तबले से निकलते हुए जादुई संगीत के जादूगर हैं जाकिर हुसैन
संगीत एक कला ही नहीं बल्कि साधना भी है। इसमें सफलता के शिखर पर बस वही पहुंच सकता है जिसे संगीत से प्रेम हो। जितना की मौखिक संगीत मन को आनंद दिलाता है उसी तरह वाद्य यंत्रों की मधुर आवाज भी मन को पूरी तरह आनंदमय कर देती है। तबला हो या शहनाई सब यंत्रों की अपनी अलग ही बात है। भारत में ऐसे कई संगीतकार हैं, जिन्हें इन यंत्रों को बजाने में महारत हासिल है। उन्हीं में से एक हैं हमारे उस्ताद मशहूर तबलावादक उस्ताद जाकिर हुसैन। जी हां, संगीत के फनकार और तबला बजाने में माहिर जाकिर हुसैन की उंगलियां तबले को छू दें तो बर्बस ही सभी का मन मोह लेती हैं। तबले से निकलता संगीत उनके छूनेभर से ही मधुर हो जाता है। उनका जन्म 9 मार्च 1951 में हुआ था। आज उनके जन्मदिन पर जानिए उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें।
– जाकिर हुसैन का बचपन मुंबई में ही बीता और महज 12 साल की उम्र से उनका नाता तबले असौर संगीत से जुड़ गया। 1973 से लेकर 2007 तक उस्ताद जाकिर हुसैन ने अपने तबले की मीठी धुनों के जरिए कई नेशनल और इंटरनेशनल फस्टीवल को सम्मोहित किया।
– 1988 में उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया। उस वक्त ये सम्मान पाने वाले हुसैन सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे। उनकी उम्र तब मात्र 37 वर्ष थी। साल 2002 में उनके योगदान को देखते हुए उनहें पद्मभूषण दिया गया। वे भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बहुत लोकप्रिय हैं।
– अपने एलबम्स के जरिए उन्हेंाने संगीत को प्रांत , देश व समीओं के पार पहुंचा दिया। उनकी पॉपुलेरिटी और इंटेलीजेंसी का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि सन् 1992 और 2009 में उन्हें ग्रेमी अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है।
– भारतीय शास्त्रीय संगीत के विकास में उनके द्वारा दिए गए योगदान को कोई नहीं भूल सकता। उन्होंने अपने हुनर से भारतीय शास्त्रीय संगीत को पहचान दिलाई है। उनके इस योगदान में उनका ऐतिहासिक योगदान शक्ति भी शामिल है। जिसकी स्थापना उन्होंने जॉन मैकलॉघिन और एलशंकर के साथ मिलकर की थी। इसके लिए उन्हें 2009 में सम्मानित भी किया गया था। आज भी जाकिर हुसैन के तबले का जादू बरकरार है आरैर उम्मीद है आगे भी बरकरार रहेगा।
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