जाति के आधार पर आरक्षण होना चाहिए या नहीं? ये एक ऐसा सवाल है जिस पर हम और आप रोज़ बहस करते हैं। लेकिन इस मुद्दे पर होने वाली बहस का अब तक कोई अंत नज़र नहीं आ रहा है। अब तो मराठा समाज में भी आरक्षण को लेकर आंदोलन की आग दहक उठी है।
मराठा समाज ऐसा पहला समाज नहीं है जिसने आरक्षण की मांग की है इससे पहले भी कई जाति के लोग सरकार से आरक्षण की मांग कर चुके हैं। सभी जातियों ने आरक्षण की मांग के लिए आंदोलन को ही अपना हथियार बनाया है। फर्क सिर्फ़ इतना है कि किसी का आंदोलन हिंसक था तो किसी ने शांतिपूर्ण ठंग से आंदोलन का आयोजन किया। यहां हम आपको बताएंगे कि कब-कब कौन-सी जातियों के लोगों ने सरकार से आरक्षण की मांग की लेकिन इसके पहले आपको बताते हैं कि आरक्षण की शुरुआत कैसे हुई…
भारत में आरक्षण की शुरुआत
आजादी के पहले प्रेसिडेंसी रीजन और रियासतों के एक बड़े हिस्से में पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए आरक्षण की शुरुआत हुई थी। महाराष्ट्र में कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति साहूजी महाराज ने 1901 में पिछड़े वर्ग से गरीबी दूर करने और राज्य प्रशासन में उन्हें उनकी हिस्सेदारी (नौकरी) देने के लिए आरक्षण शुरू किया था। यह भारत में दलित वर्गों के कल्याण के लिए आरक्षण उपलब्ध कराने वाला पहला सरकारी आदेश है। 1908 में अंग्रेजों ने प्रशासन में हिस्सेदारी के लिए आरक्षण शुरू किया। 1921 में मद्रास प्रेसिडेंसी ने सरकारी आदेश जारी किया, जिसमें गैर-ब्राह्मण के लिए 44 फीसदी, ब्राह्मण, मुसलमान, भारतीय-एंग्लो/ईसाई के लिए 16-16 फीसदी और अनुसूचित जातियों के लिए 8 फीसदी आरक्षण दिया गया। 1935 में भारत सरकार अधिनियम 1935 में सरकारी आरक्षण को सुनिश्चित किया गया। 1942 में बाबा साहब अम्बेडकर ने सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मांग उठाई। अब देश की कई जातियां आरक्षण चाहती हैं।
महाराष्ट्र का मराठा आंदोलन
मराठा समाज के मूक क्रांति आंदोलन में भीड़ लगातार बढ़ती ही जा रही है। इस भीड़ ने सरकार के होश उड़ा दिए हैं। कोपर्डी बलात्कार की घटना के बाद मराठा समाज के लोगों ने इस तरह का मूक क्रांति मोर्चा शुरु किया था। पूरी तरह से सोशल मीडिया के माध्यम से चलने वाले इस आंदोलन में न तो कोई नारेबाजी होती है और न ही मंच लगाया जाता है। भाषण भी नहीं दिए जाते हैं। यहां तक कि बैनर पोस्टर तक लाने की किसी को अनुमति नहीं है। आयोजक जिसे जो देते हैं आंदोलनकारी वही लेकर चलते हैं। लोग बड़े ही अनुशासित तरीके से कतारबद्ध होकर चलते हैं। मराठा समाज का पहला आंदोलन 9 अगस्त को औरंगाबाद में हुआ था जिसे उम्मीद से कहीं ज्यादा सफलता मिली थी। लेकिन मीडिया ने इसे तवज्जो नहीं दी थी लेकिन जब शुक्रवार को अहमदनगर में निकाले गए मोर्चे में भीड़ से सारा अहमदनगर भर गया तब ये मामला प्रकाश में आया।
गुजरात का पटेल आंदोलन
6 जुलाई 2015 को मेहसाना में पटेलों की एक रैली हुई। केवल पांच हजार लोग थे। न इसकी ज्यादा चर्चा हुई, न मीडिया ने ज्यादा तवज्जो दी। दो दिन बाद ही मेहसाना के पास विषनगर में दूसरी रैली हुई। विषनगर के पाटीदारों को सबसे ज्यादा ग़ुस्सैल माना जाता है। यहां भी पांच हजार लोग ही आए लेकिन इस रैली के दौरान वहां के विधायक ऋषिकेश पटेल के कार्यालय पर हमला हो गया। यही वजह थी कि मीडिया ने इस रैली को कवर किया। आरक्षण आंदोलन के मात्र 22 वर्षीय नेता हार्दिक पटेल का कहना था कि हर क़ौम में कुछ धनवान होते हैं तथा ज्यादातर गरीब और ज़रूरतमंद। पटेलों में भी ऐसा ही है। पैसे वाले पटेल तो वैसे भी क्रीमीलेयर के कारण आरक्षण से बाहर हो जाएंगे। हम गरीब और ज़रूरतमंदों के लिए आरक्षण मांग रहे हैं। ये आंदोलन काफी हिंसक था और आंदोलन का नेतृत्व करने वाले हार्दिक पटेल को इसके लिए जेल भी हुई थी। आगे की स्लाइड में जानिए गुर्जर, जाट और कापू आंदोलन के बारे में –