‘मार्क्स मॉडरेशन पॉलिसी’ हाई कोर्ट क्यों खत्म करना चाहती थी
24 मई 2017 को सीबीएसई 12वी का रिजल्ट घोषित होना था पर रिजल्ट चार दिन बाद घोषित किया जिसका कारण था ‘मार्क्स मॉडरेशन पॉलिसी। पर अभी भी लोगों के बीच इस बात को लेकर संशय है कि क्या हैं ‘मार्क्स मॉंडरेशन पॉलिसी’ जो रिजल्ट देरी का कारण रहा। क्या रहा दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला अब स्टूडेंटस को ग्रेस मिलेगी या नहीं। इससे पहले हम आपको बताते है कि क्या है मार्क्स मॉडरेशन पॉलिसी –
मॉडरेशन पॉलिसी
यह एक प्रोविजन है, जिसमें उन छात्रों को ग्रेस मार्क्स दिए जाते हैं, जो थोड़े नंबर्स से फेल होने वाले होते हैं, इसके अलावा इस पॉलिसी के तहत छात्रों को प्रश्न पत्र में दिए गए अत्यधिक प्रश्नों या गलत प्रश्नों के लिए भी ग्रेस मार्क्स देने का प्रावधान है। मॉडरेशन नीति के अनुसार परीक्षार्थियों को किसी विषय में कठिन सवालां को लेकर 15 प्रतिशत अतिरिक्त मार्क्स दिए जाते हैं।
यह थी समस्या
इस पॉलिसी के तहत हर बार सीबीएसई के पास प्रश्न पत्रों में अत्यधिक कठिन प्रश्नों के बाबत ढेरों शिकायतें मिल रही थीं। इसके लिए सीबीएसई ने एक एक्सपर्ट पैनल बनाया है,जो मामले की जांच कर इस तरह के प्रश्नों के लिए हर छात्र को ग्रेस मार्क देने का फैसला करता है। सूत्रों के अनुसार, सीबीएसई ने अधिक नंबर हासिल करने वाले उम्मीदवारों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर यह फैसला लिया था।
दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला
सीबीएसई ने इस साल से नंबर बढ़ाकर देने की अपनी पॉलिसी को खत्म करने का फैसला लिया था। इस फैसले को एक पेरेंट और एक वकील ने दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि इससे विदेश पढ़ाई की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए काफी परेशानी होगी। सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के हक में फैसला सुनाते हुए सीबीएसई को मॉडरेशन पॉलिसी को जारी रखने का निर्देश दिया।
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