भारत के 10 करोड़ लोगों को है ये बीमारी, लेकिन घर वाले नहीं मानते बीमार
अब हम जिस खबर का विश्लेषण करेंगे वो आपके मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी हुई खबर है। भारत में लोग मानसिक बीमारियों के बारे में ज्यादा बात नहीं करते। भारत में एक आम धारणा है कि अगर किसी को कोई मानसिक बीमारी है तो ऐसा ज़रूर उसकी खुद की गलतियों की वजह से हुआ होगा। भारत में मानसिक रोगियों का इलाज कराने की बजाय लोग उन्हें ताने मारते हैं.. उनका मज़ाक उड़ाते हैं । लेकिन सच ये है कि भारत में मानसिक रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हो सकता है कि आपके घर में भी कोई ऐसा सदस्य हो..जो डिप्रेशन के दौर से गुज़र रहा हो।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में 30 करोड़ से अधिक लोग डिप्रेशन से ग्रस्त हैं और इनमें से 50 प्रतिशत भारत और चीन में रहते हैं। । संयुक्त राष्ट्र ने विश्व स्वास्थ्य दिवस से पहले डिप्रेशन संबंधी आंकड़े जारी किये, जिसके अनुसार ये चौकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. वहीँ भारत के लिए WHO की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 में भारत में 5 करोड़ लोग डिप्रेशन के मरीज़ थे। ये वो लोग हैं जो डिप्रेशन की वजह से अपना सामान्य जीवन नहीं जा पा रहे हैं। दक्षिण एशियाई देशों में सबसे ज्यादा डिप्रेशन के मरीज़ भारत में ही रहते हैं। इसके अलावा 3 करोड़ 80 लाख लोग ऐसे हैं। जो Anxiety के शिकार हैं। Anxiety एक तरह से चिंता से जुड़ी घबराहट होती है, और कई बार ये इतनी बढ़ जाती है कि Anxiety का शिकार व्यक्ति आत्महत्या तक कर लेता है। यानी भारत में करीब 9 करोड़ लोग ऐसे हैं जो किसी ना किसी तरह की मानसिक परेशानी का सामना कर रहे हैं।
सभी देशों को अपनी आंखें खोल लेनी चाहिए
WHO की महानिदेशक मार्गेरेट चान ने कहा, ‘‘ये नए आंकड़े देखकर सभी देशों को अपनी आंखें खोल लेनी चाहिए। उन्हें मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अपने दृष्टिकोणों पर पुनर्विचार करना चाहिए और इस मामले पर तत्परता से निपटना चाहिए।’’ वर्ष 2005 से 2015 तक अवसादग्रस्त लोगों की संख्या में 18 प्रतिशत इजाफा हुआ है। इसे देखते हुए डब्ल्यूएचओ ने एक वर्ष की एक मुहिम शुरू की है, जिसका लक्ष्य अवसादग्रस्त लोगों की मदद के लिए समाज को आगे आने के लिए प्रोत्साहित करना है।
WHO ने कहा कि मानसिक विकार को लेकर लोगों से सहयोग नहीं मिलने और इससे जुड़ी सामाजिक सोच के कारण कई अवसादग्रस्त लोग उपचार नहीं कराते जबकि स्वस्थ जीवन जीने के लिए उन्हें इसकी आवश्यकता होती है। अवसाद आत्महत्या का एक बड़ा कारक है। इसकी वजह से हर वर्ष लाखों लोग आत्महत्या करते है।
डब्ल्यूएचओ में मानसिक स्वास्थ्य एवं मादक पदार्थ दुरपयोग विभाग के निदेशक शेखर सक्सेना ने कहा, ‘‘मानसिक बीमारी को लेकर समाज की धारणा के कारण ही हमने हमारी मुहिम को नाम दिया है: ‘अवसाद: आओ चर्चा करें’।’’ उन्होंने कहा, ‘‘अवसाद से पीड़ित व्यक्ति के लिए किसी ऐसे व्यक्ति से बात करना उपचार एवं सुधार की स्थिति में पहला कदम होता है जिस पर वह भरोसा करता हो।’’ WHO के अनुसार इस संबंध में किए जाने वाला निवेश भी बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। नेक्स्ट पेज पर पढ़ें…. भारत एक सुपरपावर कभी नहीं बन पाएगा, क्यों?
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