जेपी ज़िंदगी भर गुड़ ही रहे, ये चेले हो गए शक्कर
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जयप्रकाश नारायण को आजादी के बाद जनआंदोलन का जनक माना जाता है। उन्होंने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों से लोहा लिया। इंदिरा गांधी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। लोकनायक के रूप में लोकप्रिय जयप्रकाश नारायण ने भारतीय राजनीति में कई बदलाव किए। इस आंदोलन ने जहां इंदिरा गांधी को जड़ से उखाड़ दिया वहीं कई युवा नेता भी सामने आए। आंदोलन के कारण चंद्रशेखर, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव जैसे कई दिग्गज नेता सामने आए जो आज भी भारतीय राजनीति के स्टार नेता है। आज जयप्रकाश नारायण की पुण्यतिथि है और यहां हम आपको बताने जा रहे हैं उन्हीं नेताओं के अब तक के राजनीतिक सफ़र के बारे में जो जेपी आंदोलन से नेता के रूप में उभरे…
नीतिश कुमार
नीतिश कुमार का सियासी सफ़र जेपी आंदोलन से शुरू हुआ था। 1977 में नीतिश जनता पार्टी में शामिल हुए। 1985 में नीतिश ने बिहार विधानसभा में चुनाव जीता। इसके 4 साल बाद जनता दल के टिकट पर पहली बार लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरे और जीत हासिल की। इसके बाद कुछ महीने के लिए वे राज्य कृषि मंत्री रहे। 1998-2000 के बीच वो केंद्र में कृषि, रेल और ट्रांसपोर्ट मंत्री के पदों पर रहे। 2000 में बिहार के मुख्यमंत्री भी बने लेकिन केवल आठ दिनों के लिए। 2000-2004 में नीतिश कुमार एक बार फिर केंद्र में कृषि और रेल मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री रहे। वो 2004 में आम चुनाव में छठी बार जीते और संसद में जनता दल यूनाइटेड के लीडर बने। 2005-2014 के बीच नीतिश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री की हैसियत से नाम कमाया। लोगों ने कहा उनके नेतृत्व में बिहार आर्थिक रूप से आगे बढ़ा लेकिन 2014 के आम चुनाव में उनकी पार्टी की बुरी तरह हार के कारण उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री पद पर बिठा दिया। बाद में दोनों नेताओं में ठनी। मांझी पार्टी से निकाले गए। 2015 में फ़रवरी में एक बार फिर से वो बिहार के मुख्यमंत्री बने। अब उन्होंने लालू प्रसाद से बीजेपी के खिलाफ हाथ मिलाया है। अपने अब तक के राजनीतिक सफ़र में नीतिश की छवि जेपी की तरह की साफ-सुथरे नेता की है। ये कह सकते हैं कि नीतिश पूरी तरह से जेपी के राजनीतिक सिद्धांतों का पालन कर रहे हैं।
सुशील मोदी
बीजेपी नेता सुशील मोदी भी जेपी आंदोलन की पैदावार हैं। जब लालू पटना विश्वविद्यालय के अध्यक्ष बने उस समय सुशील मोदी इसके महासचिव बनाए गए थे। आपातकाल के दौरान वो 19 महीने जेल में रहे। सुशील मोदी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में कई पदों पर रहने के बाद 1983 में इसके महासचिव बनाए गए। 1990 में बिहार विधानसभा का चुनाव लड़े और जीते। 1996-2004 में पूरे अरसे में वो बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता बने रहे। इसके बाद 2004 में भागलपुर से लोकसभा का चुनाव जीते। 2005 में बिहार में एनडीए सत्ता में आई और सुशील उप मुख्यमंत्री बने। इससे पहले उन्हें लोकसभा सीट से इस्तीफा देना पड़ा। बिहार में 2010 के विधानसभा में एनडीए की दोबारा जीत के बाद भी वो उपमुख्यमंत्री के पद पर बने रहे। ये भी जेपी के चेले रहे हैं और इनकी छवि भी अपने गुरू की ही तरह साफ-सुथरी रही।
शरद यादव
1974 में शरद पहली बार मध्य प्रदेश में जबलपुर से चुनाव जीत कर सांसद बने। जेपी आंदोलन अपने शबाब पर था। खुद जयप्रकाश नारायण ने उन्हें इसमें शामिल होने का न्योता दिया। वो इस आंदोलन में शामिल युवा नेताओं में सबसे प्रसिद्ध थे। जेपी के प्रोत्साहन पर वो 1977 में लोकसभा का चुनाव फिर लड़े और विजयी रहे। इसके बाद 1978 में लोक दल के महासचिव बने। 1989-90 में प्रधानमंत्री वीपी सिंह की कैबिनेट में पहली बार केंद्रीय मंत्री बने। उन्हें वस्त्र और खाद्य प्रसंस्करण मंत्री बनाया गया। 1997 में जनता दल के अध्यक्ष बनाए गए। 1999-2002 में एक बार फिर वो मंत्री बने और इस बार नागरिक उड्डयन विभाग मिला। इसके बाद श्रम मंत्री बने। शरद यादव जनता दल यूनाइटेड की स्थापना (2003) के समय से इसके अध्यक्ष हैं। वो सात बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं जबकि दो बार राज्यसभा के लिए। वे लालू-नीतीश के महागठबंधन के एक तरह से सरपरस्त हैं।
