चारों ओर विपरीत परिस्थितियां, फिर भी UPSC की मिसाल बनी उम्मुल
जीवन में जब कभी विपरीत परिस्थितियों से सामना होता है, तब अक्सर लोग अपना आत्मविश्वास खो देते हैं. लेकिन ऐसा तब हो, जब आपका सपना देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक UPSC क्लियर करने का हो और आपके हालात विपरीत हों, तो क्या आपका सपना पूरा हो पाना संभव है.
जी हाँ, अपने प्रचंड आत्मविश्वास के बल पर उम्मुल खेर नामक यंग गर्ल ने कहीं ज्यादा विपरीत परिस्थितियों में भी डटे रहकर UPSC क्लियर कर ये साबित कर दिया कि चाहे लाख मुश्किलें आ जाएं, अगर आप अपने सपनों को दिल से चाहते हों तो वो एक ना एक दिन जरूर पूरे होते हैं. ऑस्टियो जेनेसिस जैसी बीमारी से जूझने के बावजूद उम्मुल खेर ने देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक UPSC में पहले ही प्रयास में 420वी रैंक लाकर सफलता की नई मिसाल कायम की है.
घर भी तोड़ डाला गया, सड़क पर आ गई थी लाइफ
उम्मुल का जन्म राजस्थान के पाली मारवाड़ में एक गरीब परिवार में हुआ था. उसके परिवार में 3 भाई-बहन और मां-पापा थे. जब उम्मुल 5 साल की थी, तब उसका परिवार दिल्ली आ गया था. देश की राजधानी में 2 जून की रोटी का बंदोबस्त करने के लिए पिता फुटपाथ पर कपड़े बेचते थे. उसका परिवार निजामुद्दीन इलाके की एक झुग्गी-झोपड़ी में रहने लगा. 2001 में सरकारी तंत्र ने उसके घर सहित कई घरों को अवैध करार देकर उखाड़ फेंका. परिवार फिर तेज दौड़ती दिल्ली की सड़कों पर आ गया. दिल्ली में रहने की व्यवस्था करना एक बड़ी चुनौती था. रहने के लिए जगह की तलाश दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में जाकर खत्म हुई, जहाँ के एक छोटे से कमरे में उम्मुल का परिवार रहने लगा.
पढाई की खातिर परिवार से अलग रहने लगी
गरीबी के चलते परिवार से पढ़ाई छोड़ने का दवाब दिया गया, लेकिन उम्मुल नहीं मानी और पढ़ाई जारी रखी. जब बस नहीं चला तो उम्मुल ने त्रिलोकपुरी में ही दूसरी जगह कमरा ले लिया. गुजारा करने के लिए उम्मुल ने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. गुजारे के लिए उम्मुल 50 रु./महीने में बच्चों को दो घंटे ट्यूशन पढ़ाती, इसी दौरान उम्मुल ने IAS बनने का सपना देखा.
यह है उन्मूल की एकेडेमिक जर्नी
2008 में अर्वाचीन स्कूल से 12वीं पास करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान से ग्रेजुएशन करने के लिए एडमिशन लिया. 2011 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद उम्मुल ने JNU के इंटरनेशनल स्टडीज़ स्कूल से पहले MA किया और फिर इसी यूनिवर्सिटी में एमफिल/पीएचडी कोर्स में दाखिला ले लिया. JNU में दाखिले की प्रक्रिया आसान नहीं है, क्योंकि यहां एंट्रेंस एग्जाम द्वारा चुनिंदा स्टूडेंट्स का एडमिशन हो पाता है.
16 फ्रैक्चर 8 सर्जरी
उम्मुल के लिए सबसे मुश्किल वक्त वो था जब JNU से MA करते वक्त 2012 में उनका एक्सीडेंट हो गया था. इस एक्सीडेंट के बाद बोन डिसऑर्डर के चलते वो व्हीलचेयर पर आ गई. इससे पहले कि वह अपने सपने को पूरा करने का प्रयास कर पाती, उसके शरीर की कई बार हड्डियां टूट चुकी थी. उम्मुल ने बताया कि अब तक उन्हें 16 फ्रैक्चर हो चुके हैं और 8 बार उनकी सर्जरी हो चुकी है. बावजूद इसके उम्मुल ने हार नहीं मानी. JNU से MA की पढ़ाई के दौरान उन्हें मेरिट-कम-मीन्स स्कॉलरशिप के तहत 2000 रु./माह मिलने लगा और हॉस्टल में रहने की जगह भी प्राप्त हुई. इसके बाद उम्मुल ने ट्यूशन पढ़ाना छोड़ कर अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया. 2013 में उम्मुल ने JRF क्रेक किया. जिसके बाद उन्हें 25,000 रु. प्रति महीना मिलने लगा. अभी वो JNU से इंटरनेशनल रिलेशन्स में PhD कर रही हैं.
साभार – उम्मुल के इस कामयाब सफर का यह लेख फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से उनकी बातचीत पर आधारित है.
- - Advertisement - -