Friday, September 22nd, 2017 08:24:22
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प्रधानमंत्री जी, क्या 36 इंच का सीना 56 इंच का हो सकता है?




Editorial

 

तेजी से बदलते देश व विश्व के परिदृश्य, आर्थिक मंदी से जूझता विश्व, बढ़ती बेरोजगारी, सिर उठाता आतंकवाद जहां संपूर्ण विश्व को झकझोर रहा है, वहीं भारत आज एक स्थिर राजनैतिक स्थिति के साथ सशक्त भूमिका लिए खड़ा है। जहां पूरे देश ने हमारे प्रधानमंत्री को एक तरफा बहुमत देकर उनके रूप में अपने बेहतर भविष्य की उम्मीद की, ऐसे में हमारे प्रधानमंत्री का हर कार्य, उनकी कार्यशैली, उनकी प्रबंधन क्षमता, वे देश व संपूर्ण विश्व को किस नजरिए से देखते हैं, बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है।

प्रधानमंत्री द्वारा कही गई ’मन की बात’, मनमोहक भाषण, देश ही नहीं विश्व को संबोधित करने की उनकी कार्यशैली, निश्चित तौर पर आकर्षण का केंद्र रही है जो चुनाव पूर्व भी देश को सम्मोहित कर उन्हें विजेता के रूप में स्थापित कर चुकी है। देश विजित होने के बाद विश्व विजेता की ओर अग्रसर हो उन्होंने देश और विश्व के सामने लगातार अपनी इच्छाओं और योजनाओं को रखा, सतत् सम्बोधन के द्वारा मन की बात को सबके सामने रख रहे हैं। बहुत ही अच्छी बात है। यह सब जानकर 36 इंच का हमारा सीना 56 इंच का हो जाता है। किंतु क्या यह महज भाषणों, योजनाओं की घोषणा भर होने से ही हो सकता है? जरूरी है कि हम इसकी जमीनी हकीकत भी देख लें।

अपने भाषणों के बल पर भारतीय राजनैतिक गिरावट का फायदा उठा भारत विजित तो कर लिया। यह एक तरह से सफलता का पहला पड़ाव था, जिसमें उनकी किस्मत ने अधिक साथ दिया। किंतु जैसे ही वे इस शक्तिशाली राष्ट्र के प्रधानमंत्री बने वैसे ही उनकी जिम्मेदारी कई गुना बढ़ गई। अब बात लफ्ज़ों तक न होकर उसको साकार रूप में देखने की हो गई है। प्रधानमंत्री बनते ही उनका व उनकी पार्टी का सीना तो 36 इंच से बढ़कर 56 इंच का हो गया किंतु देश का सीना बड़ा होना अभी बाकी है। उन्हें प्रधानमंत्री बने एक वर्ष से ऊपर हो चुका है। प्रधानमंत्री बनने के बाद कई घोषणाएं की, कई योजनाओं को बनाने की बात की, वह सब आकर्षण का केंद्र तो रही हैं लेकिन सिर्फ मीडिया में। किंतु जनता उसके प्रति न तो आश्वस्त है और न ही गंभीर है। वजह साफ दिखलाई जाती है, हमारे प्रधानमंत्री बोलते तो बहुत हैं किंतु सिर्फ बोलते ही रहते हैं। योजनाओं को मूर्त रूप देने की उनकी गंभीरता कहीं भी नजर नहीं आती। यहां जाते हैं तो ये बात बोलते हैं, वहां जाते हैं तो वो बात बोलते हैं और कुछ नहीं तो ’मन की बात’ के नाम पर रेडियो-टीवी पर बोलते हैं। किंतु जब यदि किसी गंभीर विषय पर संसद में बोलने का वक्त आता है तो वह स्वयं और उनकी वह आवाज नदारद रहती है। कितने ही दिन हमारी संसद सिर्फ इसलिए बंद करवा दी गई क्योंकि सब चाहते थे कि मुद्दों पर प्रधानमंत्री अपने वक्तव्य दें, किंतु वे नहीं बोले। फिर बिहार चुनाव का वक्त आया तो वे गरजते पाए गए वो भी अहंकारी भाव में ’’बताओ आपको विकास के लिए कितना धन चाहिए’’। किसी देश की जनता, जो इस देश की मालिक भी है, उसी के द्वारा दिए गए धन पर, उन्हीं के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि द्वारा, उन्हीं को सत्ता के नशे में चूर प्रधानमंत्री द्वारा एक एहसान करने के लहजे में बोला गया यह वाक्य सुनकर खून भी खोलता है और उनके अहंकार पर तरस भी आता है।

जिन घोटालों को लेकर पिछली सरकारें गिरी थीं, इन्हीं सब सरकारों में आज भी घोटालों की सीरीज जारी है। अफसर से लेकर नेता तक सभी लिप्त नजर आते हैं। बस पिसती तो आम जनता है जिसे अहंकारियों के एहसान से लदे शब्द सुनाई देते हैं, फिर भी वह चुप है।

जितनी योजनाएं बनाई गई हैं वह किस प्रकार कार्य कर रही हैं, उसमें क्या-क्या रुकावटें आ रही हैं, किस प्रकार उसे पूरा किया जाना है, उन सभी पर कोई गंभीरता उनकी नजर नहीं आती। सफाई की बात की, बस एक दिन प्रदर्शन कर फोटो सेशन हो पूरा हो गया। स्वास्थ्य की बात की, एक दिन का योगा हो गया। स्मार्ट सिटी, अमृत योजना, गंगा सफाई, मेक इन इंडिया जैसी अनेकों घोषणाओं का हश्र भी ऐसा ही है, सब कागज के शेर साबित हो रही हैं। यदि इसी रफ्तार से काम चला तो अनेक वर्ष लग जाएंगे उसको पूरा करते-करते। कब पूरा होगा, पता नहीं। हां किंतु एक बात तो है इन योजनाओं के नाम पर जो धन राशि बंटती है उससे कई घर वारे-न्यारे हो जाएंगे। कहने का मतलब ये नहीं है कि यह सब गलत है किंतु जब भी कोई योजना बने उसके अंतिम लक्ष्य तक पहुंचने की व्यवस्था होनी चाहिए। जनता अब सिर्फ भाषण सुनना नहीं चाहती, काम पूरा होते देखना चाहती है। रिजल्ट चाहती है।

देश में कम, विदेश में ज्यादा दिखने वाले हमारे प्रधानमंत्री को चाहिए कि पहले देश और देशवासियों की तरफ ध्यान दें। विदेशियों को आमंत्रित कर देने भर से काम नहीं चलता। देश में अमन-भाईचारा, इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम, देश का समग्र विकास, भ्रष्टाचार पर अंकुश, अच्छी शिक्षा की व्यवस्था, मंदी के दौर पर अंकुश लगाना, बेरोजगारी के लिए इंटरप्रन्योर तैयार करना जैसे अनेकानेक मामले हैं जिन्हें देखा जाना आवश्यक है। यदि यह सब व्यवस्थित हो जाता है तो स्वतः ही विदेशी भी इस देश की तरफ आकर्षित होंगे। हमारे प्रधानमंत्री को फेसबुक, गूगल जैसी कंपनियों के दफ्तर में जाने की आवश्यक्ता नहीं पड़ेगी अपितु वे यहां उनसे मिलने के लिए बेताब होंगे। ऐसा सब होता है तो निश्चित ही हमारे देश का सीना 36 इंच से बढ़कर 56 इंच का होगा।

 

सुमेश खंडेलवाल
प्रधान संपादक

 

 

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