‘चुनावी सिम्बल के दंगल’ में अखिलेश ने मुलायम को ऐसे दी पटखनी
- - Advertisement - -
पिछले कई समय से समाजवादी पार्टी में चल रहा पॉलिटिकल फैमिली ड्रॉमा अब एक नए मोड़ में तब्दील हो चुका है। लम्बे समय से चल रहे विवाद में काफ़ी उतार चढ़ाव देखने को मिले। बदलते समय के साथ पिता-पुत्र के रिश्ते इस कदर बदल गए जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। दोनों के रिश्ते में धीरे-धीरे इस कदर दरार पड़ी कि जिस बेटे को पिता राजनीति में लाएं थे उसे ही उन्होंने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। हालांकि 24 घंटे से भी कम समय में मुलायम ने पार्टी के अन्य सदस्यों की सहमति से एक बार फिर बेटे अखिलेश को पार्टी में पनाह दे दी थी।
मुलायम के इस व्यवहार के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि अब समाजवादी पार्टी का विवाद थम गया। लेकिन सभी कयासो को दूर करते हुए एक बार फिर मुलायम और अखिलेश की लड़ाई सामने आई। आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए दोनों में पार्टी के सिम्बल को लेकर लड़ाई शुरू हो गई।
फिर क्या था दोनों का विवाद चुनाव आयोग के पास पहुंचा। जहां पर चुनाव आयोग ने तथ्यों को देखते हुए अखिलेश को साइकिल थमा दी। लेकिन अब यहां पर यह सवाल उठना लाजिमी है कि 45 साल से ज़्यादा का राजनीतिक अनुभव रखने वाले मुलायम अपने बेटे से ही कैसे पटखनी खा गए।
मुलायम सिंह यादव की बदौलत ही समाजवादी पार्टी की साइकिल 25 सालों तक चल पाई। लेकिन जब बात साइकिल के दावेदार की बात हुई तो वह अपने ही बेटे से मात खा गए। इसका सबसे पहला और बड़ा कारण यह था कि चुनावी सिम्बल के दंगल में पार्टी का बहुमत मुलायम के बेटे और यूपी सीएम अखिलेश यादव के पक्ष में चला गया। इस बात का खुलासा चुनाव आयोग को दिए गए शपथपत्र से हुआ।
बता दें कि आयोग ने 9 जनवरी को मुलायम और अखिलेश को समूह से समर्थन के संबंध में शपथ पत्र मांगा था। जहां अखिलेश के समर्थन में 4716 विधायकों और सांसदों ने आयोग में शपथपत्र दाखिल किया तो वहीं दूसरी ओर मुलायम के समूह की ओर से केवल मुलायम का ही शपथ पत्र दाखिल किया गया था।
जिसके बाद आयोग ने 1968 के इलेक्शन सिंबल ऑर्डर के मुताबिक, संख्या बल के आधार पर यूपी सीएम अखिलेश यादव के पक्ष में अपना फ़ैसला दे दिया। ग़ौरतलब है कि समाजवादी पार्टी में झगड़ा उस समय और बढ़ गया था जब पार्टी के एक बड़े समूह ने अखिलेश को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया।
- - Advertisement - -