अखिलेश के परिवार में बढ़े झगड़े, टूट सकती है सपा
By Satish Tripathi
देश का सबसे बड़ा प्रदेश यानी उत्तर प्रदेश आबादी के हिसाब से भी सबसे बड़ा प्रदेश माना जाता है। यंही से देश की सत्ता का रास्ता भी साफ नजर आता है। तो ऐसे में इस समय प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव 2017 सर पर है। तो देश के सबसे बड़े सियासी कुनबा जो इस समय सबसे बड़े प्रदेश की बागडोर संभाल रही है। इस समय उस सियासी कुनबे में कलह मची हुई है। चाचा औऱ भतीजे में। कोई गद्दी की लालसा रखे हुये है तो कोई मनमाने फैसले पर फैसले लिये जा रहे हैं। तो आइये हम आपको इस समय अब तक सबड़े बड़े प्रदेश में क्या क्या हुआ। अपको रूबरू करवाते हैं।
अखिलेश के मुख्यमंत्री बनते ही राजनीति गलियारो में विपक्ष और अन्य पार्टीयों ने सपा सरकार पर आरोप लगाया कि इस सरकार में एक मुख्यमंत्री नहीं बल्कि साढ़े चार मुख्यमंत्री प्रदेश को संभाल रहे हैं। बदस्तूर वह सिलसिला आज भी उत्तर प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी में चल रहा है। फैसलों में असहमति और अहम के टकराव के बीच अब देश का सबसे शक्तिशाली राजनीतिक कुनबा चुनाव की बिसात बिछा रहा है। चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच कुछ ज्यादा ही मतभेद दिखाई दे रहा है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव कई बार इस तनाव को कम करने के लिये अपने हिसाब से कदम उठा चुके हैं, परंतु उनके सभी प्रयास बेकार साबित हो रहे हैं। कभी−कभी तो ऐसा लगता है कि सपा परिवार में विचारों से अधिक कुर्सी की लड़ाई चल रही है। इसका कारण भी है। 2012 के विधानसभा चुनाव के समय जब यह बात उभर कर आ रही थी कि मुलायम सिंह सीएम बनकर यूपी की सियासत नहीं करेंगे, इसके बाद सीएम के तौर पर शिवपाल यादव के नाम की चर्चा होने लगी थी, मगर ऐन मौके पर अखिलेश की इंट्री हुई और वह बाजी मार ले गये। जिसके बाद से चाचा शिवपाल यादव ने पार्टी में रहते हुये बिना अखिलेश के सहमति के ऐसे कई कदम उठाये जिसको लेकर अखिलेश ने असहमति दर्ज कराई थी। और अखिलेश के नाराजगी के बाद फैसला वापस भी लिया गया। आये देखते हैं कि ऐसे ही कुछ फैसले जिनको लेकर चचा भतीजे मे तकरार हुई।
कौमी एकता दल के विलय पर शिवपाल ने लिया था पक्ष, अखिलेश ने जताया था एतराज
मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल यादव के फैसलों की मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने घर की चार दीवारी से निकलकर मंच पर मुखालफत करनी शुरू कर दी है। इसका ताजा उदाहरण कौमी एकता दल के विलय को लेकर चाचा भतीजे के बीच हुई तकरार है। इस मामले में भले ही अखिलेश की जिद के आगे आखिर चाचा शिवपाल को बैकफुट पर जाना ही पड़ा। लेकिन राजनीतिक गलियारों में इससे पार्टी के खिलाफ संदेश तो गया ही है। खबरों के मुताबिक चाचा और भतीजे के संबंधों में दरार तो उसी वक्त पड़ गई थी। जब 2012 में जबर्दस्त जीत के बाद मुलायम सिंह ने अप्रत्याशित रूप से अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बना दिया था।
मुलायम के इस फैसले से शिवपाल को तगड़ा झटका लगा था, दरअसल मुलायम सिंह के बाद समाजवादी पार्टी में खुद को दूसरे नंबर का नेता समझने वाले शिवपाल की जब अखिलेश की ताजपोशी के बाद नींद टूटी तो उनके मुख्यमंत्री बनने के सपने बिखर चुके थे। वहीं आजम खान, रामगोपाल यादव को भी मुलायम का यह फैसला हजम नहीं हो हुआ। नजीजतन सरकार को मुलायम, अखिलेश, रामगोपाल, शिवपाल और आजम खान अपने-अपने तरीके से चलाने का प्रयास करने लगे। जिसका सीधा असर अखिलेश सरकार पर पड़ा।
निजी कार्यक्रम में अखिलेश ने कहा था कि मुख्तार अंसारी पार्टी में नही होगें शामिल
पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक से चंद घंटे पहले एक अखिलेश यादव ने एक चैनल के निजी कार्यक्रम में एक सवाल के जबाव में कहा कि सपा में माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को पार्टी में शामिल नही किया जायेगा। अखिलेश के इस बात से सपा के संसदीय बोर्ड में सीधा संदेश गया। और महज चंद घण्टो बाद संसदीय बोर्ड की मीटिंग से यह फैसला आया कि सिर्फ मुख्तार अंसारी को ही नही बल्कि कौमी एकता दल के विलय को खारिज किया जाता है।
भतीजे के सामने बाप−चाचा छोटे नहीं नजर आयें, इसलिये कौएद से दूरी बनाये जाने के साथ यह घोषणा भी कर दी गई कि कौएद को सपा के करीब लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बलराम यादव जिनको अखिलेश ने कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया था, उनका मंत्री पद फिर से बहाल होगा।
अखिलेश के करीबियों को शिवपाल ने दिखाया था बाहर का रास्ता
चाचा भतीजे में यह कोई पहला मामला विवाद का नही था। बल्कि इसके पहले चाचा शिवपाल यादव ने पंचायत चुनाव के समय अखिलेश यादव के करीबी करीबी सुनील यादव साजन और आनंद भदौरिया को पार्टी से बर्खास्त कर दिया था। उस वक्त अखिलेश यादव को भरोसे में नही लिया गया था। जिससे इस घटना के बाद अखिलेश यादव काफी नाराज हुये। और इसी वजह से वह सैफई महोत्सव में भी नही पंहुचे। लेकिन उसके कुछ दिन बाद ही अखिलेश ने न सिर्फ इन दोनो की पार्टी में वापसी की बल्कि एमएलसी भी बनवा दिया।
नीतीश और लालू के गठबंधन पर अखिलेश को थी आपत्ति
सूत्रो का मानना है कि बिहार के चुनाव में नीतीश कुमार और लालू यादव के साथ हुए महागठबंधन पर भी मुलायम ने मुहर लगा दी थी। तब भी अखिलेश की सोच से इतर शिवपाल यादव इस महागठबंधन के पक्ष में खड़े थे। उस समय सपा महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव इस महागठबंधन के पक्ष में नहीं थे और उन्होंने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया भी व्यक्त की थी। बाद में यह फैसला बदल भी दिया गया। मगर अंसारी बंधुओं से हाथ मिलाने के पक्ष में नहीं होने के बाद भी प्रो. रामगोपाल यादव ने अखिलेश का साथ देने की बजाये चुप्पी ओढ़े रखी, जिसको लेकर भी सियासी मायने निकाले गये। अब तो हर तरफ एक ही चर्चा हो रही है कि समाजवादी परिवार में ऊपरी तौर पर सब कुछ सामान्य दिखाने की कोशिश की जा रही हो लेकिन अब यह लड़ाई सार्वजनिक हो चुकी है।
युपी के प्रमुख सचिव भी शिवपाल के हैं पसंदीदा
1982 बैच के आईएएस अधिकारी दीपक सिंघल को प्रदेश सरकार ने मुख्य सचिव के पद पर तैनात कर दिया है।सिंघल कई मदत्वपूर्ण पदों पर रह चुके है और पिछले चार सालों से मंत्री शिवपाल के विभाग सिंचाई मे प्रमुख सचिव के पद पर तैनात थे ।मुख्यसचिव आलोक रंजन के तीस जून को रिटायर होने के बाद सरकार ने कृषि उत्पादन आयुक्त प्रवीर कुमार को कार्यवाहक मुख्य सचिव के रूप मे कार्यभार सौंपा था।प्रवीर कुमार भी 1982 बैच के ही आईएएस हैं और मुख्यमंत्री की पंसद माने जाते रहे थे। पिछले कई दिनों से दोनों के नाम मुख्य सचिव पद के लिये चल रहा था।हालांकि ऐसा माना जा रहा था कि सरकार प्रवीर कुमार को ही स्थाई कर सकती है लेकिन बाजी मारी दीपक सिंघल ने जो चचा शिवपाल की पसंद हैं। बाद में दीपक सिंघल के नाम पर मुहर लगा दी गई। हालांकि दीपक सिंहल के नाम को लेकर अमर सिंह भी लाबिंग कर रहे थे। इससे पहले भी चाचा भतीजे के बीच कई मसलों को लेकर टकराव हो चुका है और ज्यादतर मामलों मे भतीजे ने अपनी बात मनवा ली मगर चुनावी साल मे पार्टी के संगठन काम देख रहे चचा शिवपाल की इस पंसद को अखिलेश नापसंद करने की हिम्मत नही जुटा पाये।
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