82 साल की चंद्रो तोमर के लिए उनकी उम्र सिर्फ़ एक नंबर है। रिवॉल्वर दादी के नाम से फेमस चंद्रो शूटिंग में 25 नेशनल चैंपियनशिप जीत चुकी हैं और दुनिया की सबसे बुज़ुर्ग शूटर हैं। उनकी सिस्टर इन लॉ प्रकाशी भी काफ़ी अच्छी शूटर हैं और उन्हें विकास मंत्रायल द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है। दोनों को ही ’तोमर दादियों’ के नाम से भी जाना जाता है।
दोनों को शूटिंग का शौक तब चढ़ा जब भारतीय खेल प्राधिकरण ने उनके गांव में शूटिंग रेंज खोली। उस वक्त प्रकाशी की उम्र 60 साल और चंद्रो की उम्र 65 साल थी। चंद्रो ने जब अपनी पोती को जोहरी राइफल क्लब ज्वॉइन करवाया था तब उन्होंने पहली बार राइफल को हाथ में लिया था। राइफल हाथ में लेते ही उन्होंने एक बार में ही टारगेट को शूट करके सबको हैरान कर दिया था। एक पल के लिए तो वे खुद भी हैरान हो गईं थीं लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि उनकी उम्र में भी कोई यदि शूटिंग करता है तो इसमें कोई बुराई नहीं है। उनका मानना है कि कोई भी कुछ भी कर सकता है बस ज़रूरत होती है उसमें ध्यान लगाने की।
वहीं जब प्रकाशी ने शूटिंग शुरु की थी तब गांव में उनका मज़ाक उड़ाया जाता था और कहा जाता था कि ’’बुढ़िया इस उम्र में कारगिल जाएगी।’’ यहां तक कि उनके पति भी उनका मज़ाक उड़ाते थे। लेकिन उन्होंने लोगों की बातों पर ध्यान न देते हुए शूटिंग अभ्यास को जारी रखा।
प्रकाशी और चंद्रो अपने घर में अकेली ही शूटर नहीं हैं। इनकी बेटी से लेकर पोती तक नेशनल और इंटरनेशनल लेवल की शूटर हैं। चंद्रो की बेटी सीमा राइफल और पिस्टल वर्ल्ड कप जीतने वाली पहली इंडियन वुमन है। वहीं उनकी पोती नीतू सोलंकी हंगरी और जर्मनी में हुए इंटरनेशनल लेवल शूटिंग कॉम्पटीशन में हिस्सा ले चुकी हैं।
गृहस्थी के साथ खेतीबाड़ी संभालने वाली प्रकाशी और चंद्रो की अपनी शूटिंग रेंज भी है जहां वे गांव की लड़कियों को शूटिंग की ट्रेनिंग देती हैं। लगभग 25 लड़कियां यहां शूटिंग की ट्रेनिंग लेती हैं।
तोमर दादियों ने इस उम्र में जो कर दिखाया है वह किसी के लिए सपना ही है। अगर हम कुछ सीखना चाहते हैं, कुछ करना चाहते हैं तो हमारा मन और उस काम को करने की इच्छा मजबूत होनी चाहिए। इसके अलावा तोमर दादियों की कहानी हमें ये सिखाती है कि ’सीखने’ की कोई उम्र नहीं होती।
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