आसान नहीं रही स्टार्ट अप की राह
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शुरुआती तेजी के बाद स्टार्ट अप जगत भी कठिनायी के दौर से गुजर रहा है। हवाबाजी में खुले अपारंपरिक स्टार्ट अप बंद हो रहे हैं जबकि जमीनी पकड़ वाले कारोबारी बाजार में टिके हुए हैं।
अगर आपको यह लगता है कि स्टार्ट अप की दुनिया में सबकुछ सुनहरा ही सुनहरा है तो इस बात को आप जितनी जल्दी भूल जायें उतना ही अच्छा है। हकीकत यह है कि तमाम अन्य उद्योगों की तरह ही स्टार्ट अप की दुनिया में भी कड़ी मेहनत और विजन ही दो ऐसी बातें हैं जो न केवल आपको मार्केट में दूसरों से अलग खड़ा करेंगी बल्कि आगे भी लेकर जाएंगी। अधिकांश स्टार्ट अप के टेक्रॉलजी क्षेत्र में होने का लाभ अवश्य मिलता है और ऐसा लगता है कि इस क्षेत्र में मेहनत कम है लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है।
औद्योगिक संगठन पीएचडीसीसी के एक अधिकारी कहते हैं कि स्टार्ट अप के बूम के दिन अब समाप्त हुए। अब किसी भी अन्य उद्योग की तरह यहां भी छंटनी और कंपनी बंद होने जैसी घटनएं देखने को मिल रही हैं। जाहिर है ऐसे बुरे दिन किसी भी स्टार्ट अप के आ सकते हैं।
यह बात उन लोगों के लिये तो चिंतित करने वाली है ही जिन्होंने अपने स्टार्ट अप शुरू किये थे, उनके लिये भी यह कम चिंतित करने वाली बात नहीं है जो अच्छा पैसा, कूल ऑफिस, शानदार तकनीक और उत्साह से भरे माहौल वाली नौकरी का सपना देख कर इस क्षेत्र में आये थे।
स्टार्ट अप के समक्ष पैदा हुई कुछ प्रमुख चुनौतियों के बारे में जानते हैं:
निवेश
एक साल पहले तक स्टार्ट अप में निवेश की भरमार थी। पारंपरिक कारोबारों और उद्योगों से निराश निवेशक जमकर स्टार्ट अप में निवेश कर रहे थे। लेकिन रिटर्न के अपेक्षित नहीं होने के कारण अब इस क्षेत्र में निवेश कम होना शुरू हो गया है। बिजनेस फाइनेंस क्षेत्र की संस्था वीसी सर्किल के मुताबिक पिछले साल की तुलना में इस साल स्टार्ट अप की वेंचर कैपिटल फंडिंग में 80 फीसदी की गिरावट देखी गई है। अब इस सेक्टर में ग्रोथ से ज्यादा चर्चा मुनाफे की हो रही है।
छंटनी की शुरुआत
इस फर्म के मुताबिक गत सितंबर से ही करीब 3,000 स्टार्ट अप कमज़्चारियों को नौकरी से निकाला जा चुका है। हालांकि वास्तविक तादाद इससे भी ज्यादा हो सकती है खासतौर पर अगर आप स्टार्ट अप में काम करने वाले लोगों से बात करेंगे तो इसका अंदाजा आपको हो सकता है। कई स्टार्ट अप ने तो नई भर्ति यों की योजना टाल दी है। कुछ ने इस साल वेतन बढ़ोतरी नहीं करने का फैसला किया है। कुछ स्टार्ट अप में तो वेतन के आने में भी अनियमितता दिख रही है। कई स्टार्ट अप ने अतिरिक्त मौद्रिक प्रोत्साहन देना भी बंद कर दिया है।
सिमटता दायरा
स्टार्ट अप का दायरा अब सिमट रहा है। बजट में ई कॉमर्स वेबसाइटों को लेकर किये गये कुछ प्रावधानों ने भी इस क्षेत्र को हतोत्साहित करने का काम किया है। ऑनलाइन सेलिंग प्लेटफार्म चलाने वाले एक स्टार्ट अप कारोबारी परीक्षित शर्मा कहते हैं कि उनको वेंडरों का भुगतान रोकना पड़ा है क्योंकि कारोबार में अपेक्षित तेजी नहीं रह गयी है। उनका कहना है कि स्टार्ट अप का शुरुआती बूम वाला दौर गुजर चुका है और अब वक्त है जमीनी हकीकतों का सामना करने का।
आधे अधूरे आइडिया
कई स्टार्ट अप इसलिये भी विफल हुए हैं क्योंकि उनको बाजार में उतारने के पहले पर्याप्त होमवर्क नहीं किया गया। फंड प्रबंधकों ने भी तेजी के माहौल में इन पर ध्यान नहीं दिया और निवेश उड़ेलना शुरू कर दिया। ऐसे में एक वक्त के बाद इनकी विफलता की शुरुआत हो गयी। हालांकि इस तरह के प्रकरणों को सीधे स्टार्ट अप की विफलता मानने के बजाय अपरिपक्व कारोबार की विफलता के रूप में देखा जाना चाहिये जो किसी भी क्षेत्र में हो सकता है।
स्टार्ट अप जगत में अपरिपक्वता आपका क्या हश्र कर सकती है इसका एक सटीक उदाहरण हाउसिंग डॉट कॉम के पूर्व सीईओ राहुल यादव का किस्सा है। वर्ष 2015 में राहुल अचानक अपनी पूरी हिस्सेदारी दानकर इस स्टार्ट अप से बाहर निकल गये थे। उस वक्त यह खबर खूब सुर्खियों में रही थी। इसकी वजह उनके और एक अन्य सह संस्थापक के बीच के अहम की लड़ाई थी। कहना नहीं होगा कि उस निर्णय के बाद राहुल यादव आज भी अपने पांव जमाने के लिये संघर्ष कर रहे हैं।
बहरहाल स्टार्ट अप ने अपने बूम के दिनों में जमकर कैंपस प्लेसमेंट भी किये लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। प्लेसमेंट के मामले में भी स्टार्ट अप पहले जैसे बेहतर नहीं रह गये।
पिछले साल दिसंबर में इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोटज़् के मुताबिक आईआईटी बम्बई द्वारा स्टार्ट अप को प्लेसमेंट सीजन के दौरान ‘ओपनिंग स्लॉटÓ नहीं देने का फैसला किया गया जो इससे पहले के सालों के मुकाबले बड़ा बदलाव था। जोमैटो और आईआईटी दिल्ली के बीच पिछले साल जुलाई में मतभेद शुरू हो गया था जब फूड स्टार्ट अप ने पैकेज के एक बड़े हिस्से के तौर पर शेयरों का विकल्प देना शुरू कर दिया जिसकी वजह से इसे प्लेसमेंट से रोका गया।
एक बड़ा सवाल यह है कि स्टार्ट अप जगत इतनी जल्दी इस परिणति को क्यों पहुंच रहा है? निवेशक और उद्यमी इसे एक आंतरिक मंदी के तौर पर देखते हैं जिससे स्टार्ट अप जूझ रहे हैं। उनका मानना है कि एक बार फंड आने लगेगा तो यह दिक्कत अपने आप समाप्त हो जायेगी।
लेकिन खास बात यह है कि दिक्कत केवल उन्हीं स्टार्ट अप को आ रही है जो बिना सोचे समझे इस क्षेत्र की तेजी के रथ पर सवार हो गये। जिन स्टार्ट अप ने अपने पैर जमीन पर टिकाये रखे उनके लिये आज भी पर्याप्त अवसर हैं।
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