Saturday, September 9th, 2017 20:50:46
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इस वजह से राकेश रोशन ने अपना सिर मुंडवा लिया था




इस वजह से राकेश रोशन ने अपना सिर मुंडवा लिया थाEntertainment

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1995 में आई फिल्म ‘करण-अर्जुन’ का नाम याद आते ही वो फेमस डायलॉग “मेरे करण-अर्जुन आएँगे” न चाहते हुए भी जु़बां पर आ ही जाता है। याद आती है सलमान-शाहरूख की जोड़ी,राखी की अदाकारी और उस फिल्म के शानदार गाने। इस फिल्म के असली हीरो थे ‘राकेश रोशन’। राकेश अपनी फिल्मों की भव्यता और कहानियों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अनेक यादगार फिल्में बनाई। ‘कोई मिल गया’ का जादू हो या हवा में दौड़ता हुआ ‘क्रिश’, सब कुछ राकेश रोशन का ही कमाल है। यूं तो राकेश ने बतौर एक्टर फिल्मी दुनिया में कदम रखा था मगर उनकी डायरेक्ट की हुई फिल्मों ने उन्हें लेजेंड बना दिया। यही नहीं, अपनी फिल्में प्रोड्यूस करने के साथ-साथ राकेश ने उनकी कहानियां भी खुद लिखी। राकेश का नाम हिन्दी सिनेमा के प्रतिनिधि फिल्मकारों की सूची में शामिल है। आज 6 सितंबर को उनके जन्मदिन के अवसर पर जानते हैं उनकी ज़िन्दगी की कहानी-

राकेश रोशन का जन्म 6 सितंबर 1949 को हुआ था। उनके करियर की शुरूआत 1970 में आई फिल्म ‘घर-घर कि कहानी’ में सपोर्टिंग एक्टर के तौर पर हुई। देखा जाए तो उन्होंने लीड रोल या सोलो रोल्स कम ही किए। राकेश ने मन मंदिर, खेल-खेल में, बुलट, हत्यारा जैसी सफल फिल्मों में सपोर्टिंग एक्टर का रोल प्ले किया। वहीं आंख मिचौली, खूबसूरत, पराया धन, कामचोर में लीड एक्टर रहे। 1970 के दौर में ही राकेश जाने-माने कलाकार बन गए थे मगर उनका मन तो फिल्म निर्देशन के लिए मचल रहा था। वे कहते थे ‘‘हीरो बन कर तो हम डायरेक्टर के हाथों की कठपुतली होते हैं, एक दिन मैं अपनी कहानियां खुद बनाउंगा और तब पूरी फिल्म का कैनवास मेरा होगा’’। 1980 में उन्होंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘फिल्मक्राफ्ट’ शुरु की और पहली फिल्म ‘आपके दीवाने’ प्रोड्यूस की जो एक बड़ी फ्लॉप साबित हुई। उसके बाद उन्होंने ‘भगवान दादा’ में लीड रोल किया मगर वो भी फ्लॉप हो गई। वे डायरेक्टर बनना चाहते थे मगर उन्हें एक्टिंग करने की इच्छा भी उनके मन में जागती रहती थी। इस परेशानी से तंग आ कर एक दिन उन्होंने अपना सर मुंडवा लिया और फिल्मों में एक्टिंग करने का ख़्याल मन से निकाल दिया।

राकेश युग 

1987 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘खुदगर्ज’ का डायरेक्शन किया और शुरूआत हुई एक नए सफ़र की। एक साल बाद आई उनकी फिल्म ‘खून भरी माँग’ ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए और राकेश का सिक्का बुलंद कर दिया। फिर 1990 में ‘किशन-कन्हैया’ आई, वो भी सफल रही। उसके बाद तो राकेश रूके ही नहीं। उन्होंने मसाला फिल्में बनाई मगर कुछ ऐसे अंदाज़ में कि देखने वाले उन कहानियों में ही खो जाते थे। 1995 में उन्होंने सलमान खान और शाहरूख खान को ले कर ‘करण अर्जुन’ बनाई और इतिहास रच दिया। कहा जाता है कि राकेश बहुत अनुशासन प्रिय हैं और उन्हें जब तक परफेक्ट शॉट नहीं मिलता वे टेक पर टेक लेते रहते हैं। करण-अर्जुन के एक शॉट में उन्हें सूरज निकलने के साथ करण-अर्जुन के आने का सीन चाहिए था मगर दो दिन से बदली छाई हुई थी। पूरा क्रू चार दिनों तक लोकेशन पर बेमतलब बैठा रहा, पांचवे दिन सूरज निकला और शॉट लिया गया। राकेश रोशन एक गंभीर फिल्ममेकर के रूप में जाने जाते हैं। उनकी फिल्मों के सेट पर कोई लेट नहीं होता, खुद राकेश भी नहीं और उनके सुपरस्टार बेटे ऋतिक भी नहीं। ऋतिक के करियर को आसमान पर पहुंचाने का श्रेय भी राकेश को ही जाता है। जब-जब ऋतिक का करियर डगमगाया राकेश ने उन्हें फिर खड़ा किया।

