ऐसे स्कूल जहाँ विद्यार्थी अपने परिवार से दूर गुरू के परिवार का हिस्सा बनकर शिक्षा हासिल करता है। भारत के प्राचीन इतिहास में ऐसे स्कूल का बहुत महत्व था। प्रसिद्ध आचार्यों के गुरुकुल के पढ़े हुए छात्रों का सब जगह बहुत सम्मान होता था। ‘गुरुकुल’ का शाब्दिक अर्थ है ‘गुरु का परिवार’ अथवा ‘गुरु का वंश’। लेकिन इन सभी में सिर्फ लड़कों को ही शिक्षा दी जाती थी। लेकिन बाद में लड़कियों के लिए गुरुकुल खुलने लगे।
देश के कुछ ही शहरों में छात्राओं व लड़कियों के लिए गुरुकुल हैं, जहां उन्हें वैदिक काल की तरह आश्रम में रहकर शिक्षा-दीक्षा दी जाती हो। वाराणसी में एक शैक्षणिक संस्थान है जो लड़कियों के लिए पारंपरिक गुरुकुल की तरह है। हालांकि, राजस्थान के वनस्थली विद्यापीठ से बिल्कुल अलग है मां आनंदमयी कन्यापीठ। क्योंकि यहां की लड़कियों को ब्रह़मचारिणी जीवन जीना होता है। मां आनंदमयी कन्यापीठ की एक शाखा नैमिसारण्य, सीतापुर में भी है।
वाराणसी के भदैनी स्थित मां आनंदमयी कन्यापीठ की स्थापना 79 साल पहले सितम्बर 1938 में की गई थी। लड़कियों के इस गुरुकुल में शिक्षा और पारंपरिक धार्मिक शिक्षा दी जाती है। गुरुकुल में लड़कियों और शिक्षिकाओं के रहने की भी व्यवस्था होती है। बता दें पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस कन्या विद्यापीठ का दौरा कर चुके हैं। मां आनंदमयी पीठ की एक संस्था हरिद्वार के कनखल में भी है। यहां इस संस्था की स्थापना 1938 में हुई थी। जबकि, काशी में 1944 में पहला आनंदमयी आश्रम बना था।
हर दिन सुबह चार बजे गुरुकुल में छात्राओं और शिक्षिकाओं की दिनचर्या शुरू हो जाती है। अलग-अलग विषयों के अध्ययन के अलावा आध्यात्मिक शिक्षा भी छात्राओं के जीवन का अहम हिस्सा होती है। गुरुकुल में पांच साल की उम्र तक की लड़कियों को दाखिला दिया जाता है, वयस्क होने तक लड़कियों को यहां शिक्षा दी जाती है।
गुरुकुल में छात्राओं को दिन में दो बार वेद और अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथ पढ़ाए जाते हैं। संस्कृत व्याकरण, अंग्रेज़ी, हिंदी और गणित के अलावा इतिहास, भूगोल, समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र भी पढ़ाए जाते हैं. इस तस्वीर में लड़कियां अपनी कक्षा के पहले दिन अपनी मेज़ लगा रही हैं।
छात्राओं को दिन में दो घंटों का समय खेल-कूद के लिए दिया जाता है। स्कूल की वेबसाइट के मुताबिक संगीत, कला, खाना बनाना जैसी कई और चीजें छात्राओं को सिखाई जाती हैं।
गुरुकुल में छात्राओं के लिए खास ड्रेस कोड है और बड़े होने पर इन्हें सफेद साड़ी पहननी होती है, बाल भी छोटे-छोटे कटवा दिए जाते हैं। गुरुकुल में पढ़ाई खत्म होने के बाद लड़कियां जो चाहें वो पेशा अपना सकती हैं। गुरुकुल की कुछ छात्राएं यहीं रहना पसंद करती हैं और शिक्षा खत्म होने के बाद वो यहीं पर काम करती हैं। गुरुकुल में पढ़ाई खत्म होने के बाद लड़कियां जो चाहें वो पेशा अपना सकती हैं।
गुरुकुल की कुछ छात्राएं यहीं रहना पसंद करती हैं और शिक्षा खत्म होने के बाद वो यहीं पर काम करती हैं। यहां एक यज्ञशाला भी है। इसमें 1947 से धूनी लगातार जल रही है। यहां समय-समय पर सावित्री यज्ञ भी हुआ करते हैं। आनंदमयी आश्रम के कन्यापीठ में कन्याओं को शिक्षा के साथ आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिलाई-बुनाई भी सिखाया जाता है।
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