चंद्रशेखर
1962 से 1968 तक चंद्रशेखर भारत के ऊपरी सदन राज्य सभा के सदस्य थे। उन्होंने 1984 में भारत की पदयात्रा की, जिससे उन्होंने भारत को अच्छी तरह से समझने की कोशिश की। इस पदयात्रा से इन्दिरा गांधी को थोड़ी घबराहट हुई। उन्होंने पहले का नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह के राजीनामा के बाद जनता दल से कुछ नेता लेकर समाजवादी जनता पार्टी स्थापना की। उनकी सरकार को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने चुनाव ना करने के लिए समर्थन करने के बाद उनकी छोटी बहुमत की सरकार बन गई। कांग्रेस ने उनके सरकार को सहयोग को नकारने के बाद उन्होंने 60 सांसद के समर्थन के साथ इस्तीफे की घोषणा कर दी। चंद्रशेखर 7 महीने तक प्रधानमंत्री के पद पर भी रहे। उन्होंने राष्ट्रीय चुनाव तक प्रधानमन्त्री का पद संभाला। चन्द्रशेखर उनके संसदीय वार्तालाप के लिए बहुत चर्चित थे। उन्हें 1995 में आउटस्टैण्डिंग पार्लिमेन्टेरियन अवार्ड भी मिला था। कुल मिलाकर चंद्रशेखर के दामन पर भी कोई दाग नहीं रहा। 2007 में कैंसर के चलते इनकी मौत हो गई थी।
लालू यादव
1970 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव रहे। 1973 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे। 1974-77 में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाले आंदोलन में शामिल हुए। लालू इस आंदोलन के सबसे अहम युवा नेता थे। 1977 में आपातकाल के बाद हुए आम चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर लालू छपरा से जीत कर 29 साल की उम्र में सांसद बने। 1980 में लोकसभा चुनाव हारे लेकिन विधानसभा चुनाव में उनकी जीत हुई। 1985 में विधानसभा के लिए दोबारा चुने गए। 1989 में कर्पूरी ठाकुर के देहांत के बाद लालू यादव विधानसभा में विपक्ष के नेता बने। उसी साल लोकसभा चुनाव में जीते। 1990 में प्रधानमंत्री वीपी सिंह जनता पार्टी की ओर से बिहार में राम सुन्दर दास को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे और चन्द्रशेखर चाहते थे रघुनाथ झा को बनाना चाहते थे। उपमुख्यमंत्री देवी लाल ने लालू प्रसाद के नाम का प्रस्ताव सामने रखा। तब तक लालू बिहार में यादव और मुस्लिम समुदाय के लीडर माने जाने लगे थे। इसी साल मुख्यमंत्री की हैसियत से उन्होंने लाल कृष्ण अडवाणी की रथ यात्रा रोकी थी। 1997 में चारा घोटाले के कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। इस्तीफे के बाद पत्नी राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं। जनता पार्टी में अपने खि़लाफ विद्रोह के ख़तरे के कारण अपनी अलग पार्टी बनाई और इस तरह 5 जुलाई 1997 को राष्ट्रीय जनता दल की स्थापना हुई। 2004 में आम चुनाव में पार्टी को 21 सीटें मिलीं। लालू दो लोकसभा सीटों से जीते और यूपीए सरकार में शामिल हुए। वो रेल मंत्री बने। उनके नेतृत्व में भारतीय रेल ने भारी आर्थिक क़ामयाबी हासिल की। 2013 में लालू यादव चारा घोटाला केस में दोषी पाए गए। उन्हें जेल जाना पड़ा और लोकसभा की सीट छोड़नी पड़ी। 2014 में आम चुनाव में उनकी पार्टी को केवल 4 सीटें मिलीं। 2015 में पुराने साथी नीतीश कुमार का दामन पकड़ा। उनसे दोस्ती, फिर दुश्मनी और एक बार फिर दोस्ती करके बीजेपी को हराने के लिए एक महागठबंधन की स्थापना की। जेपी के सभी चेलों की अगर बात की जाए तो उनमें लालू यादव ही ऐसा एक नाम है जिसने जेपी के सिद्धांतों का पालन नहीं किया है और खुद भ्रष्टाचर में लिप्त पाए गए।
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