Monday, September 18th, 2017 07:34:26
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खुद को समझ रहा आज़ाद ऐ बन्दे! है खुद ही से जकड़ा हुआ




खुद को समझ रहा आज़ाद ऐ बन्दे! है खुद ही से जकड़ा हुआSpiritual

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भारत का 71वां स्वतंत्रता दिवस, पूरे देश में स्वतंत्रता दिवस का जश्न। कोई किसी तरह से तो कोई किसी तरह से खुद को आज़ाद साबित करने का दिखावा कर रहा है। आज स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर हम आपसे कुछ प्रश्न पूछना चाहते हैं, पहला प्रश्न आपसे यह है कि आज़ादी यानि स्वतंत्रता क्या है? आपने खुद की स्वतंत्रता के लिए क्या प्रयास किए हैं? आप सब सोच रहे होंगे कि यह कैसा विचित्र प्रश्न है? लेकिन इस पर भी पुनःप्रश्न है  – कि क्या खुद की जिस्मानी आज़ादी तक ही आज़ादी के मायने हैं? क्या इसी को स्वतंत्रता कहेंगे हम?

असल में अपने विचारों को स्वतंत्रता से अभिव्यक्त करना। बिना डरे देश-हित में निर्णय लेना। अपने मन को उन्मुक्त (Broad Minded) बनाना। नि:स्वार्थ परमार्थ (Charity) करना है। ये सम्पूर्ण आज़ाद या स्वतंत्र व्यक्ति के कुछ लक्षण हैं। शायद हम में से बहुतों का जवाब ना में होगा। हम अक्सर अपने चारों तरफ कुछ गलत होता हुआ देखकर भी चुप रहते हैं, अपनी आवाज़ बुलंद नहीं कर पाते? क्यूँ कि हम डर के ग़ुलाम हैं? हौसला भी उसी डर का गुलाम है? आप देश की बात छोड़िये हमारे सामने यदि किसी एक व्यक्ति पर भी अत्याचार हो रहा हो तो उसकी सहायता करना तो दूर, हम उसके बारे में पुलिस या प्रशासन को सूचित करने से भी डरते हैं। वहीं ट्रैफिक रूल्स तोड़ने में या टैक्स बचने की जुगाड़ करने में हम प्रतिस्पर्धा करते हैं ।

कहीं न कहीं से हम सभी की ज़िंदगी एक जैसी है। पढ़ना, लिखना, कहीं अच्छी जॉब या बिजनेस, ढेर सारा पैसा कमाना, फिर शादी, परिवार बढ़ाना, और फिर परिवार को हर ख़ुशी वाली लाईफ देने के लिए बहुत सारे पैसों के पीछे भागते रहना। इंसान पैसे का इस हद तक ग़ुलाम हो जाता है कि पैसा उसे जहां चाहे जैसे चाहे नचाता है। पैसे की इस पराधीनता में अपनों का साथ भी आपने छोड़ दिया। आप गुलाम-पे-गुलाम होते ही जा रहे हैं। इस पैसे की गुलामी ने हमसे भ्रष्टाचार की गुलामी भी करवा ली। यह एक ऐसी गुलामी है, जिससे आज़ादी नामुमकिन हो जाती है। कोई भी काम रुका घूस देकर पूरा करवा लिया, मगर उसके खिलाफ लड़ते नहीं। इस बार खुद को खुद से आज़ाद कर स्वतंत्रता दिवस मनाने का अवसर खुद ही को दीजिये। फिर आप असल में आज़ाद होंगे और कैद होंगे तो किसी के दिल में।

1947 में मिली उस आज़ादी की ख़ुशी मनाते-मनाते हम कुछ ऐसी आदतों में क़ैद होते चले गए की हमें पता ही नहीं रहा की जिस आज़ादी की हम बातें कर रहे है उसकी शुरुआत खुद से ही होती है, आज़ादी हमें कोई देता नहीं है, यह तो हम खुद ही तय करते है की हम कितने आज़ाद है? हम हमेशा लोगों की, मुद्दों की, समाज की, सिस्टम की, राष्ट्र, पडोसी राष्ट्र की, दुश्मन राष्ट्र की बात करते हैं, लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण है, उसकी बात कभी नहीं करते और वो है हम खुद। बहुत खूबसूरत है आज़ादी के मायने, आज़ादी एक अदद अहसास है और उसे महसूस करने की शुरुआत खुद से ही करना है।

अपनी आज़ाद जिंदगी का खाका कुछ ऐसे खींचिए

अपनी आज़ादी को पर लगा दो, उसे उड़ान भरने दो और यह तय करो कि आप कैसी जिंदगी जीना चाहते हो? जिसमें आप क्या-क्या अच्छा कर सकते हो? आपको बहुत साफ़ रुख रखना होगा कि आपको इस जिंदगी को कैसे जीना है? इसकी ज़िम्मेदारी आप खुद लो। हालातों और गैरों को कभी भी यह हक़ मत दो कि वे तय करें कि आप कैसे जिएं? और एक सवाल खुद से करो – लोग मुझे किस खासियत के लिए जानेंगे? और जो भी जवाब आए उसी की तर्ज़ पर अपनी जिंदगी का खाका खिंच डालो।

बचपन याद कीजिये, वह आज़ाद ख़याली वहीं से आएगी वापस

हर पल को जीना ही आज़ादी है। आपकी ख़ुशियों की चाबी (Key to Happiness) आपके ही पास है, कोई और आपको कभी खुश नहीं कर सकता। टिकाऊ ख़ुशी हमेशा हमारे पास ही होती है, बस उसे महसूस करने की देर है इसलिए मस्त रहे। जरा सोचिये हम बचपन में जो भी सोचते थे, वो कर देते थे, न कोई डर था न कोई पछतावा, ऐसा लगता था की हम कुछ भी कर सकते है और यकीन था अपने आप पर। असल में हमारा बचपना आज़ाद था, जैसे-जैसे हम बड़े हुए हम गुलाम होते गए। आज भी हम बचपन जैसे ही हैं, पर यकीन नहीं है खुद पर। आज़ादी बहुत कीमती है क्योंकि इसके लिए स्वंय से ही लड़ना होता है इसलिए तैयार हो जाये Freedom Warrior बनने के लिए। और सच्ची आज़ादी की शरुआत खुद से आज़ादी पाकर कीजिये।

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