Saturday, September 23rd, 2017 16:59:48
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ये है माता के शक्तिपीठों की कहानी…




ये है माता के शक्तिपीठों की कहानी…Art & Culture

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देशभर में माता का पर्व शुरू होने वाला है। और 8 अप्रैल से चैत्र नवरात्र का आरंभ होगा। इस बार चैत्र नवरात्री आठ दिन की ही रहेगी। इन सब के साथ भारतीय पचांग का नया साल भी शुरू हो जाएगा। माता के पर्व की धूम वैसे तो पूरे शहर में रहती हैं। पूरे नौ दिन तक कई लोग श्रद्धा पूर्वक उपवास रखते है। माता के नौ रूपों की पूजा-आराधना करते है। हालांकि अब जमाना बदल गया है और नई पीढियों में प्राचीन मान्यताएं निभाने जैसी बात नहीं रही है, लोग धार्मिक अनुष्ठानों से अनजान हैं लेकिन, पूजा करना उनके जीवन से हमेशा जुडा रहा है। और इस तरह के मौके पर ही युवाओं के मन मे सवाल आते है कि नवरात्रों का क्या महत्व है, भारत के अलावा भी क्या कही पर नवरात्री मनाया जाता है। शक्तिपीठ कैसे बनें। तो हम आपको बताएंगे की भारत में नवरात्री का क्या महत्व है। और शक्तिपीठ की स्थापना कैसे हुई थी।

>> नवरात्री की महिमा

प्राचीन काल से ही भारत में संस्कृत भाषा का महत्व रहा है। संस्कृत शब्द, हिंदुत्व में मान्य वैसे भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, फिर भी कुछ संप्रदायों में यह मान्य न होकर दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म हिंदूओं में ही प्रचलित है। नवरात्री जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि माता की अराधाना की नौ राते। इन नौ रात्रि शक्ति (देवी) के नौ रूपों की पूजा की जाती है।

1. श्री शैलपुत्री -इसका अर्थ-पहाड़ों की पुत्री होता है।

2. श्री ब्रह्मचारिणी -इसका अर्थ-ब्रह्मचारीणी।

3. श्री चंद्रघंटा -इसका अर्थ-चाँद की तरह चमकने वाली।

4. श्री कूष्माडा -इसका अर्थ-पूरा जगत उनके पैर में है।

5. श्री स्कंदमाता -इसका अर्थ-कार्तिक स्वामी की माता।

6. श्री कात्यायनी -इसका अर्थ-कात्यायन आश्रम में जन्मि।

7. श्री कालरात्रि -इसका अर्थ-काल का नाश करने वली।

8. श्री महागौरी -इसका अर्थ-सफेद रंग वाली मां।

9. श्री सिद्धिदात्री -इसका अर्थ-सर्व सिद्धि देने वाली।

शक्तिपीठों के बनने का राज

नवरात्र में शक्तिपीठ की महिमा निराली होती है। मां के स्थानों को शक्तिपीठ कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जहां पर भगवान शिव की पत्नी सती देवी के अंग गिरे थे। उन स्थानों को शक्तिपीठ कहा जाता है। भगवान शिव की पत्नी सती देवी राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री थी। राजा दक्ष ने हरिद्वार के कनखल में “बृहस्पति सर्व’ यज्ञ किया था। इसमें सभी देवी-देवताओं को बुलाया गया था लेकिन दक्ष ने जानबूझकर भगवान शिव को आमंत्रित नही किया था। इससे क्रोधित होकर माता सती यज्ञस्थल पर पहुंचीं। उन्होंने अपने पति भगवान शिव को आमंत्रित नहीं करने का पिता से कारण पूछा और अपना उग्र विरोध प्रकट किया। इसी विरोध पर क्रोधित होकर राजा दक्ष ने भगवान शिव को अपशब्द कहे तो अपमान से दुखी होकर सती देवी हवन कुंड की आग मे कूद गई। इसी बात को लेकर भगवान शिव क्रोधित हुए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। वे हवन कुंड में से उनकी देह निकालकर इधर-उधर घूमने लगे। कहते हैं उस समय देवी सती के अंग, वस्त्र और आभूषण जहां-जहां गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। अगले जन्म में माता सती ने राजा हिमाचल के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया और भगवान शिव को फिर पति रूप में पाया।

