लीगली सारे इल्लीगल सप्लाइज भी टैक्सेबल है. सप्लाई नेचर से सप्लाई हो .प्रतिबंधित बिजनेस सप्लाई सप्लाई नहीं मानी जाएगी किंतु इल्लीगल अर्थात बिना लाइसेंस के किए जाने वाले बिजनेस में सप्लाई सप्लाई मानी जाएगी एवं बाकायदा टैक्सेबल हो जाएगी!
सप्लाई सर्वप्रथम तो सप्लाय हो फिर बाद में देखेंगे कि वह टैक्सेबल है या करमुक्त. सप्लाई में बारटर शामिल है और एक्सचेंज भी! वाटर में काम के बदले काम और एक्सचेंज में वस्तु के बदले वस्तु!
सप्लाई किसी बिजनेस के तहत हो अथवा उसे बढ़ाने के लिए हो तब भी सप्लाई है. बिजनेस में फ्रीक्वेंसी, वॉल्यूम, क्वांटिटी, क्वालिटी ऐसा कोई आधार नहीं हो सकता कि यह ज्यादा है तो बिजनेस है अथवा नहीं.
कई बार कई क्लब अथवा ट्रस्ट आदि डोनेशन लेकर भी उसके बदले में सर्विसेस दे देते हैं तो यह टैक्सेबल सप्लाई है. कोई चैरिटेबल ट्रस्ट भले इनकम टैक्स कानून में रजिस्टर्ड हो लेकिन चैरिटेबल एक्टिविटीज की परिभाषा जीएसटी कानून की ही चलेगी.
सामान्यतया जो भी प्रतिफल लिया जाता है उसे ही टैक्स लगाने के लिए वैल्यू माना जाता है! फिर भी कॉन्ट्रैक्ट एग्रीमेंट को पढ़कर उसकी शर्तों से समझना होगा कि प्रतिफल क्या है कितना है. प्रतिफल में ‘इन काइंड’ एलिमेंट भी हो सकता है. बिना प्रतिफल लिए भी टैक्सेबल सप्लाई हो सकती है. (किसी टैक्सेबल सर्विस का इंपोर्ट ).
सप्लायर द्वारा चार्ज किया गया टैक्स उसके द्वारा भर दिए जाने एवं तत्संबंधी रिटर्न भी फाइल कर दिए जाने के बाद ही इनपुट टैक्स क्रेडिट मिल पाएगा और क्रेडिट लेने के लिए जरूरी है कि गुड्स या सर्विसेस एवं इनवॉइस प्राप्त हो जाए.
पुराना रिटर्न भर कर एवं टैक्स पेमेंट कर कर ही अब अगला टैक्स पेमेंट कर सकेंगे एवं अगला रिटर्न भर सकेंगे.
यदि गुड्स लॉट में आते हैं या इंस्टॉलमेंट में आते हैं तो अंतिम लाट या इंस्टॉलमेंट आ जाएगी तभी क्रेडिट ले सकेंगे इनवॉइस वैल्यू का टैक्स सहित पेमेंट 6 माह में नहीं किया तो इनवॉइस लिया गया क्रेडिट रिसीवर की आउटपुट टेक्स लायबिलिटी में जुड़ेगा और ब्याज भी लगेगा इनवॉइस डेट से.
कंपोजीशन डीलर को हर बिल पर अपने कंपोजीशन डीलर होने और टैक्स कलेक्ट ना कर सकने की घोषणा तो करनी ही ह साथ हीै साइन बोर्ड पर नोटिस बोर्ड पर भी कंपोजीशन डीलर है ऐसा लिखना जरूरी है!
सभी रजिस्टर्ड टैक्सेबल पर्सन को अपने साइन बोर्ड पर अपना जीएसटीआईएन लिखना है.
अगर गुड्स का मूवमेंट होना ह तो उसके रिमूवल के पहलेै इनवॉइस का बनना जरूरी है. सर्विस के मामले में सर्विस कंप्लीट होने से 30 दिन के भीतर इनवॉइस का बनाना जरूरी है.
कर मुक्त माल या सर्विसेस की सप्लाई करने पर अथवा कंपोजीशन डीलर द्वारा इनवॉइस नहीं बल्कि “बिल ऑफ सप्लाई” जारी करना है.
इन वर्ल्ड सप्लाई में सभी तरह के परचेस बिना प्रतिफल वालेया बिना प्रतिफल वाले सभी दिखाना है रिटर्न में! और 2.5 लाख रुपए से से अधिक के हर बिल की डिटेल पूरी पूरी देनी है.
फाइनल Returns जीएसटी आर 3 फाइल करना ही है भले ही ‘निल ‘का रिटर्न हो.
जीएसटी आर वन एवं दो अगर निल का है फाइल करने की जरूरत नहीं है..
कंपोजीशन डीलर को अपने टर्नओवर में शामिल कर मुक्त माल की वैल्यू पर भी टैक्स चुकाना पड़ेगा. स्विच होकर नॉर्मल श्रेणी में आते हैं तू जिस दिन आते हैं उस दिन के स्टॉक में टैक्स पेड़ गुड्स का क्रेडिट ले सकेंगे.
ट्रांसपोर्टर को जब स्वयं टैक्स भरना है और उसे अपने व्हीकल पर लगे जीएसटी या अंय कोई इनपुट टैक्स का क्रेडिट नहीं लेना है तू ही उसे 5% जीएसटी लगाना है अन्यथा 18 परसेंट.
लेखक
सीए नवीन खंडेलवाल
सीए नवीन खंडेलवाल