Monday, September 4th, 2017 15:37:48
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विश्व रंगमंच दिवस : आओ, रंगमंडल पर चीं चीं करें




Art & Culture

wall_decal_theater_masks आज विश्व रंगमंच दिवस है। रंगमंच को लेकर उसी तरह चिंता जतायी जाती रही है जैसे की हर साल। इस बा हम रंगमंडल को लेकर चीं-चीं करेंगे क्योंकि यह रंगमंडल अपने आपमें कभी अनूठा रहा है। बाबा कारंत, अलखनंदन और विभा मिश्रा जैसे प्रतिबद्ध लोगों के कारण रंगमंडल की साख रही है। हालांकि इन नामों के साथ दर्जनों ऐसे नाम जुड़े हैं जिन्होंने रंगमंडल में रंग भरा लेकिन उनके इस दुनिया से चले जाने के बाद सूनापन है। एक सन्नाटा सा खिंच गया है जो कभी चहकता था। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के इसी भारत भवन का एक प्रभाग है रंगमंडल। अपने जन्म से लेकर गुमनामी में जाने तक सैकड़ों ऐसी प्रस्तुतियां दी जो आज भी यादों को ताजा कर देती है। इसी रंगमंडल के मंच पर जब हबीब तनवीर साहब आगरा बाजार, चरणदास चोर और ऐसे अनेक कालजयी नाटकों को लेकर उतरथे तो गमक उठता था मंच और मन भी लेकिन अब मंच और मन दोनों उदास है। मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय चर्चा में है और रंगमंडल एक उदास और बेरंग खड़ा है।

theater ramleela

भोपाल का यह वही भारत भवन है जिस पर दिल्ली भी रश्क करता था। दिल्ली के दिल में भी हूक सी उठती थी कि हाय, यह भारत भवन हमारा क्यों न हुआ। भारत भवन की दुर्दशा को देखकर दिल्ली अब रोता भी होगा कि एक कला घर की कैसे असमय मौत हो सकती है किन्तु सच तो यही है। भारत भवन की साख दिन-ब-दिन गिरती गयी है। साख इतनी गिर गयी कि भारत भवन हाशिये पर चला गया। बीते वर्षों में भारत भवन को हाशिये पर ले जाने के लिये एक सुनियोजित एजेंडा तय किया गया। बिना किसी ध्वनि के भारत भवन के बरक्स नयी संस्थाओं की नींव रखी जाने लगी। इसे मध्यप्रदेश में संस्कृति के विस्तार का हिस्सा बताया गया किन्तु वास्तविकता यह थी कि इस तरह भारत भारत भवन को हाशिये पर ढकेलने की कोशिश को परिणाम तक पहुंचाया गया। भारत भवन के विभिन्न प्रकल्पों में एक रंगमंडल है जहां न केवल नाटकों का मंचन होता है बल्कि यह पूर्णरूपेण तथा पूर्णकालिक नाट्यशाला है। रंगमंडल को सक्रिय तथा समूद्ध बनाने के स्थान पर मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय की स्थापना कर दी गई। रंगमंडल और मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय के कार्यों में बुनियादी रूप से कोई बड़ा अंतर नहीं दिखता है। सिवाय इसके कि मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय युवा रंगकर्मियों को डिग्री बांटने लगा। क्या इसका जिम्मा रंगमंडल को देकर उसे समृद्ध और जवाबदार बनाने की पहल नहीं हो सकती थी? हो सकती थी लेकिन सवाल यह है कि वह दृष्टि कहां से लायें जो दृष्टि भारत भवन की रचना करने वालों के पास थी। भारत भवन के दूसरे प्रकल्प भी इसी तरह दरकिनार कर दिये गये। अनेक आयोजनों का दोहराव साफ देखा जा सकता है।

भारत भवन कभी राज्य सरकार की प्राथमिकता में था लेकिन साढ़े तीन दशक से ज्यादा समय हो गया है जब सरकारों के लिये भारत भवन कोई बहुत मायने नहीं रखता है। राज्य का संस्कृति विभाग इसका जिम्मा सम्हाले हुये है। वह जो एजेंडा तय करता है, सरकार की मुहर लग जाती है। आयोजनों की औपचारिकता पूरी कर दी जाती है और फिर एक नये आयोजन की तैयारियां आरंभ हो जाती हैं। अब जब भारत भवन के हालात पर चर्चा कर रहे हैं तो यह जान लेना भी जरूरी हो जाता है कि अनदेखा किये जाने वाले इस कला-घर में आयोजन की जरूरत क्यों है तो इसका जवाब साफ है कि विभाग के पास एक बड़ा बजट होता है और बजट को खर्च करने के लिये आयोजन की जरूरत होती है। यदि यह न हो तो आयोजन की औपचारिकता पूरी करने की भी जरूरत नहीं रहेगी। जिस भारत भवन के मंच के लिये शौकिया रंगकर्मी लड़ते थे, अब उन्हें यह आसानी से मिलने लगा है। लडक़र मंच पाने के बाद जो नाट्य मंचन होता था या दूसरे आयोजन होते थे तो एक सुखद तपन का अहसास होता था। अब वह तपन, वह सुख नहीं मिलता है। सब कुछ एक प्रशासनिक ढांचे में बंधा और सहेजा हुआ। कई बार तो अहसास होता है कि कलाकार भी बंधे-बंधाये से हैं। अखबारों में आयोजन को इसलिये भी स्थान मिल जाता है कि उनके पन्नों में कला संस्कृति के कव्हरेज के लिये स्पेस होता है। स्मरण रहे कि खबर और सूचना तक भारत भवन के आयोजनों का उल्लेख होता है, आयोजनों पर विमर्श नहीं। कला समीक्षकों और इसमें रूचि रखने वालों के मध्य जो चर्चा का एक दौर चला करता था, अब वह भी थमने सा लगा है।

Development of Drama and Theater in India

हां, इस बदलाव के दौर में यह जरूर हुआ है कि रंगमंडल और मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय में प्रतिस्पर्धा सी है। रंगमंडल के आयोजन हाशिये पर है और मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय लगातार और बार बार अपने आयोजनों से चर्चा में है। चर्चा इतनी कि जैसे दोनों एक-दूसरे के बैरी हो गए हैं। मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय के कलाकारों, निर्देशकों ने कभी रंगमंडल की सुध नहीं ली और रंगमंडल कबीरापन के साथ खामोश खड़ा है। यह विस्मय कर देने वाली स्थिति है। विस्मय इसलिए कि क्या एक राज्य की, एक नेचर की गतिविधि का आपस में इतना टकराव होना चाहिए? क्या कोई मध्ममार्गी रास्ता नहीं तलाशा जा सकता है जिसमें रंगमंडल को जीवन मिले और मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय का साथ। दोनों मिलकर रंगमंच को एक नयी उजास से भर दें। विश्वास है कि अभी भी जिनके हाथों में रौशनी करने की जवाबदारी है, उनमें समझ है। कुछ तकनीकी दिक्कतें हो सकती हैं जिन्हें दूर करने का उपाय भी उनके पास है और समझ भी। बस, अगले विश्व रंगमंच दिवस पर मध्यप्रदेश की रंगमंच की आभा से पूरा रंगमंच आलौकित होते दिखेगा और मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय तथा रंगमंडल में एक बार फिर वही ताजगी का अहसास होगा।

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