भारत के साथ बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और पाकिस्तान में कुल 52 शक्तिपीठ है। इनमें से 42 भारत में है। कुल शक्तिपीठों को लेकर काफी मतभेद भी है। वैसे तो देश भर में 42 शक्तिपीठ है लेकिन कुछ ऐसे भी है जहां पर भक्त अपनी मन्नतों के लिए ज्यादा जाते है ऐसे ही कुछ शक्तिपीठ हम आपको बताने वाले है। जहां पर ज्यादा भीड़ जुटती है।

1. कुरुक्षेत्र- 52 शक्तिपीठों में से एक कुरूक्षेत्र स्थित भद्रकाली शक्तिपीठ है। यहां माता का दाया टखना गिरा था। यहां पर सावित्री माता और स्थाणु नाम के भैरव की साथ में पूजा होती है।

2. वृंदावन- वृंदावन में स्थित शक्तिपीठ को उमा शक्तिपीठ कहते है। यहां माता के केश गिरे थे। यहां इनकी पूजा उमा जी के रूप में होती है।

3. प्रयाग- प्रयाग में स्थित शक्तिपीठ को ललिता देवी मंदिर के रूप में जाना जाता है। माना जाता है कि यहां पर माता की हाथ अंगुलिया गिरी थी। यहां पर माता की पूजा ललिता देवी के नाम से भव नामक भैरव के साथ होती है।

4. वाराणसी- वाराणसी में स्थित शक्तिपीठ को विशालक्ष्मी मंदिर के रूप में जाना जाता है। यहां पर कर्ण मणि गिरी थी। यहां विशालाक्षी माता की पूजा होती है, कालभैरव के साथ।

Suchindrum Temple

5. शुचि- यहां पर इसे मां नारायणी सुचिंद्रम शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। तमिलनाडु के शुचीन्द्रम में दांत गिरने के संकेत हैं। कुछ विद्वान यहां पृष्ठभाग गिरने की बात भी कहते हैं। यहां नारायणी की पूजा होती है, संहार या संकूर नामक भैरव के साथ।

jalndhar

6. त्रिपुरमालिनी माता- जालन्धर में स्थित इस शक्तिपीठ को त्रिपुरमालिनी मां शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। यहां पर माता का बायां स्तन गिरा था। यहां त्रिपुरमालिनी माता की पूजा भीण नाम के भैरव के साथ होती है।

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7. शिवकाशी- तमिलनाडु के शिवकाशी में स्थित इस शक्तिपीठ का नाम कांची शक्तिपीठ हैं यहां पर माता का कंकाल गिरा था। देवगर्भा नाम से माता की पूजा होती है।

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8. कश्मीर- कश्मीर में स्थित इस शक्तिपीठ का नाम शारदापीठ है। यहां पर माता का कंठ गिरा था। यहां पर माता की पूजा महामाया नाम से त्रिसंध्येश्वर भैरव के साथ होती है।

Maa Ambika

9. ज्वालामुखी- हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित इस शक्तिपीठ को ज्वालामुखी शक्तिपीठ कहते है। मंदिर में माता की जीभ गिरी थी। माता की पूजा उन्मत्त नाम के भैरव के साथ होती है।

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10. हिंगुला- पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान में स्थित इस शक्तिपीठ का नाम हिंगुला है। यहां पर माता का ब्रहारंध्र गिरा था। इस जगह पर कोटटरी माता तथा भीमलोचन नाम के भैरव के साथ पूजा होती है।

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