लखनऊ में अब नहीं मिलेंगे टुंडे कबाब, 100 साल में पहली बार बंद हुई दुकान
लखनऊ के टुंडे कबाब पूरी दुनिया में मशहूर हैं। ये शहर की यूएसपी में भी शामिल हैं। मुगलिया जायके की पहचान ये कबाब अब अपनी खास पहचान को खो चुके हैंं। दरअसल, टुंडे कबाब बनाने में भैंस के मीट का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन यूपी में बंद हुए अवैध स्लॉट हाउस की वजह से पूरे प्रदेश में मीट की आपूर्ति प्रभावित हुई है। इससे 100 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब टुंडे कबाबी दुकान बंद रही। बुधवार को दुकान नहीं खुली। टुंडे कबाब लखनऊ की शान और शौकत का हिस्सा हैं। कहते हैं इनसे बेहतर कबाब भले ही मिल जाए, लेकिन ऐसे कबाब कहीं नहीं मिलेंगे , लेकिन बुधवर को ये कबाब नहीं मिले। ये कमी योगी आदित्यनाथ के आदेश पर अवैध बूचडख़ाने बंद कर दिए जाने से पैदा हुई है। प्रशासन सख्त हुआ, अवैध बूचडख़ाने बंद कर दिए गए ओर मीट की सप्लाई एकदम से गिर गई।
आम दिनों में इस दुकान पर दोपहर एक बजे का समय सबसे ज्यादा व्यस्त होता है। लखनऊ के भीड़ भरे इस चौक में देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं। लेकिन आज इसके 20 में से 15 टेबल खाली थे। दुकान की हर दीवार पर अब नए स्टीकर चिपका दिए गए हैं, जहां लिखा है मटन और चिकन कबाब। टुंडे कबाबी के मैनेजर अबु बकर ने बताया कि लोग यहां भैंस के मास से बने कबाब खाने आते हैं। मुझे यह पक्का नहीं हैकि लोग यहां मटन और चिकन के कबाब भी उतने ही उत्साह के साथ लेंगे।
ये है दुकान का इतिहास-
ये दुकान 1905 में लखनऊ में अकबरी इलाके में शुरू हुई थी। इस दुकान के कबाब और पराठे पूरी दुनिया में मशहूर हैं। लेकिन दुकान बंद किए जाने से लोगों में मायूसी है। हालंाकि बड़े रेस्टोरेंट वाले बाहर से मीट मंगाने की सोच रहे हैं लेकिन ये काम भी मुश्किल लगता है। क्योंकि ऐसे में मीट को लाना ले जाना भी एक मुश्किल काम है।
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