विचारधाराएं इस समय नफ़रत का गढ़ बन रही हैं
पूरी दुनिया नफ़रतों की इस तरह शिकार है कि कहने को विश्व युद्ध न हो लेकिन वास्तव में हम विश्व युद्ध के समय में जी रहे हैं। हर तरफ एक गुस्सा है, बेचैनी है, कोफ़्त है, नफ़रत है और इसी का परिणाम है यह हिंसा और युद्ध।
कैसी चली है अबकि हवा तेरे शहर में
बन्दे भी हो गये हैं ख़ुदा तेरे शहर में।
एक शायर का ये शेर कितना मौज़ूं है आजकल। हर तरफ से यही हवा चल रही है और सब अपने आपको भगवान से कम तो समझ ही नहीं रहे। जाने कैसा सैलाब आया है नफ़रतों का कि पूरी दुनिया इसकी गिरफ़्त में दिख रही है। हर जगह एक टकराव, एक जंग की स्थिति बन गयी है। धर्म, जाति और भाषा की तो चल ही रही थी, अब विचारधाराओं की जंग भी इस क़दर जारी है जैसे साक्षात तोपें और मिसाइलें चल रही हैं।
एक दल के लोग दूसरे पर निशाना साधकर कह रहे हैं कि अभिव्यक्ति के अधिकार क्या दूसरे दल के पास ही हैं। अभिव्यक्ति का सबका अधिकार या तो ख़तरे में है या सबको ज़रूरत से ज़्यादा मिल गया है। कोई किसी भी तरह संतुष्ट नहीं है।
एक-दूजे से ख़फ़ा मैं भी हूं और तुम भी हो
आप अपने पे फ़िदा मैं भी हूं और तुम भी हो।
धर्म का माहौल देखें तो डर लगने लगा है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश होने का दावा करता है। ख़ैर साहब हक़ीक़त से तो हम सभी वाकिफ़ हैं लेकिन इन दिनों की हवा कुछ और ही है। हिन्दू और हिन्दू संस्थाएं ऐसा माहौल बना रही हैं कि हर मुसलमान देशद्रोही है और किसी भी मुसलमान का समर्थन करने वाला भी देशद्रोही है। दूसरी ओर, मुस्लिम आरोप लगा रहे हैं कि हिन्दूवादी ताकतें उनके खिलाफ साज़िश कर रही हैं। उनका कहना है कि भारत सिर्फ हिन्दुओं का नहीं बल्कि मुस्लिमों का देश भी है। ये बयान और घटनाएं सबूत हैं कि न तो हम धर्मनिरपेक्ष हैं और न ही धार्मिक सद्भाव जैसी कोई स्थिति है।
केरल के एक ईसाई पादरी ने बयान दिया है कि पुरुषों के कपड़े यानी जीन्स, टीशर्ट आदि पहनने वाली लड़कियां अपने पिता और भाई को भी उत्तेजित करती हैं। ऐसी लड़कियों को समुद्र में डुबो देना चाहिए। लड़कियां अपने बाल खुले रखती हैं तो सिर्फ पुरुषों का ध्यान खींचने के लिए। इस पादरी के अनुसार लड़कियों के ये सारे कृत्य भगवान का अपमान हैं और उनके लिए बाइबिल में समुद्र में डुबो देने की सज़ा बतायी गयी है। अभी तक ऐसी बातें हम बुर्क़ा और हिजाब का समर्थन करने वाले कट्टर मुस्लिम समुदाय और खाप पंचायतों से सुनते रहे हैं, अचानक बाइबिल के हवाले से ईसाई धर्म में ऐसा हादसा हो गया..! है न अजूबा? हमारे देश में कुछ भी हो सकता है।
अब देखें विश्व परिदृश्य में। भारत में जिस तरह से हिन्दुत्व का कट्टर माहौल बन रहा है उसी तरह ट्रंप के आने के बाद अमरीका में ईसाइयत का। कई भारतवंशियों का घर बन चुका और सपना बना हुआ अमरीका अचानक उनका दुश्मन हो गया है। भारत ही नहीं, दुनिया के कई विकासशील देश अमरीका की इस तरह की नीतियों पर नाराज़गी जता रहे हैं। ईरान के असगर सरहदी ने ऑस्कर जीता तो उसे ग्रहण करने नहीं गये और अपने भिजवाये संदेश में उन्होंने कहा कि वह इस तरह की नीतियों पर अपना विरोध ज़ाहिर करते हैं और इसलिए अमरीका नहीं आये हैं। इधर ऑस्कर जीतने वाले पहले मुस्लिम अभिनेता को तो मुस्लिम देश पाकिस्तान से ही बेइज़्ज़ती मिली।
