आज अगर भगवान के भजन की बात की जाए और गुलशन कुमार का नाम न आए तो भजन का जिक्र अधूरा है। गुलशन कुमार हमारे देश की वो हस्ती थे जिन्होंने फर्श से लेकर अर्श तक का सफर तय किया। उन्होंने एक छोटी सी कैसेट बेचने की दुकान खरीदी और बाद में एक कैसेट निर्माता कंपनी के मालिक बने।
गुलशन कुमार को हम एक महान भजन गायक नहीं बोल सकते क्योंकि वे एक महान गीतकार थे। उनका म्यूजिक फिल्मों में, भजनों में दोनों में होता था। लोगों के बीच उनकी फैन फॉलोविंग काफी तगड़ी थी। भगवान के भजनों को अपनी मधुर आवाज में सुनाने वाले गुलशन कुमार 5 मई 1956 को जन्में थे और 12 अगस्त 1997 को उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
गुलशन कुमार के कैरियर के बारे में बात करें तो उनके पिता पहले एक सामान्य सी फ्रूट ज्यूस की दुकान चलाते थे। फिर उन्होंने एक कैसेट बेचने की दुकान को खरीदा। इस दुकान पर उन्होंने खुद के बनाए रिकॉर्ड भी कैसेट के माध्यम से बेचना शुरू किया। जब वे धीरे-धीरे पॉपुलर हुए तो उन्होंने सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज के नाम से खुद की म्यूजिक कंपनी शुरू की। कंपनी चल पड़ी। उनके गाए भजन लोगों को खूब पसंद आते थे।
गुलशन कुमार सिर्फ भजन गाकर ही नहीं रूके। उन्होंने अपना हाथ बॉलीवुड में भी आजमाया और फिल्मों में म्यूजिक दिया। फिल्म ‘आशिकी’ तो आपको याद ही होगी। इस फिल्म का संगीत गुलशन कुमार ने ही दिया। उनके नाम पर ‘दिल है कि मानता नहीं’ का भी संगीत है। वैसे तो उन्होंने कई सारी फिल्मों में संगीत दिया है लेकिन उनकी कुछ फिल्में ही सफल हो पाई।
गुलशन कुमार अपने संगीत में नदीम-श्रवण को हमेशा रखते थे। सच कहें तो उन्हें इस इंडस्ट्री में लाने वाले और काम दिलाने वाले गुलशन कुमार ही थे। नदीम उन्हें प्यार से ‘पापा’ कहा करते थे। गुलशन कुमार उन दिनों अपनी सफलता के सर्वोच्च शिखर पर थे। उनके चाहने वालों की संख्या लाखों-करोड़ों में थी वहीं उससे भी ज़्यादा संख्या उनसे जलने वालों की भी थी।
12 अगस्त 1997 को उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। उन पर हमला उस समय किया था जब वे मुम्बई के जीतेश्वर महादेव के मंदिर में पूजा करने के लिए गए थे। इस मामले में नदीम-श्रवण संगीतकार जोड़ी नदीम सैफ का नाम सामने आया था।
-गुलशन कुमार मर्डर केस की जांच कर रही मुंबई पुलिस के अनुसार गुलशन की हत्या करने के लिए नदीम ने दाऊद इब्राहिम की मदद ली थी। दाऊद के मर्चेंट और उसके साथी अब्दुल रशीद ने मंदिर के बाहर गुलशन पर गोली चलाई थी। हालांकि गुलशन के मर्डर के दौरान नदीम लंदन में था। उसके बाद वह लंदन में जाकर रहने लग गया था।
नदीम को वापस भारत लाना चाहती थी सरकार
-गुलशन की हत्या के बाद से ही भारत सरकार नदीम को भारत लाने की कोशिश कर चुकी है। लेकिन उस समय सरकार को कामयाबी नहीं मिली। इसका कारण यह था कि ब्रिटेन की हाईकोर्ट ने नदीम के पक्ष में फ़ैसला सुनाते हुए कहा था कि नदीम पर हत्या का आरोप किसी साजिश के तहत लगाया गया था। इसी के साथ नदीम को भारत वापस लाने का मामला खारिज हो गया था।
-वहीं दूसरी ओर पुलिस भी अदालत में इस मामले में नदीम के शामिल होने के आरोप को साबित नहीं कर पाई थी। इसका कारण यह था कि जब पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी उस समय नदीम लंदन में था। सूत्रों की माने तो नदीम-श्रवण की जोड़ी को संगीत और बॉलीवुड की दुनिया में लाने वाले गुलशन कुमार ही थे। लेकिन कुछ समय बाद ही नदीम का गुलशन कुमार के साथ विवाद हुआ था।
2002 में मुम्बई कोर्ट ने दाऊद मर्चेंट को माना था दोषी
-इस मामले में साल 2002 में मुम्बई की एक अदालत ने 19 आरोपियों में से केवल एक ही व्यक्ति को दोषी ठहराया था और वह कोई और नहीं बल्कि अब्दुल रउफ दाऊद मर्चेंट था। इस हत्या के लिए कोर्ट ने उसे उम्र कैद की सजा सुनाई थी। लेकिन साल 2009 में कोर्ट ने दाऊद मर्चेंट को 14 दिन की पैरोल पर छोड़ा था। दाऊद मर्चेंट की ओर से बताया गया था कि उसके किसी परिवार के सदस्य की हालत ठीक नहीं है।
-इस बात को जानने के बाद कोर्ट ने मर्चेंट को इस शर्त पर छोड़ा था कि वह हर दिन थाने में हाजिरी देगा। शुरुआत के सात दिनों तक तो दाऊद मर्चेंट थाने में आया लेकिन सात दिनों के बाद वह अचानक गायब हो गया। मर्चेंट का नाम सामने आने के बाद नदीम का मामला वहीं खत्म हो गया। हालांकि नदीम के गिरफ़्तारी के वारंट को अब तक वापस नहीं लिया गया।
बांग्लादेश पुलिस ने दाऊद मर्चेंट को किया था गिरफ़्तार
-खुफिया पुलिस की जांच में पता चला था कि वह बांग्लादेश भाग गया है। बांग्लादेश जाने पर अब्दुल रउफ को वहां की पुलिस ने नकली बांग्लादेशी पासपोर्ट रखने के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया था। उस समय लेकर अब तक वह जेल में ही रहा है। इसी बीच भारत सरकार ने उसे भारत लाने की कोशिश की लेकिन सरकार उसे ला न सकी।
क्यों हुई थी गुलशन कुमार की हत्या?
-इस मामले की जांच कर रही पुलिस के अनुसार गुलशन कुमार की कैसेट कम्पनी टी सीरीज की कामयाबी को देखते हुए गुलशन से बड़ी रकम की मांग की गई थी। लेकिन गुलशन ने इस रकम को देने से इन्कार कर दिया था।