भारतीय धर्म में व्रत और त्यौहार का विशेष स्थान है, और इन सभी के पीछे कोई न कोई धार्मिक कथा जुड़ी होती है। हर धार्मिक व्रत और त्यौहार से जुड़ी साइंटिफिक बातें भी होती हैं। ऐसा ही है वट सावित्री व्रत, जिससे जुड़ी कई मान्यताएं है, और वैज्ञानिक तथ्य भी। वट वृक्ष या बरगद के वृक्ष का हमारे जीवन में अहम स्थान है। वैज्ञानिक शोध में भी ये साबित हुआ है कि इस व्रत को करने से स्वास्थ्य में लाभ मिलता है, साथ ही इस वृक्ष की औषधी से कई रोगों में फायदा मिलता है। बताते हैं वट वृक्ष से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां –
ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या तिथि के दिन वटवृक्ष की पूजा का विधान है, जिसे वट सावित्री व्रत कहा जाता है। इस साल यह 25 मई को मनाया जाना है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन वटवृक्ष की पूजा से सौभाग्य व स्थायी धन और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही इस वृक्ष से निकलने वाली ऊर्जा स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक बताई गई हैं।
आयुर्वेद में महत्वपूर्ण स्थान
बरगद वृक्ष कई रोगों को दूर करने के काम आता है। आयुर्वेद में इस वृक्ष के छाल, तनों, पत्तों और फलों से कई दवाईयां बनाई जाती हैं। जो कई गंभीर बिमारियों में फायदेमंद होती है। डायबिटीज, अस्थमा, कमर दर्द, बाल झड़ना, मसूड़ों में दर्द जैसी कई बीमारियों में इस वृक्ष से बनी औषधी से राहत मिलता है।
वातावरण को शुद्ध करने में सहायक
बरगद के वृक्ष से वायुमंडल शुद्ध होता है। इस वृक्ष की वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करने और ऑक्सीजन छोड़ने की क्षमता अन्य वृक्षों की तुलना में सबसे ज्यादा होती है। जिस क्षेत्र में वट वृक्ष लगा होता है वहां लोगों को सांस लेने में तकलीफ की समस्या नहीं होती है, इसलिए जब महिलाएं इस व्रत के दौरान वृक्ष के फेरे लगाती हैं, तो उनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। स्वस्थ सेहत के लिए इस पेड़ के नीचे रोजाना कुछ देर बैठने से भी लाभ मिलता है।
बारिश में सहायक वटवृक्ष
वनस्पति विज्ञान कि एक रिसर्च के अनुसार सूर्य की ऊष्मा का 27 प्रतिशत हिस्सा बरगद का वृक्ष अवशेषित कर उसमें अपनी नमी मिलाकर उसे फिर से आकाश में लौटा देता है। जिससे बादल बनते हैं, जो बारिश में सहायक होते हैं। अधिक गर्मी पड़ने पर इस वृक्ष के पास ही हवन भी किया जाता है, जिससे जल्द बारिश हो।
कई भगवान का वास बरगद वृक्ष में
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस वृक्ष में कई भगवान का वास होता है। वटवृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और अग्रभाग में शिव का वास माना जाता है। यह पेड़ लंबे समय तक अक्षय रहता है, इसलिए इसे अक्षयवट भी कहते हैं। अखंड सौभाग्य और आरोग्य के लिए भी वटवृक्ष की पूजा की जाती है।
पौराणिक कथा के अनुसार
अक्षयवट के पत्ते पर ही प्रलय के अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने मार्कण्डेय को दर्शन दिए थे। देवी सावित्री भी वटवृक्ष में निवास करती है। प्रयाग में गंगा के तट पर स्थित अक्षयवट को तुलसीदासजी ने तीर्थराज का छत्र कहा है। जब यमराज सावित्री के पति के प्राण लेकर जा रहे थे तो सावित्री ने पति को बरगद के वृक्ष के नीचे छोड़ा था, वृक्ष ने अपनी बड़ी-बड़ी तनाओं से ढक कर उसकी रक्षा की। वटवृक्ष के नीचे ही सावित्री ने अपने पति को फिर से जीवित किया था, तभी से यह व्रत वट सावित्री के नाम से जाना जाता है। इस वृक्ष ने जिस प्रकार सावित्री के पति की रक्षा की वैसे ही यह हर मनुष्य को रोगों से दूर करता है। ऐसा गुणकारी है बरगद वृक्ष।