एक कहानी : इनकम टैक्स की रेड… (पार्ट-5)
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सहेली संध्या पहुंच जाती है वहां। धीरे से थोड़ा थिड़क कर आवाज़ लगाती है, ’’अनु! कहां हो? आज कॉलेज नहीं जाना है क्या?’’
आवाज़ सुन अनु उठती है तो राहुल उसे इशारे से रोक, कुछ आंखों से कहता है जो वह समझ जाती है। अब वो धीरे से गेट खोलकर बाहर आती है और बड़े ही टेंशन वाले अंदाज़ में उससे कहती है, ’’यार में आज कॉलेज नहीं जा पाऊंगी। मेरे यहां इनकम टैक्स वाले बैठे हैं जो किसी को कहीं भी नहीं जाने दे रहे हैं।’’
संध्या : इनकम टैक्स वाले? क्यों? वो भी तुम्हारे यहां? सब ठीक तो है?
अनु : हां यार। मैं तुमसे बाद में बात करती हूं। तुम कॉलेज में टीचर्स को बता देना न प्लीज़। चलो ओके बाय।’’ कह अनु जल्दी से अंदर आ जाती है।
वर्मा जी और बिल्डिंग के लोग तो संध्या का इंतज़ार ही कर रहे थे। जैसे ही वो वापस आई सब नज़दीक आ गए ये पता करने कि क्या हुआ। ’’क्या हुआ बेटी?’’ सबने एक साथ पूछा।
संध्या : हां बात तो सही है। कुछ गड़बड़ तो है। अनु ने कुछ ख़ास तो नहीं बताया, बहुत घबराई हुई थी। बस इतना ही कहा कि इनकम टैक्स वाले आए हुए हैं और वो किसी को कहीं नहीं जाने दे रहे हैं।
इतना कह संध्या कॉलेज जाने के लिए निकल गई। उसे ये बात वहां भी तो सबको बतानी थी ना।
अनु अंदर आ मंद-मंद मुस्कुरा रही थी और सोच रही थी मेरा तीर निशाने पर लग गया। उसे पता था कि उसकी फ्रैंड संध्या चुप बैठने वाली नहीं है। अब ये ख़बर पूरे कॉलेज में पहुंच जाएगी। इधर मां सरला भी सोच रही थी कि मैं क्या करूं। अचानक उन्हें ख़्याल आता है कि उसकी बड़ी बहन किस दिन काम आएगी। वो और जीजा जी, बच्चे सभी उनका मज़ाक बनाते रहते हैं। उन सभी को अपने पैसे पर काफ़ी नाज़ है। बस फ़िर क्या था सरला जी ने अपने दीदी को फोन लगा दिया। वह भी अनु की तरह ही दो मिनिट बात कर फ़ोन रख देती है और राहुल को इशारे में बता देती है कि उसने भी अपना काम कर दिया।
जैसे ही उसकी दीदी के घर में जीजा जी और बच्चों को बात मालूम पड़ती है, उनके चेहरे देखते ही बनते हैं। उन्हें तो लगता था वही पैसे वाले हैं जिसका उन्हें बहुत घमंड था। लेकिन अब चेहरा उतरा-उतरा हो जाता है। उनकी बेटी भी अनु के कॉलेज में पढ़ती थी। जिसके पास रंग रूप तो नहीं था पर पैसे का घमंड बहुत था और फ्रैंड्स भी उसे अनु से ज्यादा पूछते थे।
अनु की यह बहन तनु कहने को तो मौसेरी बहन थी किंतु अनु से काफ़ी जलन रखती थी। एक तो अनु उससे ख़ूबसूरत थी दूसरा बड़ा कारण कॉलेज में दोनों का कॉमन फ्रैंड था चिराग जो मन ही मन चाहता तो अनु को था और अनु भी उसे पसंद करती थी किंतु ये तनु को पसंद नहीं था। तनु अक्सर अपने पैसे का रुतबा दिखाकर चिराग को अपनी ओर करने की कोशिश करती रहती थी। चिराग को भी आगे बढ़ने में तनु का सहारा उसकी तरफ़ खींचता था। इन सबके बीच एक ट्राएंगल सा बना हुआ था। तनु को बस एक यहीं टेंशन खाए जा रहा था क्योंकि एक पैसा ही था जो चिराग को उसकी तरफ़ लाता था और वो किसी भी कीमत पर चिराग और अनु को एक नहीं होने देना चाहती थी इसलिए उसने पिताजी से कहा, ’’डैडी, आज मैं चिराग को आपसे मिलने घर पर बुला लूं क्या? मेरा कॉलेज जाने का मन नहीं हो रहा है।
’’पर तनु बेटा, एक तो मेरा ऑफ़िस है और दूसरा वो मुझसे क्यों मिलना चाहता है?’’
’’डैडी प्लीज! चिराग बिजनेस को लेकर आपसे कुछ बात करना चाहता है। फ़िर हम मूवी का प्रोग्राम बना लेंगे। बहुत दिन हो गए कोई अच्छी मूवी नहीं देखी।’’
’’ओके! जैसा तुम ठीक समझो। शायद तुम्हारी मॉम का भी आज मूड ठीक करना पड़ेगा।’’
कॉलेज में उसकी फ्रैंड संध्या क्या बताती है? दोस्तों का क्या रिएक्शन रहता है? तनु, चिराग को अपने घर बुला पाती है या नहीं? उधर इनकम टैक्स ऑफ़िसर राहुल का कितना साथ दे पाते हैं? शर्मा जी और उनके परिवार के साथ क्या होता है? इन सारे सवालों के जवाब मिलेंगे आगे की कहानी में।
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