भोपाल के रजत ने श्रीलंका में जीता स्वर्ण
रजत कौशिक के प्रदर्शन से भारतीय हैंडबॉल टीम बनी उपविजेता
चौथी कक्षा में पढ़ते हुए रजत ने जब हैंडबॉल खेलना शुरू किया था तब उसने नहीं सोचा था कि एक दिन वह भारतीय टीम का हिस्सा बनकर दुनिया की और टीमों के साथ खेलेगा और ऐसे खेलेगा कि उसका खेल न केवल उसके परिवार, शहर बल्कि देश को गौरवान्वित करेगा। यह कहानी नहीं बल्कि हकीकत है, उस देश की जहां क्रिकेट ही एक खेल है जो हमें गौरवान्वित या दीवाना करता है, उस मध्यम वर्ग की, जो एक सामान्य जीवन जीने की जद्दोजहद में घर की प्रतिभाओं की अक्सर अनदेखी करता है और उस व्यवस्था की, जिसमें प्रतिभा को तैयार करने की योजना व प्रबंध नहीं हैं।
हाल ही, 24 से 26 जून तक श्रीलंका के कोलंबो में सेकंड स्टूडेंट्स ओलंपिक इंटरनेशनल का आयोजन किया गया। इसमें हैंडबॉल की प्रतियोगिता दो वर्गों में थी अंडर 18 और सीनियर्स। सीनियर्स की भारतीय टीम में रजत कौशिक उप कप्तान के रूप में खेल रहे थे। पाकिस्तान के खिलाफ पहले मैच के शुरू होते ही टीम के कप्तान कपिल केशरवानी के चोटिल हो जाने के कारण रजत ने न सिर्फ पहले मैच बल्कि पूरे टूर्नामेंट में कप्तानी की। पाकिस्तान के खिलाफ 12 गोल से मैच जीतकर भारतीय टीम ने टूर्नामेंट का विजयी आगाज़ किया नेपाल, बांग्लादेश तथा ऑस्ट्रेलिया को हराकर श्रीलंका के खिलाफ फाइनल में पहुंची। अंततः भारतीय टीम उपविजेता रही।
पूरे टूर्नामेंट में अपने पांच मैचों में भारतीय टीम ने विरोधियों के खिलाफ कुल 100 गोल दागे जिसमें से 58 रजत के नाम रहे। रजत की कप्तानी भी काबिले-तारीफ रही। इसी उपलब्धि के लिए रजत को प्लेयर ऑफ दि टूर्नामेंट चुनकर स्वर्ण पदक से नवाज़ा गया। यानी भारतीय टीम को मिला रजत और रजत को मिला स्वर्ण। भले ही भारतीय टीम श्रीलंका के खिलाफ फाइनल नहीं जीत सकी लेकिन प्लेयर ऑफ दि टूर्नामेंट के अलावा बेस्ट शूटर और बेस्ट डिफेंडर के खिताब भी भारतीय टीम के ही नाम रहे।
इस उम्दा और काबिले-फक्र प्रदर्शन के बाद भारत के खेल मंत्रालय, एसोसिएशनों और विश्वविद्यालयीन प्रबंधनों को विचार करना चाहिए कि न सिर्फ हैंडबॉल बल्कि ऐसे अनेक खेलों को कैसे, कितना प्रोत्साहन दिया जा सकता है। ओलंपिक में सवा सौ करोड़ वाले देश के सामने हमेशा एक पदक जीतने तक का रोना रहा है क्योंकि कहीं न कहीं ज़मीनी सच्चाई यही है कि सिवाय क्रिकेट के हमारे देश में किसी और खेल के लिए न ही सुविधाएं हैं, न प्रोत्साहन और न ही योजनाएं। अभी जो और जितना मार्गदर्शन या माहौल बच्चों और नौजवान खेल प्रतिभाओं को मिल रहा है, वह ठीक है, लेकिन इसे और बेहतर करने की गुंजाइशों को समझकर उसके अनुरूप कदम उठाये जाने की ज़रूरत तो बनी ही हुई है। 22 वर्षीय रजत का कहना भी यही है कि हैंडबॉल को बढ़ावा देने की ज़रूरत है।
