लेखन से धनार्जन
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हिंदी दिवस पर विशेष
अगर आपको अपनी कलम पर यकीन है तो आपके पास अवसर है कि आप अच्छी खासी धनराशि कमा सकें।
जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल इंडिया पर जोर दिया है तब से इस क्षेत्र में तमाम नवाचार देखने को मिल रहे हैं। तकनीक और हिंदी भाषा के इस मेल का अभिनव प्रयोग स्टार्ट अप की दुनिया में देखने को मिल रहा है। क्या आप शौकिया, कविता-कहानी या कुछ और लिखते हैं? क्या आपको लगता है कि वह सामग्री स्तरीय है और उसे लोग पसंद करेंगे?अगर ऐसा है तो पारंपरिक प्रकाशन माध्यमों की बाट जोहना बंद कीजिये. अब ऐसे स्टार्टअप मौजूद हैं जो न केवल आपको प्रकाशित करेंगे बल्कि आपको पैसे कमाने का अवसर भी देंगे। यह सुविधा उपलब्ध है वह भी बस एक क्लिक की दूरी पर
दरअसल डेलीहंट, एमेजोन किंडल और कोबो आदि ईबुक कंपनियां आपको धन कमाने का अवसर काफी पहले से प्रदान कर रही हैं। भारत में और खास तौर पर हिंदी भाषी क्षेत्रों में यह काम शुरू किया है नॉट नल नामक एक नये उपक्रम ने। नॉट नल के सह संस्थापक नीलाभ श्रीवास्तव कहते हैं कि नॉट नल न केवल अधिकांश स्तरीय पत्रिकाओं और पुस्तकों को नाममात्र शुल्क लेकर पढऩे की सुविधा देती है, बल्कि वह पाठकों और लेखकों को यह सुविधा भी उपलब्ध कराती है कि वे अपनी रचनाओं की ईबुक तैयार कर खुद उससे धन अर्जित कर सकें।
लेखन से कैसे करें धनार्जन?
अगर आपको लगता है कि आप अच्छी रचनायें लिखते हैं तो आप उसे नॉट नल को ईमेल कर सकते हैं। नॉट नल की टीम उन रचनाओं की गुणवत्ता की जांच करती है। अगर किताब उनको प्रकाशन योग्य लगती है तो वे उसे ईबुक के रूप में सजाते हैं और फिर ऑनलाइन बिक्री के लिये उतार देते हैं।
नीलाभ कहते हैं कि इस ई बुक की कीमत तय करने का अधिकार लेखक को होता है। एक बार ईबुक तैयार हो जाने के बाद नॉट नल की वेबसाइट और सोशल मीडिया माध्यमों पर उसकी ब्रांडिंग की जाती है। यह सारा काम निशुल्क किया जाता है। ई बुक की बिक्री के बाद उसकी कीमत का 60 प्रतिशत लेखक के खाते में जबकि 40 प्रतिशत नॉटनल के खाते में जाता है। यानी अगर एक ई बुक की कीमत 100 रुपये निर्धारित की गई है तो एक प्रति की बिक्री से 60 रुपये लेखक को और 40 रुपये नॉट नल को मिलते हैं। एक बार यह राशि 100 या 100 रुपये से ऊपर हो जाती है तो इसे खाते में स्थानांतरित किया जा सकता है।
हिंदयुग्म प्रकाशन संस्थान के संपादक शैलेश भारतवासी कहते हैं कि यह सेल्फ पब्लिशिंग का यह कांसेप्ट दुनिया भर में तो लंबे समय से चलन में है लेकिन हिंदी भाषी क्षेत्रों में इन्हें पेश करने का श्रेय अवश्य नॉट नल को दिया जा सकता है।
इसके अलावा नॉट नल हिंदी की तमाम बड़ी पत्रिकाओं के ई संस्करणों की भी बिक्री करती है। इनमें से सबसे अधिक बिकने वाली किताबें हैंं हंस, नया ज्ञानोदय और समयांतर आदि शामिल हैं। इन पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री में भी राजस्व साझेदारी का 60 प्रतिशत-40 प्रतिशत का ही मॉडल अपनाया जाता है।
नॉट नल की सह संस्थापक गरिमा सिन्हा कहती हैं कि युवाओं की बढ़ती मांग को देखते हुए अब नॉट नल उनके लिए मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग आदि की अकादमिक पुस्तकें भी मुहैया करा रही है। छात्र बहुत कम शुल्क चुकाकर इन किताबों का लाभ उठा सकते हैं।
हिंदी जगत की आम धारण के उलट नॉट नल के पाठकों और ग्राहकों में 80 प्रतिशत देश के ग्रामीण इलाकों से आते हैं। शायद उन इलाकों में स्तरीय किताबों की पहुंच बेहतर न होने का असर हो कि उनकी ई बिक्री अधिक होती है।
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