Tuesday, September 12th, 2017 06:20:19
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किसान आंदोलन हिंसक क्यों?




किसान आंदोलन हिंसक क्यों?

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मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र से निकलकर किसान आंदोलन अन्य प्रदेशों में भी फैलता जा रहा है। मध्यप्रदेश में तो ये आंदोलन हिंसा की चपेट में आ गया है, उसकी वजह चाहे कुछ भी हो। सही कौन, गलत कौन ये अलग बात है। कश्मीर में आतंकवाद सर उठा रहा है। वहां स्थानीय निवासी भी उन आतंकियों का साथ देते दिखाई दे रहे हैं, जो हमारी सेना व सरकार के लिए मुश्किलें पैदा कर रहे हैं। कभी आरक्षण के नाम पर आंदोलन तो कभी धर्म के नाम पर आंदोलन हिंसा का रूप ले लेता है। आज किसान हिंसा पर उतरा हुआ है। आखिर क्यों? क्यों अपने, अपने देश, देशवासियों को नुकसान पहुंचाने पर आमदा है?

दोष देना आसान है, सजा देना भी आसान है किंतु यह प्रश्न हर बार ज़िन्दा रहेगा कि ऐसा क्यों हो रहा है? कारणों में यह कहना सरल है कि इसमें असामाजिक तत्व घुस आए वे यह सब कर रहे हैं, विरोधी पार्टी इसे हवा दे रही है, इत्यादि किंतु कभी यह सोचा है कि इन सबके गुस्से की कुछ तो वजह हुई होगी तब ये आगे आए। कश्मीर की जनता, मध्यप्रदेश या महाराष्ट्र का किसान क्यों आंदोलन पर उतर कर आ रहा है इसकी तरफ हमारा ध्यान नहीं है। क्यों वो अपनी ही सेना, पुलिस पर अपना गुस्सा दिखा रहे हैं? क्यों वह असामाजिक तत्वों के हाथों में खेल रहे हैं इसकी वजह किसने दी?

क्या हमारी ओछी राजनैतिक सोच इसमें दोषी नहीं है? पार्टी कोई भी हो, सत्ता में या विपक्ष में कोई भी हो किंतु सभी अपने वोट बैंक के चलते इन सबका नाजायज़ फायदा उठाते नज़र आते हैं। पहले पहल तो उनकी आमदनी में बढ़ोतरी की ओर इनका कोई ध्यान नहीं होता। कर्ज लेकर जैसे-तैसे ये अपना काम करते हैं तो वह वोट के चक्कर में कर्ज माफी जैसा प्रलोभन देने से नहीं चूकते। कहीं मुफ्त में कुछ बांटने की घोषणा तो कहीं कर्ज माफी जैसा गलत निर्णय किसी नशे की लत की तरह लगाकर उनकी भावना के साथ खिलवाड़ करते हैं। जब यही भावना प्रबल हो उठती है तो उसको दबाने की कोशिश में अपने पॉवर का उपयोग करने पर उतर आते हैं। बगैर चर्चा, सुनवाई के उसे टालने की या हल्के में लेने की गलती करते हैं। अच्छे बच्चे की तरह चुप हो गए तो ठीक वर्ना बच्चा बदमाश है की संज्ञा से नवाज दिए जाते हैं। बच्चा यदि बदमाश होता है तो पहली गलती उसके पालन-पोषण की होती है ना कि बच्चे की। उसे वही रोकने की व्यवस्था होना चाहिए। समस्या की जड़ यही है इसे यहीं रोक दिया जाना चाहिए। आतंकवाद और घरेलू गुस्से में अंतर करके देखा जाना चाहिए ना कि दोनों को एक ही तरह से लिया जाना चाहिए।

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