अपनी इस उपलब्धि का श्रेय रजत सिस्टेक आर कॉलेज के खेल अधिकारी कुलदीप सिंह, स्टूडेंट्स ओलंपिक एसोसिएशन की संयुक्त सचिव शांति शर्मा को देते हैं क्योंकि इन्होंने उचित मार्गदर्शन औरसहयोग दिया। अपने खेल जीवन की यात्रा साझा करते हुए रजत ने बताया कि केंद्रीय विद्यालय के छात्र के रूप में चौथी कक्षा से हैंडबॉल खेलना शुरू किया था। वह पहली बार नौवीं कक्षा केदौरान राज्य स्तर पर खेले। उसके बाद आरजीपीवी यूनिवर्सिटि के छात्र के रूप में रजत ने लगातार तीन साल राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में भागीदारी की। इनमें से दो बार उनकी टीम तीसरे स्थानपर रही। इसके बाद इस साल उन्हें नेशनल टूर्नामेंट खेलने के लिए राज्य टीम में चुना गया और भारतीय टीम का चयन शोलापुर में इसी साल की शुरुआत में हुए नेशनल टूर्नामेंट के नतीजों के आधारपर किया गया। इस टूर्नामेंट में मध्य प्रदेश की टीम विजेता थी इसलिए प्रदेश के तीन खिलाड़ी भारतीय टीम का हिस्सा बने। पीपी के रूप में नेशनल टीम में जगह प्राप्त करने के बाद रजत ने श्रीलंकामें उपरोक्त टूर्नामेंट खेला।
इस साल श्रीलंका में हुआ यही टूर्नामेंट अगले वर्ष थाइलैंड में होगा जिसकी घोषणा कर दी गयी है हालांकि उसके लिए भारतीय टीम का चयन अभी नहीं हुआ है। रजत अपने हैंडबॉल के प्रति लगाव और जुनून को इन शब्दों में ज़ाहिर करते हैं कि वे बीई की पढ़ाई पूर्ण करने के बाद भी खेलना नहीं छोड़ेंगे। रजत इस खेल में फ्रेंच खिलाड़ी ल्यूक अबालो को फॉलो करते हैं और उनका कहना है कि उनका खेल देखकर काफी कुछ सीखने को मिला। रजत ने यह भी बताया कि वह अबालो और हैंडबॉल के कई वीडियोज़ देखकर भोपाल स्थित लाल परेड मैदान पर जाकर अभ्यास किया करते थे। बिना किसी कोच या टीचर की मदद के रजत ने अपने अभ्यास से अपने खेल को निरंतर बेहतर बनाया और अब भी उसी शिद्दत के साथ और बेहतर के लिए जुटे हुए हैं।
एक मुहावरा है जंगल का पेड़ होना। जो बिना बीजारोपण, देखभाल, सिंचाई व खाद आदि के, अपने आप फलते-फूलते हैं उन पौधों के प्रतीक को लेकर यह कहावत या मुहावरा प्रचलित है। भारत काइतिहास गवाह है कि जंगल के पेड़ों की तरह कई प्रतिभाएं सामने आयी हैं जिन्होंने देश को गौरव के क्षण दिये हैं लेकिन रजत के बहाने यहां फिर एक सवाल है कि कब तक देश में प्रतिभाएं जंगल के पेड़की तरह ही पनपेंगी? क्यों हम एक समाज और राज्य के स्तर पर व्यवस्थित ढंग से प्रतिभाओं का लालन-पानल-पोषण करने में असमर्थ हैं? क्या विकास की तमाम परिभाषाओं में प्रतिभा के विकासका मुद्दा शामिल ही नहीं है? बहरहाल, समाज के अनेक वर्गों और समूहों की तरह प्रतिभाएं भी यही उम्मीद कर रही होंगी कि अच्छे दिन कभी तो आएंगे!