Friday, August 25th, 2017
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ईरान की महिलाएं आखिर क्यों लगाती हैं चेहरे पर रहस्यमयी मुखैटा




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इस्लाम में पुरुषों और महिलाओं के लिए कई नियम बनाए गए हैं। इन नियमों का पालन करना हर मुस्लिम व्यक्ति के लिए जरूरी है। इन्हीं नियमों में से एक नियम है महिलाओं के लिए बुर्का या हिजाब। मुस्लिम धर्म ऐसा है जिसमें हिजाब या पर्दा या बुर्का पहनने का चलन आज से नहीं कई वर्षों से है। हर मुस्लिम महिला या लड़की के लिए हिजाब या बुर्का धार्मिक अनिवार्यता है। इसके पीछे धार्मिक महत्व तो है साथ ही वैज्ञानिक कारण भी हैं।

भारत में बुर्का पहनने की परंपरा मुगल शासन काल के बाद बहुत ज्यादा प्रचलित हुई। यह परंपरा अरब देशों से शुरू हुई ऐसा माना जाता है। अरब देशों में वातावरण काफी गर्म रहता है जो कि त्वचा को झुलसा देने वाला होता है। साथ ही वहां तेज हवा के साथ रेत भी उड़ती रहती है। जिससे वातावरण रेतीला हो जाता है। ऐसे में सामान्य व्यक्ति के लिए वहां रहना में काफी परेशानियां रहती हैं। इसलिए वहां त्वचा पर बुरे प्रभाव से बचने के लिए हिजाब या बुर्का पहनने की परंपरा शुरू की गई। हम आपको आज कुछ अलग ही बताने जा रहे हैं। अलग अलग देशों में अलग तरह के हिजाब, चेहरा और सिर ढंकने में इस्तेमाल किए जाते हैं। मगर, ईरान के होर्मोज़्गान सूबे की महिलाएं सिर्फ बुर्का नहीं, बल्कि चेहरे पर अलग तरह के मुखौटे भी लगाती हैं।

होर्मोजज्गान सूबा, ईरान के दक्षिण में है। यहां समंदर किनारे बसने वाले लोगों को बंदारी यानी बंदरगाह के पास बसने वाले लोग कहा जाता है।

बंदारी महिलाएं, चेहरे पर तरह-तरह के मुखौटे लगाती हैं। इस वजह से पूरी दुनिया में ईरान की बंदारी महिलाओं की अलग ही पहचान है। यूं तो अरब देशों से लेकर फारस तक सभी देशों में बुर्के का चलन है। लेकिन इन ईरानी महिलाओं के मुखौटे इन्हें अलग ही पहचान देते हैं। कई सदियों से ईरान का ये इलाका मशहूर स्पाइस रूट का हिस्सा रहा था। यानी इस समुद्री रास्ते से होकर भारत और दूसरे देशों के बीच मसालों का कारोबार होता था। इस रास्ते को अरबों के अलावा अफ्रीकी, ईरानी और यूरोपीय कारोबारी भी इस्तेमाल करते थे।

ईरान के इस इलाके के लोगों का पहनावा देश के बाकी हिस्सों से अलग है। वो रंग-बिरंगे कपड़े पहनती हैं। जबकि बाकी ईरानी महिलाएं आम तौर पर सिर से पैर तक काले बुर्के में ढंकी नजर आती हैं। होर्मोज्गेन की महिलाओं के पहनावे की सबसे बड़ी खासियत है उनका मुखौटा। शिया हों या सुन्नी, सब इसे पहनती हैं। बंदारी महिलाएं सदियों से ये मुखौटे पहनती आ रही हैं। पहले के जमाने में इसका सबसे बड़ा मक़सद था आक्रमणकारियों से ख़ुद को बचाना।

कहा जाता है कि जब इस इलाके पर पुर्तगाल का कब्जा था, तब गुलामी से बचने के लिए वो ये मुखौटे पहनने लगीं। पुर्तगाली सरदार अक्सर खूबसूरत महिलाओं को अगवा कर ले जाते थे। इसीलिए मुखौटे का चलन यहां आम हो गया।

आज की तारीख में तरह-तरह के मुखौटे, होर्मोज्गेन सूबे के मजहब और संस्कृति का हिस्सा बन चुके हैं। ये मुखौटे बंदारी महिलाओं की आंखों और चेहरे को सूरज की तेज रौशनी से भी बचाते हैं। इस इलाके में सूरज अक्सर तल्ख तेवर दिखाता है। पूरे होर्मोज्गेन सूबे में महिलाएं तरह-तरह के मुखौटे पहने हुए दिख जाएंगी। किसी में सिर्फ आंख खुली होगी, तो किसी में चेहरे को कोई अलग ही रूप देने की कोशिश होती है। कुछ चमड़े से बने होते हैं, तो कुछ कढ़ाई वाले कपड़े से।

इन सबसे कम से कम महिलाओं का माथा तो ढंकता ही है। नाक भी अक्सर ढंकी होती है। कुछ महिलाओं के मुखौटों से उनका मुंह भी बंद हो जाता है।अलग समुदायों और इलाकों में अलग-अलग तरह के मुखौटे होते हैं। इन मुखौटों से ही ये पता लगाया जा सकता है कि महिला किस इलाके की रहने वाली है।

एक खास मुखौटा जो मूंछों के आकार का होता है, वो यहां के केश्म जजीरे की महिलाएं पहनती हैं। कहते हैं कि जब हमला करने वाले आते थे, तो उन्हें मर्दों को धोखा देने के लिए महिलाएं ये मूंछों वाले मुखौटे पहना करती थीं।

आज होर्मोज्गेन सूबे की बहुत सी महिलाओं ने मुखौटे पहनना छोड़ दिया है। वो आम तौर पर हिजाब लेकर चलती हैं। बहुत सी महिलाएं हैं जो मुखौटे नहीं पहनतीं, मगर उन्हें किसी मर्द के साथ तस्वीरें खिंचवाने पर ऐतराज होता है। क्योंकि यहां पर महिलाओं का बेपर्दा होकर मर्दों के सामने आना समाज के नियमों के खिलाफ है। इन परंपराओं और मुखौटों की वजह से बंदरी महिलाएं बाकी दुनिया से कटी हुई सी मालूम होती हैं। लेकिन, धीरे-धीरे बंदारी समुदाय में भी खुलापन आ रहा है।

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