तीन तलाक पर बोली उप राष्ट्रपति की पत्नी, तीन बार झेल चुकी हैं फतवें
पिछले साल से तीन तलाक की ऐसी मुहिम चलाई जा रही है जो अभी तक चल रही है। मामला इस समय कोर्ट में हैं और कोर्ट के फैसले का इंतज़ार उन तमाम मुस्लिम महिलाओं को है जो तीन तलाक से छुटकारा चाहती है। दरअसल तीन तलाक देकर पुरूष तो छुटकारा पा लेते हैं लेकिन उन महिलाओं को ज़िन्दगी भर इस तीन तलाक का दर्द झेलना पड़ता है।
तीन तलाक का मामला कोई आज की बात नहीं है। जब दुनिया में फोन नहीं हुआ करते थे तब भी तीन तलाक हुआ करते थे लेकिन अब टेक्नोलॉजी भी इसकी भागीदार बन गई। इस जमाने में कोई वॉट्सऐप पर तलाक दे देता है तो कोई स्काइप पर। जिसे ये भी नहीं करना हो वो जाकर मैसेज पर तीन बार तलाक बोलकर निकाह जैसे पवित्र बंधन को खत्म कर देता है।
हाल ही में तीन तलाक पर उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी की पत्नी सलमा अंसारी ने यूनीवार्ता को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि इस्लाम में तीन तलाक जैसी कोई बात नहीं है। कुरान के अनुसार पति को एक बार तलाक कहने पर तीन महीने तक इंतज़ार करना होता हैं और तलाक भी तभी मान्य होता है, जब तीन गवाह उस वक्त वहां मौजूद हों।
श्रीमती अंसारी ने कहा कि इस्लाम में तीन तलाक जैसी कोई बात ही नहीं है। कुरान के अनुसार पति को एक बार तलाक कहने पर तीन महीने तक इंतजार करना होता है और तलाक भी तभी मान्य होता है, जब तीन गवाह उस वक्त वहां मौजूद हों। उन्होंने कहा कि तीन तलाक की अवधारणा पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों से भारत में आयी है।
पाकिस्तान में है प्रतिबंधित
सऊदी अरब में ऐसा नहीं होता। वहां निकाह एक करार की तरह होता है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में तो यह प्रतिबंधित हो गया लेकिन यहां कट्टर मुल्ला तथा मौलवियों ने अपने-अपने तरीके से कुरान की व्याख्या करके इसे महिला विरोधी जामा पहना दिया है। इसके साथ ही पुरुषवादी मानसिकता भी तीन तलाक को पोषण देती है। आम धारणाओं के विपरीत कुरान में तलाक को इस कदर मुश्किल बनाने की कोशिश की गयी है कि यह क्षणिक आवेश में लिया गया फैसला नहीं हो सकता है।
चलन हो गया है सोशल मीडिया पर तलाक
श्रीमती अंसारी ने कहा कि आजकल अखबार में विज्ञापन के जरिये या सोशल मीडिया के जरिये तलाक देने का चलन जोर पर है लेकिन यह चलन महिलाओं की अज्ञानता के कारण प्रचलित हो रहा है। उनके मुताबिक कुरान अरबी भाषा में पढ़ी जा रही है । आम लोग उसका अनुवाद नहीं पढ़ रहे जिसका लाभ उठाकर मौलवी अपने तरीके से कुरान की व्याख्या कर रहे हैं और उन्हें गुमराह कर रहे हैं।
कुरान में नहीं तीन तलाक जैसी बात
उन्होंने कहा कि अगर महिलायें खुद ही कुरान पढ़ने लगेंगी तो उन्हें खुद ब खुद पता चल जायेगा कि कुरान में तीन तलाक जैसी कोई बात ही नहीं है बल्कि यह तो उन्हें रास्ता दिखाता है। श्रीमती अंसारी ने कहा,“ कुरान पढ़िये, हदीस पढ़िये और खुद जानिये कि रसूल(ईश दूत) ने क्या कहा। मेरा मानना है कि महिलाओं को खुद कुरान पढ़कर उस पर विचार करना चाहिए ताकि उन्हें पता चले कि रसूल ने क्या-क्या कहा है और शरीयत क्या कहता है।”
कुरान तलाक को मुश्किल बनाता है
श्रीमती अंसारी ने तलाक दिये जाने के बाद वापस उसी रिश्ते में बंधने के लिए जरूरी ‘हलाला निकाह’ के बारे में पूछे जाने पर कहा,“यही तो मैं बताना चाह रही हूं कि कुरान तलाक को मुश्किल बनाता है और हलाला निकाह इसी का एक जरिया है। हलाला निकाह तलाक को मुश्किल बनाता है। तीन गवाहों की मौजूदगी और तीन महीने का इंतजार भी तलाक को मुश्किल करने के लिए लगायी गयी शर्तें हैं।”
तीन बार फतवे झेल चुकी हैं अंसारी
उल्लेखनीय है कि अलीगढ़ में समाज के हाशिये पर रहने वाले तबकों से जुड़े बच्चों और बाल श्रम से मुक्त कराये गये 2,000 बच्चों को एक छत के नीचे निशुल्क और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया कराने वाली श्रीमती अंसारी को अपनी बेबाक टिप्पणियों के कारण तीन-तीन बार फतवे झेलने पड़े हैं। इलाहाबाद के संगम पर डुबकी लगाने पर और योग के दौरान ओम के उच्चारण को स्वास्थ्य के लिये सही ठहराने पर उनके खिलाफ फतवे जारी किये जा चुके हैं।
न्यायलय ने संविधान पीठ के सुपुर्द किया है मामला
उच्चतम न्यायालय ने मुस्लिमों में तीन तलाक, निकाह हलाला और बहु-विवाह की प्रथाओं की संवैधानिक वैधता के प्रश्न को गत 30 मार्च को संविधान पीठ के सुपुर्द कर दिया। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह केहर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सुपुर्द किया जाता है, जो गर्मियों की छुट्टियों के दौरान 11 मई से रोजमर्रा के आधार पर सुनवाई करेगी।
न्यायालय ने कहा कि इस मामले में सिर्फ कानूनी पहलुओं पर ही सुनवाई होगी। सभी पक्षों के एक-एक शब्द पर अदालत गौर करेगी। न्यायमूर्ति केहर ने कहा कि अदालत कानून से अलग नहीं जा सकती। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह मसला बहुत गंभीर है और इसे टाला नहीं जा सकता। अदालत तीन तलाक के सभी पहलुओं पर विचार करेगी। संवैधानिक पीठ लगातार चार दिनों तक इस मामले पर दोनों पक्ष को सुनेगी। न्यायालय ने संबंधित पक्षों को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश भी दिया। इससे पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने न्यायालय से कहा था कि मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक, ‘निकाह हलाला’ और बहु-विवाह की प्रथाओं को चुनौती देने वाली याचिकाएं विचार योग्य नहीं हैं क्योंकि ये मुद्दे न्यायपालिका के दायरे में नहीं आते हैं।
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