राकेश रोशन

करण-अर्जुन के बाद राकेश ने एक फिल्म लिखी थी ‘कहो ना प्यार है’। ऋतिक तब एक्टिंग स्कूल में थे। क्लास के बाद अक्सर वे राकेश के पास सेट पर आ जाया करते थे और दोनों कहो ना प्यार है के लिए किस एक्टर को लेना चाहिए इस बात पर घंटो बतियाते थे। अंत में तय हुआ की इस फिल्म से किसी नए एक्टर को लॉन्च किया जाए और एक दिन राकेश अचानक बोल पड़े ‘‘बेटे ये फिल्म के हीरो तुम बनोगे’’। ऋतिक को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि राकेश ने कभी उन्हें एक्टर बनने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया था। ऋतिक ने कुछ वक्त मांगा और 6 महीने बाद फिल्म कि शूटिंग शुरू हो गई। जब फिल्म रिलीज़ हुई तो पूरा सिनेमा जगत हिल गया। फिल्म इतनी चली की लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हो गई। रातों-रात ऋतिक रोशन सुपरस्टार बन गए। कहो ना प्यार है ने बेहिसाब कमाई की। राकेश साल भर यहां-वहां अवॉर्ड लेते ही भटकते रहे। कहो ना प्यार है को कुल मिला कर 102 अवॉर्ड मिले। कहो ना.. कि सफलता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि राकेश रोशन को फिल्म के प्रॉफिट में शेयर के लिए धमकी भरे फोन आने लगे थे और पैसे न देने पर उन पर जानलेवा हमला भी हुआ था। उन्हें दो लोगों ने गोली मारी मगर शुक्र है कि राकेश बच गए। फिल्म का म्यूज़िक भी बेमिसाल था। ‘एक पल का जीना’ गाने का डांस तो आज भी ऋतिक का सिग्नेचर स्टेप माना जाता है। गौरतलब है कि राकेश की हर फिल्म में उनके भाई राजेश रोशन का भी हिस्सा होता है। बैकग्राउंड स्कोर किसी का भी हो, गाने तो राजेश के ही होते हैं।

राकेश – ऋतिक

कहो ना प्यार है के बाद राकेश तीन सालों के लिए गायब से हो गए थे। इसके बाद उनकी हर फिल्म में ऋतिक ही होते हैं। 2003 में वे फिर अपना जादू बिखेरने वापस आए, एक बिल्कुल नए कंसेप्ट के साथ और बनाई ‘कोई मिल गया’। एक बार फिर बाप-बेटे की इस जोड़ी ने दर्शकों से ले कर समिक्षकों तक सबका दिल जीत लिया। कोई मिल गया ने भी बहुत धुम मचाई। राकेश और ऋतिक दोनों को फिल्मफेयर अवार्ड से नवाज़ा गया। 2006 में ये जोड़ी फिर वापस आई, इस बार इंडियन सिनेमा का पहला सुपरहीरो लेकर। कोई मिल गया की अगली कड़ी ‘क्रिश’ आई। क्रिश भी सुपरहिट हुई।

राकेश ने फिर ऋतिक की फिल्म ‘काइट्स’ प्रोड्यूस की जो फ्लॉप हो गई। राकेश को इस बात से सदमा सा लगा मगर वे जल्द ही क्रिश की कहानी और आगे ले जाते हुए ‘क्रिश-3’ ले कर आए। जो सुपरहिट तो हुई मगर समीक्षकों ने फिल्म को सराहा नहीं। गौरतलब है कि राकेश की बनाई हर फिल्म ‘क’ से ही शुरू होती है। क्रिश-3 के आखिरी सीन को देखकर अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि राकेश क्रिश का अगला पार्ट भी बनाने वाले हैं। उम्मीद है राकेश रोशन का ये सफ़र यूं ही चलता रहे और हमारा मनोरंजन होता रहे।

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