जानते हैं इस महान कवि ने खुद ही रखा था अपना नाम
नहीं पसंद था इन्हें अपना नाम
सुमित्रानंदन पंत का प्रारंभिक नाम गुसाई दत्त रखा गया था। उन्हें अपना नाम पसंद नहीं था, इसलिए उन्होंने अपना नाम गुसाई दत्त से सुमित्रानंदन पंत कर लिया। खुद का ही इन्होंने नया नाम रख दिया। मधुमेह से ग्रसित होने की वजह से 27 दिसम्बर 1977 में उनका निधन हो गया था।
घर पर ही किया भाषा साहित्य का अध्ययन
1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने महाविद्यालय छोड़ दिया था और घर पर ही हिन्दी, संस्कृत, बंगला और अंग्रेजी भाषा साहित्य का अध्ययन करने लगे। उन्होंने इलाहाबाद आकाशवाणी के शुरुआती दिनों में सलाहकार के रुप में भी कार्य किया।
पहली कविता चौथी कक्षा में लिखी
सात साल की आयु में जब वे चौथी कक्षा में पढ़ रहे थे उन्होंने अपनी पहली कविता लिखना शुरु कर दी थी। 1918 के आसपास तक वे हिन्दी के नवीन धारा के प्रवर्तक कवि के रुप में पहचाने जाने लगे थे। उस दौर की उनकी कविताएं वीणा में संकलित हैं। इनका काव्य संकलन पल्लव 1926 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद इन्होंने वीणा, गुंजन, तारापथ जैसे कई प्रचलित काव्य लिखे।
समय के साथ बदलता रहा इनका साहित्य
सुमित्रानंदन पंत का संपूर्ण साहित्य सत्यम शिवम सुंदरम के आदर्शों से प्रभावित होते हुए भी समय के साथ निरंतर बदलता रहा है। इनकी शुरु की कविताओं में प्रकृति और सौंदर्य के रमणीय चित्र नजर आएं हैं तो दूसरे चरण में छायावाद की सूक्ष्म कल्पनाओं व कोमल भावना और अंतिम चरण में प्रगतिवाद और विचारशीलता । इन्होंने अपने ऊपर लगने वाले आरोपों को नम्र अवज्ञा कविता के माध्यम से खारिज किया है।
इन पुरस्कारों से हुए सम्मानित
हिंदी साहित्य सेवा के लिए उन्हें पद्म भूषण, ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी, सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार जैसे उच्च सम्मानों से अलंकृत किया गया है। इनके नाम पर कौसानी में उनके पुराने घर को जिसमें उन्होंने बचपन के दिन बिताएं हैं, वहां सुमित्रानंदन पंत वीथिका के नाम से एक संग्रहालय चलाया जा रहा है। इस संग्रहालय में आज भी उनकी उपयोग की गई वस्तुएं जैसे कपड़े, कविताओं की मूल पांडुलिपियां, छायाचित्र, पत्रों और पुरस्कारों को प्रदर्शित किया गया है। पंत जी की ये सभी यादें हमें उनसे जोड़ती हैं, साहित्य को पसंद करने वालों को इस जगह को एक बाद जरुर देखना चाहिए।
- - Advertisement - -