मानवीय अस्तित्व की सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि हम सभी के भीतर एक अदृश्य अग्नि निरंतर जलती रहती है। यह वह लौ है जो हमें चलाती है, जो सृजनात्मक भी है और यदि उसे नियंत्रित न किया जाए, तो विनाशकारी भी। जब हम एकांत में होते हैं, तो हम अक्सर इस आंतरिक ऊर्जा से संवाद करते हैं, उस आग से गुजरते हैं जो हमारे व्यक्तित्व को आकार देती है। यह अग्नि हमसे निरंतर प्रश्न करती है कि हम भविष्य में क्या बनेंगे, और इसका उत्तर कुछ भी हो सकता है, लेकिन ‘शून्य’ कभी नहीं।
इश्क, इंतज़ार और विरह की तपन
जीवन की इस अग्नि का सबसे प्रखर रूप मानवीय प्रेम और संबंधों में देखने को मिलता है। शायराने अंदाज में कहें तो प्रेम की तपन ऐसी होती है कि इंसान पूरी रात जुगनूओं को अपना हाल सुनाता रहता है और महबूब उसके ख्यालों और बातों में रमता रहता है। प्रेम में पड़ा व्यक्ति अक्सर सुकून की तलाश में हवाओं को टटोलता है, मगर उसे शांति नहीं मिलती, जब तक कि उसे अपने प्रिय की खुशबू नसीब न हो जाए। यह एक ऐसा अहसास है जहां रातों की नींद कहीं खो जाती है और ऐसा प्रतीत होता है मानो वह नींद प्रियतम की आँखों के बिस्तर पर ही विश्राम कर रही हो।
इस जज्बात की गहराई इतनी होती है कि प्रेम करने वाला अपने दिल के पन्नों पर इश्क की स्याही उकेर देता है, जिससे धड़कनों में इत्र जैसी खुशबू बहने लगती है। लेकिन इस अग्नि में केवल संयोग नहीं, बल्कि वियोग की आंच भी शामिल है। प्रेमी अक्सर इस उम्मीद में रहता है कि हवाओं ने उसके आने की खबर महबूब तक पहुंचा दी होगी और वह खिड़की पर बैठी इंतज़ार कर रही होगी। तन्हाई से भरी रातें महज़ एक ख्याल से कट जाती हैं और प्रियतम का एक ज़िक्र छिड़ते ही ढेरों बातें निकल पड़ती हैं।
समर्पण और समाज का नजरिया
प्रेम की यह अग्नि सत्य और असत्य के बीच की लकीर को भी मिटा देती है। एक सच्चे प्रेमी के लिए उसका पूरा जीवन झूठ पर टिका हो सकता है, लेकिन उसकी मोहब्बत ही एकमात्र सच होती है। हालांकि, समाज अक्सर इन हालातों पर अपनी टिप्पणी (तब्सिरा) करने से नहीं चूकता। लोग प्रेमी की स्थिति का विश्लेषण तो करते हैं, लेकिन वे उस दर्द को नहीं समझ सकते। जब तक कोई खुद मोहब्बत के रास्ते से न गुजरे, उसे ‘हिज्र’ (बिछड़ने) की पीड़ा और आखिरी मुलाकात के दर्द का अहसास नहीं हो सकता।
सच्चा प्रेम एकनिष्ठ होता है। इसमें ख्वाबों को मरने नहीं दिया जाता और न ही दिल के आंगन को गमों से भरने दिया जाता है। दिल की वीरानी में कई पनाहगार आते हैं, लेकिन हक सिर्फ उसी एक का होता है, किसी गैर को वहां ठहरने की इजाजत नहीं दी जाती। विडंबना यह है कि कई बार जिसे हम इतनी शिद्दत से याद करते हैं, वह हमें याद ही नहीं करता, और हमारे पास उनके सिवा याद करने के लिए कोई दूसरा विकल्प नहीं होता।
अग्नि का प्रबंधन और जीवन का संतुलन
इस भावनात्मक उथल-पुथल के बीच, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जीवन रूपी इस अग्नि को जलाए रखने के लिए संतुलन बेहद आवश्यक है। जैसे आग को जलने के लिए तीन चीजों के संतुलन की आवश्यकता होती है—ऊष्मा, ईंधन और ऑक्सीजन—वैसे ही हमारे जीवन को भी सही तत्वों की दरकार होती है। हमें उन लोगों का स्वागत करना चाहिए जो हमारी आंतरिक अग्नि को बढ़ाते हैं, न कि उन्हें जो इसे बुझाने या दबाने का प्रयास करते हैं।
कभी-कभी जीवन में, विशेषकर सोमवार से रविवार के चक्र में फंसे रहने के दौरान, हमें सुरक्षा चेतावनियों को नजरअंदाज करने की आवश्यकता होती है। जब बात जुनून और उद्देश्य की हो, तो थोड़ा ‘गैर-जिम्मेदार’ होना—दिलों या दिमाग के साथ नहीं, बल्कि सामाजिक बंधनों के प्रति—आवश्यक हो जाता है। यह एक आजीवन प्रतिबद्धता है, किसी उद्देश्य के लिए खड़े होने की।
राख होने से पहले का सफर
जीवन को एक सुरक्षित और नियंत्रित अलाव की तरह तैयार करना पड़ता है। इसके लिए हमें पहले आधार बनाना होता है, उसे पत्थरों से घेरकर एक संरचना देनी होती है। हम छोटे सपनों रूपी तिनकों (Tinder) और टहनियों (Kindling) का उपयोग करके लपटों को उकसाते हैं, उन्हें बढ़ने और फैलने में मदद करते हैं। एक बार जब चिंगारी पकड़ लेती है, तो हम अपनी मेहनत रूपी लकड़ियाँ उसके चारों ओर लगा देते हैं ताकि वह जलती रहे।
लेकिन हमें यह शाश्वत सत्य भी याद रखना होगा कि हर आग की नियति बुझना है। स्थानीय कानूनों की जाँच करें, सुरक्षित स्थान चुनें, और पानी व फावड़ा साथ रखें—ये निर्देश केवल अलाव जलाने के लिए नहीं, बल्कि जीवन जीने के तरीके के लिए भी रूपक हैं। हम अपरिहार्य को नहीं रोक सकते। अंततः, चाहे हम दफन हों या चिता पर लेटाए जाएं, हमारी यह आंतरिक और बाह्य अग्नि तब तक ही जलती है, जब तक कि वह शांत नहीं हो जाती। इसलिए, जब तक हम ‘नहीं’ हैं, तब तक हमारे पास विकल्प है कि हम अपनी इस अग्नि को कैसे प्रज्वलित रखते हैं।