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वर्तमान मोदी सरकार बताती है, गरीबों की सरकार किंतु उसकी घोषणाओं को छोड़कर काम-काज पर नज़र डालें तो साफ जाहिर होता है कि वह गरीबों की नहीं अपितु पूंजीपतियों की कॉर्पोरेट सरकार है। विजय माल्या आज उसका जीता-जागता उदाहरण है। करोड़ों रुपए का कर्ज, बैंक गारंटी बहुत ही कम, एक दिन पहले राज्य सभा में उपस्थिति, आसानी से विदेश की तरफ प्रस्थान, ये सब स्पष्ट दर्शाता है कि सरकार का था साथ।
इसके पूर्व ललित मोदी के साथ थी सरकार। मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल पर नजर डालें तो ये कहानी स्पष्ट नजर आने लगती है। सत्ता में आते ही लगातार विदेशों में यात्राएं कीं। देश की बजाय विदेशों पर भरोसा जताया। समस्याएं तो सब तरफ होती हैं किंतु आपकी उसमें प्राथमिकताएं क्या हैं ये आपकी कार्यविधि से जाहिर होता है। अब विदेशों में महज घूमने तो नहीं गए होंगे हमारे प्रधानमंत्री जी। देश हित व व्यवसायी हित में किए कई समझौते, विदेशी कंपनियों के ऑफिस तक हो आए इन कामों के लिए। विदेशों से भरपूर पूंजी लाने के लिए लगाया जोर। इसका स्पष्ट रुप से फायदा कॉर्पोरेट घरानों को मिलता है। देश व देशवासियों को तो जब होगा तब होगा। इसी बात का भरपूर फायदा उठा रहे हैं हमारे पूंजीपति। सरकार भी चलती है इन्हीं के पैसों से इसलिए फायदा भी इन्हीं को मिलता है। गरीबों के लिए तो सपनों का मायाजाल होता है। मध्यमवर्गीय पिसता है, पूंजीपति ऐश करता है।
आज विजय माल्या एक बड़ा उदाहरण है हमारे सामने। किस प्रकार उसे ये करोड़ों के लोन मिले। अन्यथा तो लोन लेने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ता है। पता नहीं कितनी सिक्यूरिटीज मांगी जाती हैं। उनकी कितने ही स्तर पर जांच की जाती है। तब कहीं जाकर लोन मिलता है और यदि कोई सेल डाउन हो गया या कुछ व्यवसायिक कमी हो गई तो आगे के लिए उसे बैन कर दिया जाता है। लेकिन यहां तमाम प्रकार के घाटों के बाद भी तगड़ा लोन दिया गया। ये सब कैसे संभव हो सकता है? ये तो हमारे आईआईएम के कॉलेज भी नहीं पढ़ा सकते। निश्चित तौर पर इसको बाहरी दुनिया का प्रबंधन ही सिखा सकता है, कैसे सरकार और सरकारी तंत्र को मैनेज किया जाता है।