उड़न परी पायोली एक्सप्रेस, स्वर्ण परी जैसे नामों से पहचाने जाने वाली पीटी उशा जिनका आज जन्मदिन हैं, इनकी प्रसिद्धी को किसी परिचय की जरुरत नहीं है। पीटी उशा जिनका पूरा नाम पिलावुल्लकन्डी थेकापराम्विल उशा ने खेलों के इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराया है। कम उम्र में ही इनके जीवन से जुड़ी बड़ी उपलब्धियां हैं, जिनके बारे में जानकर आश्चर्य होता है, एक महिला के लिए इतना सब कुछ हासिल कर पाना कैसे संभव हुआ। देश दुनिया कि अनेक महिला खिलाड़ी पीटी उशा को अपनी प्रेरणास्त्रोत मानती हैं। जानते हैं इनके जीवन से जुड़ी बातों को करीब से
4वीं कक्षा में 7वीं की छात्रा से दौड़ में जीती
पीटी उशा का जन्म केरल के कोजिकोंड जिले के पय्योली ग्राम में हुआ था। माता-पिता लक्ष्मी और पैतल की ये 6 संतानों में से एक हैं। इनके पिता कपड़े के व्यापारी रहे। उन्हें बचपन से ही कठिन काम करने में खुशी होती थी, जैसे ऊंची चारदीवारी फांदना उन्हें बचपन में ही अच्छा लगने लगा था। खेलों में उनकी रुचि तब बढ़ी जब वह कक्षा 4 में पढ़ती थीं और उनके व्यायाम के शिक्षक ने उन्हें 7वीं कक्षा की चैंपियन के साथ दौड़ा दिया, इस दौड़ में उशा जीत गई थी। 1991 में इनका विवाह श्रीनिवास से हुआ। ये अपने पुत्र उज्जवल को एथलीट के क्षेत्र में आगे बढ़ाना चाहती हैं।
राज्य के पहले खेल स्कूल से जुड़ी
1976 में केरल राज्य सरकार ने महिलाओं के लिए जीवी रजा खेल विद्यालय खोला और उशा को अपने जिले का प्रतिनिधि चुना गया। ये उनकी पहली बड़ी उपलब्धि थी। उशा अनेक विरोधों के बावजूद 1976 में कन्नूर के खेल विभाग में शामिल हो गई। उसने बाद ओएम नाम्बियार ने उनके कोच के रुप में उनको चैंपियन बनाने के लिए बड़ी मेहतन की।
लंबी टांगो के बदौलत जीते कई पदक
अपने लंबे नाम के अनुसार ही पीटी उशा की टांगे भी खूब लम्बी हैं, जिनके कारण उन्होंने दौड़ में अनेकों पदक हासिल किए। लगभग दो दशक तक वे भारतीय एथलेटिक्स पर छाई रहीं। उन्होंने विश्व स्तर पर भारतीय महिला एथलीटों की उपस्थिति को दर्ज कराया था।
1980 में हुई कैरियर कि शुरुआत
पीटी उशा भारतीय महिला टीम की शान रही हैं। उन्होने 1980 के मास्को ओलंपिक से अपना कैरियर शुरु किया था। उस वक्त उन्होंने सिर्फ 100 मीटर की फर्राटा दौड़ में हिस्सा लिया था, इसके बाद 1982 में एशियाई खेलों में पहली बार भारत के लिए 2 रजत पदक जीते थे। 1983 में कुवैत में आयोजित एशियाई ट्रैक एंड फील्ड मीट में पीटी उशा ने 400 की दौड़ में स्वर्ण और 200 मीटर की दौड़ में रजत पदक जीता था। इसके बाद 1984 में लॉस एंजिल्स में ओलंपिक मेडल जीतने .001 से वंचित रह गई, जिसके बारे में हम सभी जानते हैं।
अपनी एक हार को बदला सुपर कामयाबी में
1984 में ओलंपिक के यादगार प्रदर्शन के बाद उशा ने अपने प्रदर्शन में और मेहनत लगा थी, जिसका असर कुछ ऐसा रहा की वे पूरी दुनिया में छा गई। 1985 के जकार्ता में आयोजित एशियन ट्रैक एण्ड फील्ड मीट में पांच स्वर्ण जीत कर स्वर्ण परी का खिताब उन्होंने पाया। उस स्वर्णिम यादगार प्रदर्शन के बाद पीटी उशा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद इन्होंने जाने कितने ही खेलों में हिस्सा लिया और ज्यादातर स्वर्ण पदक हासिल किए। इनके चर्चे देश-दुनिया में होंने लगे। सभी के लिए स्वर्ण परी एक आष्चर्य बन गई।
बेहतर प्रदर्शन पर मिले ये पुरस्कार
-अर्जुन पुरस्कार विजेता
-जकार्ता एशियाई दौड़ प्रतियोगिता की महानतम महिला धाविका
-पद्म श्री
-एशिया की सर्वश्रेश्ठ धाविका 1984 से 1990 तक
– सर्श्रेश्ठ रेलवे खिलाड़ी के लिए मार्शल टीटो पुरस्कार
-सियोल एशियाई खेल में सर्वश्रेश्ठ धाविका होने पर अदिदास स्वर्णिम पादुका ईनाम
– दौड़ में श्रेश्ठता के लिए 30 अंतर्राश्ट्रीय इनाम
– केरल खेल पत्रकार इनाम
– सर्वश्रेश्ठ धाविका के लिए विश्व ट्रॉफी
पीटी उशा के जीवन को सारंश में समझे तो यही नजर आता है, कि मेहनत करने वालों के आगे खुदा भी झुक जाता है। आज पीटी उशा केरल में एथलीट स्कूल चला ही हैं। जहां वे यंग एथलीट को ट्रेनिंग दिया करती हैं। इनकी प्रतिभा का देशवासी सम्मान करते हैं, साथ ही उनके अपने प्रोफेशन के प्रति जस्बे को सलाम करते हैं।