Thursday, August 24th, 2017
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वुमन इम्पावरमेंट का माध्यम बनती फिल्में




Entertainment

women's day

मार्च का महीना फागुन की मस्ती, रंगों के धमाल और पेड़ों पर खिले टेसू, पलाश के अलावा एक और बात के लिए भी याद किया जाता है। यह ख़ास है अंतराष्ट्रीय महिला दिवस। आठ मार्च का यह दिन महिलाओं को विभिन्न क्षेत्रों में उनके अचीवमेंट के लिए सम्मानित करने का दिन है, उनको प्यार, प्रशंसा और सम्मान से नवाजे जाने का दिन है, एक महिला के बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते फिर भी हम उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखते हैं।

विश्व के देशों की तुलना में भारतीय महिलाएं आज भी अपने हक की जमीन के लिए लड़ रही हैं। वह आज भी समता और सम्मान के लिए संघर्ष कर रही हैं। महिलाओं के संघर्ष को उनके अधिकारों को लेकर अवेयरनेस फैलाने में मास मीडिया महत्वपूर्ण रोल निभा रहा है। इसी का एक माध्यम है सिनेमा या फिल्में। फिल्में एक ऐसा माध्यम है जो ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचता है तथा इसका असर भी प्रभावी रूप से होता है। विगत वर्षो में बनी कई फिल्मों ने समाज को महिलाओं के प्रति पॉजिटिव मैसेज दिया तथा उनके दुःख को दर्द को प्रभावी रूप से परदे पर उतारा। एक सर्वे के अनुसार दुनियाभर में भारतीय स्त्रियां सबसे अधिक लगभग पांच घंटे घर का काम करती हैं वहीं पुरूष दुनियाभर में सबसे कम सिर्फ उन्नीस मिनट ही गृहकार्य करते हैं।

ki and ka

एक हाउसवाइफ के महत्व को बताती आर. बाल्की की फिल्म ‘की एंड का’ निश्चित ही इस दिशा में साहसिक कदम है। जब फिल्म का हीरो कहता है कि ‘‘मैं अपनी मां जैसा बनना चाहता हूं’’ तो निश्चित ही उसका कथन सभी को चौंकाता है। लेकिन यहां इस युवा का दिल अपनी मां के प्यार से भरा है। वह अपनी मां की पैरेंटिंग को दिल की गहराइयों से अनुभव करता है और उसका सम्मान भी करता है। काश सारे पुरूष इस बात को दिल से स्वीकार कर पाते कि एक महिला का उनकी लाइफ में कितना योगदान होता है तो आज सीन कुछ और ही होता। नेक्सट पेज पर पढ़ें पूरा आर्टिकल…

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