बचपन में ऐसी नादानियां करते थे सचिन, ग्रिल में फंसा ली थी गर्दन
साल 2011 मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में जब भारत ने वर्ल्डकप जीता तो हर किसी का सीना चौड़ा हो गया, हर किसी ने खुशी मनाई, हर किसी की आंखों में खुशी के अांसू थे और उसी दिन स्टेडियम में एक खिलाड़ी का बरसो पुराना सपना भी सच हुआ था। वो सपना जो उसने और कई और क्रिकेटर्स ने रात-दिन देखा था।
वर्ल्डकप जीतने के हर खिलाड़ी के चेहरे पर खुशी थी लेकिन एक प्लेयर ऐसा था जिसकी आंखों में आंसू थे और वो खिलाड़ी था सचिन तेंदुलकर। जी हां! क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर जिसने बचपन में सपना देखा था कि उसे वर्ल्डकप लाना ही लाना है उसका ये सपना जब सच हुआ तो वो अपने आंखों के आंसूओं को नहीं रोक पाया।
वही क्रिकेट के भगवान और आपके हमारे सबके प्यारे सचिन तेंदुलकर अब 44 साल के हो गए है। सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट के मैदान पर कई रिकॉर्ड बनाए। उनके लिए क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं बल्कि मंदिर जाने जैसा था। क्रिकेट में लगभग 34,347 रन बनाने वाले सचिन का जन्म मुंबई में 24 अप्रैल, 1973 को एक मराठी परिवार में हुआ था। सचिन अपने घर में सबसे छोटे और बेहद जिद्दी भी थे।
अपनी बायोग्राफी में सचिन ने इस जिद्दीपन का जिक्र भी किया है। बचपन में उनके दोस्त साइकिल चलाते थे, लेकिन सचिन के पास साइकिल नहीं थी। उन्होंने अपने पिता रमेश तेंदुलकर, जो एक मराठी कवि थे उनसे साइकिल खरीदने को कहा, लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उनके पिता ने इस बात को टाल दिया था। इस बात से सचिन इतने नाराज हुए कि सप्ताह भर घर से बाहर खेलने नहीं गए और घर की बालकनी से ही अपने दोस्तों को साइकिल चलाते हुए देखते थे।
इसी दौरान उनका सिर बालकनी की ग्रिल में फंस गया था। सचिन ने इस घटना का जिक्र अपनी किताब ‘प्लेइंग इट माई वे’ में भी किया है। सचिन किताब के पहले अध्याय ‘चाइल्डहुड’ में लिखते हैं, “मैं बचपन में काफी जिद्दी था। मेरे कई दोस्तों पर साइकिल थी और मैं भी साइकिल चाहता था। मेरे पिता को मुझे न कहना अच्छा नहीं लगता था। मैंने जब उनसे कहा कि मुझे साइकिल चाहिए, तो उन्होंने मुझसे कहा कि कुछ दिनों में वह मुझे साइकिल दिला देंगे। आर्थिक तौर पर चार बच्चों को पालना बेहद मुश्किल होता है।”
बकौल सचिन, “बिना इस बात को जाने की मेरे पिताजी को इसके लिए क्या करना होगा, मैं साइकिल की जिद पर अड़ा रहा और मैंने साइकिल न आने तक बाहर खेलने जाने से मना कर दिया। मैं सप्ताह भर तक बाहर खेलने नहीं गया। मैं बालकनी में ही खड़ा रहकर अपने दोस्तों को देखता था।” सचिन लिखते हैं, “एक दिन मैंने अपने माता-पिता को डराने वाला अनुभव दिया।
हम चौथी मंजिल पर रहते थे, जिसकी बालकनी छोटी थी और उसमें ग्रिल थी। मैं उसके ऊपर से नहीं देख सकता था। इसलिए बाहर अच्छे से देखने के लिए मैंने ग्रिल में अपना सिर डाला। मैं अपना सिर उस ग्रिल में डालने में तो सफल रहा लेकिन, मैं उसमें सिर को बाहर नहीं निकाल पाया। मैं 30 मिनट तक उसमें फंसा रहा। मेरे घर वाले बेहद परेशान हो गए थे। काफी कोशिशों के बाद मेरी मां ने खूब सारा तेल डालने के बाद मेरा सिर उस ग्रिल में से बाहर निकाला।”
सचिन ने किताब में लिखा है, “मेरी जिद को देखते हुए और इस बात के डर से कि मैं कहीं दोबारा ऐसा कुछ न कर बैठूं, मेरे पिता ने किसी तरह पैसे इकट्ठा कर मुझे नई साइकिल खरीद कर दी। मैं अभी तक नहीं जानता कि उन्होंने साइकिल के लिए क्या किया था?” सचिन हालांकि, ज्यादा देर तक साइकिल की खुशी नहीं बना पाए थे, क्योंकि साइकिल आने के कुछ घंटे बाद ही सचिन का साइकिल से एक्सीडेंट हो गया था। सचिन को चोटें लगी थी। उनके पिता ने उनसे कहा था कि जब तक वह पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाते तब तक साइकिल नहीं चलाएंगे।
इस बार सचिन को अपने पिता की बात माननी पड़ी। इस बात का जिक्र भी सचिन ने अपनी किताब में किया। शायद यहीं जिद है, जो सचिन के सफर को 2011 की विश्व कप जीत तक ले गई। हाल ही में उनके जीवन पर आधारित फिल्म ‘सचिन : ए बिलियन डॉलर ड्रीम्स’ का ट्रेलर लॉन्च हुआ है। यह फिल्म 26 मई, 2017 को रिलीज होगी। इस फिल्म के बारे में सचिन ने कहा, “यह मेरे क्रिकेट करियर को ही नहीं दिखाती, बल्कि इसमें कई अलग-अलग चीजें और हमने इन सभी चीजों को साथ में दिखाने की एक कोशिश की है।”
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