जॉनर : रोमांटिक
एक्टर : शाहरुख खान, आलिया भट्ट, अली जफर, आदित्य रॉय कपूर, कुनाल कपूर, अंगद बेदी
डायरेक्ट : गौरी शिन्दे
संगीत : अमित त्रिवेदी
कहानी
कबड्डी, कबड्डी, कबड्डी… हमारी जिंदगी रोज ऐसे ही शुरू होती है। खुशियां पाने के लिए हम रोज दौड़ते, भागते हैं। कभी हम सफल होते हैं तो कभी असफल। हम निराश होते हैं, तनाव में रहते हैं, चिल्लाते हैं. कभी हम दूसरों से नफरत करने लगते हैं तो कभी हमें खुद से प्यार भी हो जाता है। गौरी शिंदे की आने वाली फिल्म ’डियर जिंदगी’ हमें हमारे सारे सवालों का जवाब देगी, जो हम अपनी जिंदगी में ढ़ूढ़ते रहते हैं।
डियर जिंदगी कहानी है कायरा (आलिया भट्ट) की जो उभरती हुई सिनेमाटोग्राफर है। उसे परफेक्ट लाइफ की तलाश है। कायरा की तमन्ना है की वो जल्द ही एक डायरेक्टर के तौर पर फिल्म डायरेक्ट करे लेकिन कहानी में कुछ ट्विस्ट आता है, कुछ सवालों के जवाब के लिए वो हर दिन जूझती रहती है। तभी कहानी में समय-समय पर कुछ किरदार जैसे प्रोड्यूसर रघुवेन्द्र (कुनाल कपूर), होटेलियर सिड (अंगद बेदी) और सिंगर रूमी (अली जफर) आते हैं जिनके साथ कायरा थोड़ा वक्त गुजरती है लेकिन संयोग से उसकी मुलाकात जहांगीर खान उर्फ जग्स (शाहरुख खान) से होती है। जग्स की सोच लीक से हट कर है। इस मुलाकात से कायरा का जिंदगी और खुद के प्रति दृष्टिकोण बदल जाता है। उसे पता चलता है कि सुख साधन को खोजने और जीवन की अपूर्णता का अर्थ ही खुशियां है।
म्यूजिक
फिल्म का म्यूजिक एक बार फिर से अमित त्रिवेदी ने बेहतरीन दिया है, फिल्म का टाइटल ट्रैक और बाकी गाने भी फिल्म के हिसाब से करेक्ट हैं। बैकग्राउंड स्कोर भी बहुत अच्छा है। 1983 में आई फिल्म ’सदमा’ का लोकप्रिया गाना ’ऐ जिंदगी गले लगा ले’ आपको याद ही होगा। एक बार फिर से इस गाने के मैजिक को दोहराते हुए शाहरुख-आलिया की फिल्म ’डियर जिंदगी’ में इस गाने को एकदम नए तरीके के साथ लॉन्च किया गया है। इस गाने को अमित त्रिवेदी ने कंपोज किया है और अरिजीत सिंह ने इसे अपने सुरों से संवारा है। फिल्म का यह गाना आपको रिफ्रेश कर देगा। इस गाने में आलिया शाहरुख के प्रति अपने छुपे हुए प्यार को खोजती नजर आ रही हैं।
परफॉर्मेन्स
आलिया भट्ट की परफॉर्मेन्स को देखकर कह सकते हैं की वो इस पीढ़ी की सर्वोत्तम अभिनेत्री हैं जिनके पास एक्सप्रेसशन्स की कोई कमी नहीं है। आलिया आपको कभी हंसाती हैं तो कभी कभी आँखें नम करने पर विवश भी करती हैं। वहीं फिल्म में अंगद बेदी, कुनाल कपूर और अली जफ़र का काम भी सहज है। शाहरुख खान जब भी स्क्रीन पर आते हैं, एक अलग तरह की ऊर्जा थिएटर में दिखाई पड़ती है। शाहरुख जिंदगी की कुछ अहम् बातों पर भी एक सरल अंदाज में रोशनी डालते हैं। आलिया के दोस्तों के रूप में इरा दुबे और बाकी एक्टर्स ने भी अच्छा काम किया है।
कमजोर कड़ियां
फिल्म की कमजोर कड़ी इसकी लेंथ है जो लगभग ढाई घंटे की है। यह कुछ लोगों को ही बांध कर रख पाएगी। फिल्म की एडीटिंग और बेहतर की जाती तो ये क्रिस्प होने के साथ-साथ ज्यादा बेहतर लगती। वैसे तो ये पूरी फैमिली के साथ देखी जा सकती है लेकिन आज के 20-20 वाले जमाने में कहानी टेस्ट क्रिकेट जैसी लगती है। यही कारण है की शायद ये हर एक तबके को खुश ना कर पाए।