एक कहानी : इनकम टैक्स की रेड शर्मा जी के यहां
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कभी-कभी ज़िंदगी में ऐसा कुछ घट जाता है कि हमारी ज़िंदगी ही बदल जाती है। ऐसा ही हुआ एक दिन निम्न आय परिवार के शर्मा जी के साथ। जैसे-तैसे गुज़ारा शर्मा जी और उनके परिवार के साथ। एक छोटी-सी नौकरी, चॉल में घर, छोटा-सा परिवार जिसमें ख़ुद शर्मा जी (अनूप शर्मा), उनकी पत्नी सरला जी, मां विमला जी, पिता विशम्भरदयाल (रिटायर्ड मास्टर), बड़ी बेटी अनुपमा, एक छोटा बेटा राहुल। बस यही थी उनकी दुनिया। पी.डब्लयू.डी ऑफिस में छोटी-सी पोस्ट पर सरकारी नौकरी कर रहे शर्मा जी बेहद ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, सीधे-सरल स्वभाव के। अब ये उनकी खूबी थी या कमज़ोरी कुछ कहना मुश्किल था क्योंकि इसी के चलते वे तो बहुत खुश थे किंतु उनका परिवार नाखुश।
बाकि परिवार के सदस्य कौन-कैसे हैं आइए जानते हैं –
पिता – नाम विशम्भर दयाल शर्मा। पेशे से मास्टर जो अब रिटायर्ड हो चुके हैं। शर्मा जी के आदर्श। ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा सब कुछ अपने पिता से ही सीखा। उनके ज़माने में ये बात बहुत कीमती होती थी। गांव में रहकर वर्षों तक उन्होंने इसका पाठ पढ़ाया और बहुत इज़्ज़त पाई। ज़माने की रफ़्तार ने अब जीवन का फलसफ़ा ही बदल दिया किंतु मास्टर जी आज भी अपनी इसी शिक्षा पर कायम हैं। उनके जीवन दर्शन में कोई बदलाव नहीं है।
मां – विमला शर्मा। मास्टर जी की धर्मपत्नी। विचारों से अलग किंतु एक पत्नी के रूप में हमेशा साथ दिया।
पत्नी सरला शर्मा – पढ़ी-लिखी, समझदार, काफ़ी चीज़ों का ज्ञान किंतु नहीं किया कोई काम। देना चाहती थी डिप्टी कलेक्टर की परीक्षा पर पिताजी ने लड़का ढूंढ शादी करा दी। शादी के बाद घर-गृहस्थी में उलझ कर रह गई। पति अच्छा है, सरकारी नौकरी करता है समझकर की थी शादी किंतु पति और ससुर जी की ईमानदारी वाली फिलॉसफी समझ में नहीं आती थी। उन्हें पता है घर-परिवार बिना पैसों के नहीं चलता।
बड़ी बेटी – अनुपमा शर्मा। सुंदर, गोरा रंग। देखते ही कोई भी फ़िदा हो जाए। बीएससी फाइनल इयर की स्टूडेंट है। मेडिकल में जाकर डॉक्टर बनने की बेहद इच्छा थी किंतु फ़ीस बहुत थी और शर्मा जी इतनी फ़ीस अफॉर्ड नहीं कर सकते थे इसलिए जा नहीं सकी। पैसा नहीं होने का मलाल बहुत है। दोस्तों में भी बड़े अनमने मन से रहती है। बड़ा ही मन करता है कि अपनी सहेलियों जैसे मॉर्डन कपड़े पहनूं, ख़ुद की टू व्हीलर हो, पार्टियों में जाऊं, मौज-मस्ती करूं किंतु बात पैसे पर आकर अटक जाती है। दोस्त भी ज्यादा वेटेज नहीं देते हैं। कभी-कभार सहानुभूति में बोल देते हैं तो ख़ुद्दार अनु ख़ुद ही मना कर देती है। जीवन में पैसा इतना चाहती है कि दोस्तों में उसका रुतबा हो।
छोटा बेटा – राहुल शर्मा परिवार का सबसे छोटा सदस्य। छोटा है किंतु बड़ा नटखट, दिमाग का तेज़ किंतु पढ़ाई में कम मन लगता है। सारा ध्यान जुगाड़ में ही लगा रहता है। सीधे काम में कम उल्टे काम में ज़्यादा। पिता और दादा तो उसको नाकारा ही समझते हैं पर परिवार की तीनों महिला सदस्य यानी दादी, मां और बहन अनु का वो चहेता है। उनको इस बेटे से ही बड़ी उम्मीदे हैं। बी.कॉम. फर्स्ट इयर में जैसे-तैसे पहुंच गए हैं जनाब। स्कूल से कॉलेज में पहुंचते ही जैसे पर लग गए हों। दिन भर दोस्तों में ही रहता। बड़ा ख्वाब लिए अपनी ही जुगाड़ में लगा रहता है क्योंकि घर से तो कोई मदद मिलने से रही। देखते हैं उसकी ये जुगाड़ उसे कहां ले जाती है।
कुल मिलाकर शर्मा परिवार अंदर से परेशान और कुंठित ही था। उनके पिता विशम्भरदयाल जी पूरी ज़िंदगी मास्टरी करने और ईमानदारी की नीतियों पर चलने की शिक्षा देने के बाद आज के दौर को देखकर बड़े ही कन्फ़्यूज़ हो चले हैं। मां, पत्नी और बच्चे सब कुंठित ही नज़र आते हैं। अंत में बचे हमारे शर्मा जी जो अपनी ही मस्ती में मगन हो जीवन गुज़ार रहे हैं। बस कभी-कभार परिवार की चिंता हो जाती है।
ऐसे ही खट्टे-मीठे अनुभव लेती, हिचकोले खाती उनके जीवन की नाव चल रही थी। एक दिन अचानक ज़िंदगी ने करवट बदली। या यू कहें कि नीरस-सी ज़िंदगी में एक भूचाल-सा आ गया। एक दिन उनके यहां इनकम टैक्स वाले पहुंच गए। उन्हें भी कहां पता था उनका शर्मा जी के घर का दरवाज़ा खटखटाना शर्मा परिवार की ज़िंदगी ही बदल देगा। देशभर में काले धन को लेकर बवंडर मचा हुआ था। सभी ये देखने-सुनने को आतुर थे कि किसके यहां कितना काला धन निकला। ऐसे में इनकम टैक्स वालों का यहां पहुंचना शर्मा परिवार की दशा और दिशा को बदलने के लिए काफ़ी था। वो पल उनकी जिंदगी का महत्वपूर्ण पल बन गया। इस पल के नतीजे क्या और कैसे निकले देखते हैं हम कल की कहानी में।
पार्ट 2 : इनकम टैक्स की रेड शर्मा जी के यहां
एक कहानी : इनकम टैक्स की रेड… (पार्ट-3)
एक कहानी : इनकम टैक्स की रेड… (पार्ट-4)
एक कहानी : इनकम टैक्स की रेड… (पार्ट-5)
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