इस बार मकर संक्रान्ति 14 जनवरी यानि शनिवार को है और संक्रान्ति का अपना अलग महत्व है। इस त्यौहार को पूरे उत्तर भारत में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और नए साल पर अच्छे दिनों की शुरूआत हो जाती है। मकर संक्रांति की सुबह सूर्य की उपासना की जाती है। इस साल ये त्योहार खास संयोग पर है।
तिल और गुड़ का ख़ास महत्व
शनिवार को सूर्य मकर राशि में आ रहा है। इसे काफी शुभ माना जा रहा है। वैसे तो इस दिन कई ऐसी चीजें हैं जो खाई जाती हैं, जैसे मूंगफली, दही चुड़ा, गुड़, तिल के लड्डू और खिचड़ी। लेकिन तिल और गुड़ का खास महत्व होता है। आइए हम आपको आज इस दिन तिल, गुड़, खिचड़ी के सेवन के महत्व के बारे में बताते हैं।
खिचड़ी भी खाते है लोग
इस दिन कई जगहों पर आपने देखा होगा कि लोग गुड़ और तिल्ली के लड्डू तो बनाते ही है पर साथ ही कुछ घरों में खाना नहीं बनाया जाता। इस दिन कई सारे घरों में खिचड़ी बनाने का भी रिवाज़ है। कहा जाता है कि इस दिन नए चावल से बनी खिचड़ी बहुत ही शुभ होती है। दरअसल, इसके पीछे एक धार्मिक और एक वैज्ञानिक कारण है।
ये है तिल गुड़ का महत्व
इस त्योहार पर घर में तिल्ली और गुड़ के लड्डू बनाए जाने की परंपरा है। इसके अलावा भी सफेद और काली तिल्ली के लड्डू बनते हैं। खोई, चिड़वा और आटे के लड्डू भी बनते हैं। दरअसल, ऐसी मान्यता है कि इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत होती है, तो कड़वी बातों को भुलाकर नई शुरुआत की जाती है। इसलिए गुड़ से बनी चिक्की, लड्डू और, तिल की बर्फी खाई जाती है।
सर्दियों में फायदेमंद है तिल गुड़
तिल और गुड़ के लड्डू को अगर सेहत के हिसाब से देखा जाए तो ये सर्दियों में आपके लिए काफी फायदेमंद होते है। सर्दियों में शरीर का तापमान गिर जाता है ऐसे में बाहरी तापमान से अंदरूनी तापमान को बैलेंस करना होता है। तिल और गुड़ गर्म तासीर के होते है इसलिए ये सर्दियों में फायदेमंद होते है। वैज्ञानिकों के मुताबिक तिल खाने से शरीर गर्म रहता है और इसके तेल से शरीर को भरपूर नमी मिलती है।
इसलिए खाते है खिचड़ी
इस दिन कई जगह पर खिचड़ी खाने का भी रिवाज है जिसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इसके पीछे भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाले बाबा गोरखनाथ की कहानी है। खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था। इससे योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और कमजोर हो रहे थे।
इस समस्या का हल निकालने के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी। यह व्यंजन काफी पौष्टिक और स्वादिष्ट होता था। इससे शरीर को तुरंत उर्जा मिलती थी। नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रख दिया।
तो अब तो आप जान ही गए होंगे कि मकर संक्रान्ति पर तिल के लड्डू और खिचड़ी क्यों खाते है तो इसे दूसरों को भी बताइये और जितना हो सके सोशल मीडिया पर शेयर किजिए।