स्वास्थ्य और स्वच्छता के लिए हानिकारक हैं डिस्पोजेबल सैनिटरी नैपकिन
जब भी कोई महिला डिस्पोजेबल सैनिटरी नैपकिन खरीदती है तो उसके दिमाग में लंबे समय तक चलने वाला, आरामदायक और दाग से रहित होने की बात रहती है। ज्यादातर महिलाएं ये नहीं जानतीं कि भारत में हर महीने में एक अरब से ज्यादा सैनिटरी पैड गैर निष्पादित हुए सीवर, कचरे के गड्डों, मैदानों और जल स्त्रोतों में जमा होते हैं, जो बड़े पैमाने पर पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक साबित हो सकते हैं।
भारत में सैनिटरी पैड का सुरक्षित तरीके से निपटारा बड़ी चुनौती
भारत में महिलाओं की मासिक धर्म से जुड़ी भ्रांतिया व अंधविश्वास के साथ इस्तेमाल होने वाले सैनिटरी पैड का सुरक्षित तरीके से निपटारा होना बड़ी चुनौती बन चुकी है जबकि भारत सरकार जहां संभी महिलाओं और लड़कियों को खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, सैनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराना सुनिश्चित कर रही है। विशेषज्ञों ने सैनेटरी पैड के निस्तारण के मुद्दे पर खास ध्यान दिया, जो हर साल करीब 113,000 टन निकलता है। इस समस्या को महसूस करने के बाद नरेन्द्र मोदी की सरकार पिछले साल नए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम को ले आई, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।
सैनिटरी पैड के निपटारे में भारत पीछे –
लेज ने एजेंसी से बातचीत के दौरान बताया कि मासिक धर्म से संबंधित कचरे के निस्तारण के मुद्दे पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन एक उपेक्षित मुद्दा है और डिस्पोजेबल इसके संदर्भ में शायद सबसे उपेक्षित विषय है। केरल स्थित सस्टेनेबल मेनस्टूएशन केरल कलेक्टिव एनजीओ की कार्यकर्ता श्रद्धा श्रीजया बायो डिग्रेडेबल और टॉक्सिन फ्री सैनिटरी उत्पाद का प्रचार करती हैं। उनका मानना है कि भारत सैनिटरी कचरे के निपटान में बहुत पीछे है और उन्होंने नए नियमों को बहुत कमजोर बताया। उन्होंने कहा कि अगर हम इस मुद्दे से निपटना शुरू नहीं करते हैं तो हमारे पास बहुत सारा नॉन-डिग्रेडेबल कचरा इकट्ठा हो जाएगा जिसे नष्ट करने में सैकड़ों साल लग जाएंगे।
नॉन कम्पोस्टेबल पैड कचरा वाले क्षेत्रों में डाले जाते हैं-
एक सर्वे के मुताबिक भारत में करीब 33.6 करोड़ लड़कियां और महिलाएं मासिक धर्म से गुजरती हैं। जिसका मतलब है कि उनमें से करीब 12.1 करोड़ डिस्पोजेबल सैनिट्री नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं। पाथ कंपनी द्वारा कराए गए एक सर्वे के अनुसार एक अरब से ज्यादा नॉन -कम्पोस्टेबल पैड कचरा वाले क्षेत्रों और सीवर में डाले जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े शहरों की अधिकांश महिलाएं कॉमर्शियल डिस्पोजेबल सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। उन्हें यहां नहीं मालूम होता कि ये उत्पाद कुछ रसायनिक पदार्थों की मौजूदगी के कारण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। इसके निस्तारण के अभाव की जानकारी में महिलाएं इसे कचरे के डिब्बे में फेंक देती हैं, जो और तरह के सूखे और गीले कचरे के साथ मिल जाता है।
कपड़े का इस्तेमाल यानि स्वास्थ्य के लिए खतरा-
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर महिलाएं व लड़कियां कपड़े का इस्तेमाल करती हैं जो सही तरह से धूप में नहीं सूखा होने के कारण उनके लिए कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्या पैदा करता है। पर्यावरण के समर्थक दोबारा इस्तेमाल में लाए जा सकने वाले कपड़े के पैड, बायोडिग्रेडेबल पैड और कप सहित पर्यावरण के अनुकूल सैनेटरी पैड के इस्तेमाल पर जोर दे रहे हैं।
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