल साइबर सिक्योरिटी कंपनी कस्पेस्र्की लैब्स ने यूरोप के एक लीडिंग चाइल्ड एंड यूथ रिसर्च एजेंसियों आइकॉनकिड्स एंड यूथ और यूरोपियन स्कूलनेट जो ब्रुसेल्स में करीब 30 यूरोपियन शिक्षा मंत्रालयों का एक नेटवर्क है, के साथ मिलकर एक रिसर्च की है, जिसमें पाया गया है कि 44 प्रतिशत बच्चे संभावित रूप से खतरनाक ऑनलाइन एक्टिविटी अपने पैरेंट्स से छुपाते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है बच्चे और पैरेंट्स के बीच में अच्छी बॉन्डिंग न होना। यही वजह है कि बच्चे अपने पैरेंट्स को कुछ भी बताने से जिझकते हैं।
बड़ी उम्र में ज्यादा छुपाते हैं एक्टिविटीज-
रिपोर्ट के मुताबिक बच्चे जितने बड़े होते जाते हैं वो उतना ही छुपाते हैं। इसमें पाया गया है कि 8 से 10 साल की उम्र में 33 फीसदी बच्चे वेबसाइट पर होने वाली बातों को अपने पैरेंट्स को नहीं बताते। लेकिन 14 से 16 की उम्र आते-आते ये आंकड़ा बढ़कर 51 फीसदी हो जाता है। टॉप ऑफेन्डर्स की बात करें तो 12 फीसदी बच्चे अनुचित खेल और फिल्मों के सीन से जुड़े रहते हैं। 14 फीसदी वेबसाइट विजिट को लेकर और 22 फीसदी उनके ऑनलाइन रहने के समय को लेकर होते हें। इसके अलावा 8 फीसदी मना किए गए डिवाइस के इस्तेमाल से जुड़े रहते हैं। 7 फीसदी अनुचित सोशल मीडिया कांटेक्ट और छह फीसदी गलत एप्स को यूज करते हैं। इनके अलावा 5 फीसदी फेक अकाउंट, 5 फीसदी गैरकानूनी डाउनलोड और 5 फीसदी अनुचित डेटा शेयरिंग , 4 फीसदी साइबर बुलिंग और 4 फीसदी खुद बुलिंग के शिकार होने से जुड़े रहते हैं।
यूरोपियन स्कूलनेट के सीनियर एडवाइजर जेनिस रिचर्डसन के अनुसार पैरेंट एजुकेशन बच्चों को ऑनलाइन मीडियम से बचा सकता है। इसके लिए पैरेंट्स को कुछ टिप्स अपनाने होंगे।
– अगर बच्चे को लगे कि उनके पैरेंटस ऑनलाइन होने वाले इशूज को आराम से शांतिपूवर्क बैठकर डिस्कस करेंगे तो हो सकता है कि वो आपसे अपनी एक्टिविटी शेयर करें। इसलिए ये बहुत जरूरी है कि पैरेंट्स ऑनलाइन थ्रेट्स की जानकारी रखें ।
– अपनी तरफ से जितना हो सके साइबर सेफ्टी का इंतजाम करें।
– बच्चे की लाइफ का हिस्सा बनें।
– बच्चों को इस बात का अहसास दिलाएं की चाहे कुछ हो जाए आप उसकी बात सुनने और हेल्प के लिए हमेशा तैयार हैं।
– पैरेंटल केयर और गाइडेंस सिर्फ रियल वल्र्ड तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए क्योंकि आजकल बच्चों का ज्यादातर समय ऑनलाइन ही बीतता है।
– जब पैरेंट्स बच्चों पर नजर रखने में सक्षम न हों, तो ऐसे प्रोग्राम काम आते हैं, जो न सिर्फ हानिकारक वेबसाइट से बच्चों को बचाते बल्कि इसकी जानकारी भी पैरेंट्स को देते हैं।
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