भारत में इस बात को लेकर खुलेआम धमकियां मिल चुकी हैं कि किसी फिल्म में पाकिस्तानी कलाकार काम करेंगे तो सिनेमाघरों में शांति से उन फिल्मों को चलने नहीं दिया जाएगा। कोई पाकिस्तानी कलाकार भारत में अपनी प्रस्तुति देगा या नहीं, यह हमारी सरकार और संविधान के तहत बनी नीतियां नहीं, बल्कि कुछ राजनीतिक और सांप्रदायिक ख़ेमे तय कर रहे हैं। सरकार उनके खिलाफ जाने में असमर्थ नज़र आ रही है। कमाल है, कला का परिदृश्य भी अब राजनीति तय करेगी..! अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार बस उसी को मिलेगा जिसके पास ताकत है – ताकत ऐसी जो तोड़फोड़ कर सके, गुंडागर्दी के ज़ोर पर पुलिस, कानून, सरकार आदि हर बल पर हावी नज़र आये। कितने अच्छे दिन चल रहे हैं। और साहब, जोखिम भरा माहौल ऐसा है कि आप सरकार की आलोचना करते हैं तो अंजाम के ज़िम्मेदार आप ख़ुद होंगे। और क्या कहें, सिवाय इसके कि –
बोलो कि लोग ख़ुश हैं यहां सब मज़े में हैं
ये मत कहो कि ज़िल्ले इलाही नशे में हैं।
एक लड़की ने अपनी भावनाओं का इज़हार किया तो अलग विचारधारा के लोगों ने उसे पाकिस्तानी तक कह डाला। शहीद की बेटी ने इतना कहा था कि मेरे पिता की जान पाकिस्तान ने नहीं ली बल्कि जंग ने ली। ये बात तो साहिर ने अपनी एक नज़्म में भी कही है और कई शायरों व कलाकारों ने ऐसा साहित्य रचा है जिसमें कहा गया है कि जंग या युद्ध केवल बेगुनाहों की जान लेता है इसलिए इससे जब तक संभव हो, बचना चाहिए। साहिर की नज़्म का अंश –
जंग तो ख़ुद ही एक मअसला है
जंग क्या मअसलों का हल देगी
आग और खून आज बख़्शेगी
भूख और अहतयाज कल देगी…
टैंक आगे बढें कि पीछे हटें
कोख धरती की बाँझ होती है
फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग
जिंदगी मय्यतों पे रोती है
इसलिए ऐ शरीफ इंसानों
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आँगन में
शमा जलती रहे तो बेहतर है।
अब कहने वाले कह सकते हैं कि साहिर फलां विचारधारा के कवि थे लेकिन मर्म को समझकर भले ही स्वीकार न करें, मगर समझते सब हैं कि बात सही है। अस्ल में, विचारधाराएं इस समय आतंकवाद का गढ़ हैं। वामपंथी हों, या दक्षिणपंथी, राष्ट्रवादी हों या मानवतावादी, प्रगतिशील हों या परंपरावादी, हिन्दूवादी हों या इस्लामी… सभी अपने-अपने ख़ेमे में कैद हैं और कतई तैयार नहीं हैं यह मानने को कि दूसरा भी इंसान है और अलग होने के बावजूद, इंसान होने के नाते उसके पास भी वही सारे बुनियादी अधिकार हैं जो आपके पास हैं। इस एक सच को स्वीकार न करने पर तुली यह सारी दुनिया अपनी ही लगायी आग में भस्म हो जाने के लिए किस क़दर आतुर है..!
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