यूपी में मायावती की चुनावी डगर हुई कठिन, 2017 चुनाव में कंहा रहेगी बसपा?
By Satish Tripathi
उत्तर प्रदेश में मौजूदा हालात में समाजवादी पार्टी के बाद दूसरे नम्बर की हैसियत रखने वाली पार्टी बहुजन समाज पार्टी इस समय प्रदेश में बिखरती नजर आ रही है। जी हां आपने सहीं समझा। मायावती के दाहिने हाथ माने जाने वाले शख्स स्वामी प्रसाद मौर्या ने अभी हाल ही में पार्ट के महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया। यही नही उसके कु दिन बाद ही पासी वोट बैंक पर अच्छी पकड़ रखने वाले आर के चौधरी ने भी पार्टी से किनारा कर लिया। इन दोनो नेताओं ने पार्टी पर यहा आरोप लगाते हुये किनारा किया कि मायावती सीट के लिये कैण्डिडेटों से करोड़ो रुपये लेती हैं। और मायावती पर टिकट बेचने का आरोप लगाया। मायावती के दाहिने हाथ माने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या ने मायावती को यंहा तक कहा डाला कि मायावती दलित नहीं दौलत की बेटी हैं। स्वामी प्रसाद मौर्या मौर्या और कुशवाहा वोट बैंक पर अच्छी पकड़ मानी जाती है। लेकिन मायावती के सबसे बड़े नेता और कई नेताओं के द्वारा पार्टी छोड़ने से अब ये साफ हो गया है कि बहुजन समाज पार्टी में अब सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। जिससे पूरे प्रदेश में मायावती का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है। जो आगामी विधानसा चुनाव में मायावती के लिये यह खतरनाक साबित हो सकता है।
इन नेताओं ने पार्टी से किया किनारा
आज हम आपको इस कड़ी में बहुजन समाज पार्टी के इतिहास में ले चलते हैं। 1994 में बसपा-सपा गठबंधन सरकार में बसपा कोटे से कैबिनेट मंत्री रहे और कांशीराम के करीबी डॉक्टर मसूद ने पार्टी सब कुछ ठीक न होने के चलते पार्टी छोड़ दी। उसके बाद 1995 में सोने लाल पटेल ने भी बसपा ने किनारा कर लिया। 2001 में पार्टी के बड़े नेता के रूप में माने जाने वाले आर के चौधरी ने भी बसपा छोड़ दी। हालांकि वह 11 साल बाद 2013 में फिर पार्टी में शामिल हो गये। लेकिन जून 2016 में आर के चौधरी ने यह कहते हुये फिर पार्टी छोड़ दी कि मायावती टिकट बेचती हैं। जिसके लिये करोड़ो रूपये की बोली लगती है। हालांकि वंही 2002 में ओम प्रकाश राजभर ने भी पार्टी छोड़ दी।
मायावती पर पैसे लेने का लगा आरोप
मायावती के सामने मुश्किले यंही तक नहीं रही उनके सबसे खास नेता के रूप में जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या ने कहा कि मायावती ने अंबेडकर के सपनों को तोड़ा हैं। मायावती मनुवाद के मकड़ जाल में बुरी तरह उलझ गई हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य ने बीएसपी प्रमुख मायावती पर संगीन आरोप लगते हुए कहा कि उन्होंने अम्बेडकर के सपनों को बेचा है। पार्टी में दलितों की कोई सुध नहीं ले रहीं। स्वामी प्रसाद मौर्या यहीं तक नही रूके उन्होने कहा कि टिकट में सौदेबाजी की वजह से बीएसपी 2012 का चुनाव हारी और अब 2017 में भी चुनाव हारेंगी। तो वंही दूसरी तरफ अभी हाल ही में बहुजन समाज से पार्टी का किनारा करने वाले आर के चौधरी ने भी मायावती पर संगीन आरोप लगाये। उन्होने कहा कि बसपा अब सामाजिक परिवर्तन का आंदोलन नहीं रह गई है बल्कि मायावती ने इसे अपनी निजी रीयल एस्टेट कंपनी बना डाला है। वह अब पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं की बात नहीं सुनती बल्कि कुछ चाटुकारों के कहने पर उल्टे-सीधे फैसले करती रहती हैं।
इन लोगो ने पार्टी छोड़ने के बाद बनाई खुद की पार्टी
हम आपको बता दें कि जिन लोगो ने पार्टी से इस्तीफा दिया या फिर अपनी आवाज बुलन्द करने के कारण निकाले गये। वो या खुद की पार्टी बनाई या फिर किसी दल का दामन थामा। 1994 में बसपा-सपा गठबंधन सरकार में बसपा कोटे से कैबिनेट मंत्री रहे और कांशीराम के करीबी डॉक्टर मसूद ने पार्टी छोड़ राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी बनाई.डॉक्टर मसूद और उनका दल आज कहीं भी नहीं दिखता। तो वंही दूसरी तरफ 1995 में सोने लाल पटेल ने बसपा से अलग होकर ‘अपना दल’ नाम की पार्टी का गठन किया। जिनकी बेटी अनुप्रिया पटेल को इस समय मोदी के कैबिनेट में जगह भी मिली। 2001 में आरके चैधरी ने बसपा से अलग होकर राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी बनाई. लेकिन यह राजनीतिक प्रयास भी बेकार रहा और वापस 11 साल बाद 2013 में आरके चैधरी बसपा में शामिल हुए. अब उन्होंने एक बार फिर से 2016 में पार्टी छोड़ दी है. 2002 में ओम प्रकाश राजभर ने बसपा छोड़ी और सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी बनाई।
बसपा के इन तेज तर्रार नेताओं के पतन के इतिहास से यह साबित तो होता है कि कांशीराम और मायावती ने सामाजिक समूहों के भीतर पार्टी की पैठ बना रखी थी। इनमें सिर्फ सोने लाल पटेल का अपना दल और ओम प्रकाश राजभर का सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में अभी भी काफी सक्रिय हैं। जिसको राजनीति गलियारों में काफी काफी फायदा भी हुआ है।
माया ने खोई अपनी बादशाहियत का ताज, जनता ने दूरी बनानी की शुरू
तो अब आखिर में यह सवाल उठता है कि प्रदेश में दो नम्बर की हैसियत रखने वाली पार्टी इस आगामी चुनाव 2017 में कंहा दिखाई दे रही है। या फिर कंहा उसका वजूद खो गया है। तो वंही राजनीति पण्डितों की माने तो अभी हाल ही में स्वामी प्रसाद मौर्या और आर के चौधरी के द्वारा पार्टी से किनारा करने के बाद जनता में एक गलत सन्देश गया है। और जनता अब सिर्फ प्रदेश में समजावादी पार्टी और भाजपा की लड़ाई का वर्चस्व मान रही है। खैर जो भी हो ये नेता किस पार्टी का दामन थामेंगे या फिर कौन सी पार्टी खड़ी करेगें। यह तो वक्त ही बतायेगा। लेकिन इन नेताओं के अलग होने से विपक्ष को इससे काफी फायदा मिला है। जो आगामी विधानसभा चुनाव में यह एक अलग मुद्दा भी बन सकता है।