हिन्दू धर्म में और ख़ास कर उत्तर भारत में देव सोने और उठने की परंपरा का बहुत महत्व है देव सोने और उठने का अपना एक निश्चित समय माना गया है जिसमे देव सोने का दिन होता है आषाढ़ माह की देवशयनी एकादशी को और कार्तिक माह में देवोप्रबोधनी एकादशी को देव उठने का समय माना गया है। हिन्दू धर्म में ये मान्यता आज की नहीं है बल्कि ये भारत में युगों से चली आ रही है।जब देव सो जाते हैं तब से लेकर देव उठने तक के समय के दौरान विवाह आदि शुभ कार्य करना भी अशुभ माना जाता है जबकि देव उठने के बाद विवाह आदि सभी शुभ कार्य संपन्न किये जाते हैं।
प्राचीन काल में ऋषि मुनियों के पास समय देखने का साधन नहीं हुआ करता था लेकिन फिर भी उन्हें ऋतुओं का, दिन-रात के छोटे बड़े होने का और पृथ्वी की गतियों का ज्ञान हुआ करता था और उन्होंने सभी नियम समय के अनुकूल ही बनाये थे ।
ऋषि मुनियों दृष्टिकोण हमेशा वैज्ञानिक और तार्किक ही होता था और ऐसे में ऋषियों को यह ज्ञान था की देवशयनी एकादशी तक भारत में लगभग सभी जगह मानसून सक्रिय हो जाता है और देवउठनी एकादशी तक मानसून समाप्त हो जाता है और ऐसे में इस दौरान दूर दराज से आने जाने के लिए घोड़े, बैलगाड़ी, रथ आदि ही साधन हुआ करते थे और रास्ते कच्चे थे और ऐसे में विवाह आदि शुभ कार्य के लिए लोगों को आने में बड़ी परेशानी होती थी इसलिए इस दौरान कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता था ।
इसके अलावा इस मौसम में मच्छर, हिंसक जीव जंतु और जंगली जानवरों का प्रकोप बढ़ जाता था ऐसे में जंगलों में तपस्या करने वाले ऋषि मुनि जंगल छोड़ कर गांवों और नगरों में आ जाया करते थे और जब ये मौसम समाप्त होता था तब लोग ऋषि मुनियों को वापस तपस्या स्थलियों के लिए विदा करते थे और इनके उत्थान को ही देवोत्थान कहा जाता था । तभी से देवशयनी एकादशी पर अपने-अपने घरों को लौटना और देवोउठानी एकादशी से पुन: तपस्या स्थलियों के लिए उत्थान करना ही देवों का सोना और देवों का उठना माना जाने लगा।
इसके अलावा श्रावण माह में लोग देव सामान ऋषि मुनियों को अपने घर बुलाकर वेद कथाएं आयोजित किया करते थे और वो एक पर्व जैसा माहौल होता था इसी कारण इस माह मेंश्रावणी पर्व बनाया जाने लगा । ऐसे ही श्राद्घ और नवरात्रे भी माता-पिता, गुरू आचार्य आदि बड़ों के आदर सत्कार के लिए मनाये जाते हैं जो उस समय देव ऋषियों द्वारा संपन्न किये जाते थे । अगर हम गौर करें और जानकारी प्राप्त करें तो हमे पता चलेगा की हमारे हर पर्व और सामाजिक परंपरा के पीछे कोई न कोई मुख्य कारण जरूर होता है जिन्हे हम सदियों से अपनाते आ रहे हैं।