जिसका डर था, वहीं बात हो गई, करीब 70 वर्षों की आजादी फिर परतंत्र होने जा रहीं है। हमारे संविधान को बने भी 67 वर्ष हो चुके है। हम वहीं हैं, हमारा संविधान वहीं है किन्तु हमारी आजादी को फिर ‘खतरा ए आम’ होने जा रहा है। सबसे अधिक स्वदेशी का नारा देने वाली पार्टी, जो अब खुद सरकार में है वो पूर्णत: विदेशी होने जा रहीं है। हम वहीं हैं, सरकार वहीं है किन्तु उसका संचालन हमारा ना होकर विदेशी हो गया है। अब लड़ाई सीधे ना होकर ‘इकॉनोमिक वार’ की हो चुकी है। हथियार तो डराने धमकाने के लिए तैयार हो रहे हैं बाकि तो अर्थव्यवस्था और बाज़ार से कब्ज़ा होने जा रहा है। ये वहीं सीन दोहराया जा रहा है, जब ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ हमारे देश में आई थी व्यापार करने लेकिन पूर्ण कब्ज़ा कर बैठी। उस समय कब्ज़ा लड़ाई से था, व्यापार के नाम पर किन्तु अब तो व्यापार से ही कब्ज़ा हो जाएगा। स्वदेशी का तो बस नारा रह जाएगा, सब विदेशी हो जाएगा।
समस्या क्या है?
जहाँ तक एफ डी आई (फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट) 49% तक आ रहीं थी वहाँ तक कोई समस्या नहीं आ रहीं थी। पूर्व की कांग्रेस सरकार पर भी काफी प्रेशर थ बढ़ाने का किन्तु कांग्रेस सरकार द्वारा विपक्ष भाजपा के विरोध ने लगातार उसे अनसुना किया, टालते रहें। समस्या तो थी, किन्तु गंभीर नहीं थी। इतना बढ़ा उपभोक्ता बाज़ार हो तो सभी को लालच आ जाता है। विश्वभर की सभी मल्टीनेशनल कंपनियों की लालची निगाहें भारतीय बाज़ार पर लगी रहती है। वहाँ की सरकारें, उन्हें लगातार बेक-अप करती रहती है ताकि उनका अधिकांश बाजारों पर कब्ज़ा स्वत: हो जाए। निश्चित तौर पर इतने बड़े पैमाने पर पैसा बाहर से आएगा तो, उपभोक्ता को सस्ते दाम पर उच्च कोटि का सामान उपलब्ध होगा। बड़ी कंपनी, बड़ा पैसा और विश्व स्तर के सामानों से बाजारों में रौनक होगी। यह हमें दिखलाई पड़ती है। सरकार को भी अर्थव्यवस्था में सम्बल मिलता है। भारत की कुछ कंपनियों को छोड़ दे तो बाकि सभी के पास न इतना पैसा है, न विश्व स्तर का सामान बनाने की क्षमता है। वें कंपनियाँ और छोटे व्यवसायी ख़त्म होने की स्थिति में आ जाएगे। एक बहुत बड़ा वर्ग बेरोजगारी की कगार पर होगा। पहले से ही नोटबंदी, जीएसटी की वजह से व्यवसायियों की तो कमर ही टूट जाएगी। सेल्फ एम्प्लॉयमेंट खत्म सा हो रहा है। सरकार की जितनी भी स्टार्टअप योजनायें थी, वें फेल हो चुकी हैं कोई आकार नहीं ले पाई, सिर्फ जुमले बनकर पेपर पर शोभा बढ़ा रहीं हैं। हमारे सभी युवा साथी डिग्री लेकर बेरोजगार घूम रहें हैं।
विश्व स्तर का सामान तो होगा, खरीदार कहाँ से लाएंगे?
निश्चित तौर पर एफ डी आई बढ़ाने से विश्व स्तर का सामान तो बाज़ार में आ जाएगा, किन्तु उसको हम देखने भर के रह जाएगे। खरीददार कहाँ से लाएंगे? खरीददार तो देशी है, जब उसके पास पैसा ही नहीं होगा तो खरीदेगा क्या? इसकी कमी को पूरा करने के लिए वित्तीय संस्थाये, बैंक सरकार के द्वारा लाई गई लोन की व्यवस्थायें की, किन्तु लोन का हश्र क्या हुआ? कुछ हद तक सामान तो बिका, किन्तु वहीं लोन चुकाने में डिफाल्टर हो गए। बैंक भी डिफाल्टर होने लग गई। कारण उपभोक्ता के पास पैसा ना होना है। उसकी कमाई नहीं होना है। यह तो सरकारी नौकरियों, भ्रष्टाचार का पैसा, बड़ी कंपनियों की सैलेरी का पैसा बाज़ार में हलचल दिखलाता है, वर्ना आम उपभोक्ता तो कंगाली की कगार पर है। इसके उदाहरण हमारे त्यौहारों पर बाज़ार में होने वाली खरीददारी को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है। दीपावली जैसा बड़े से बड़ा त्यौहार भी मन समझाने के लिए मनाया जा रहा है। ऐसे में यह सब भी कितने दिन चलाया जा सकता है। आम आदमी की कमाई के हर रास्ते बंद होते जा रहें है। ना बिजनेस से पैसा, ना सेविंग से पैसा और ना ही इन्वेस्टमेंट से पैसा। ये तो पुराना सेविंग था जो इतना चल रहा है। वह भी कितना दम भरेगा।
उपभोक्ता के हितो को कैसे ध्यान देगी सरकार
इतने बड़े उपभोक्ता बाज़ार में, उपभोक्ता के हितो को किस प्रकार ध्यान में रखेगी सरकार, यह भी एक बहुत बड़ी समस्या है। वह भी जब उन्हें विदेशी ताकतों से निपटना है। उनके प्रेशर को सरकार देश में आने से नहीं रोक पा रहीं है तो वह आम उपभोक्ता के हितो का किस प्रकार ध्यान रखेगी। यह एक बहुत बड़ी समस्या है। पूर्व के यूनियन कर्बोइड, पेप्सीकोला जैसे उदाहरणों से हमें समझ लेना चाहिए। जहाँ हम भारतीयों कानूनों द्वारा, भारतीय कंपनियों से उपभोक्ता को नहीं बचा पा रहें है, ऐसी स्थिति में हम विश्व कानूनों से विश्व स्तर की सक्षम कंपनियों से अपने देश के उपभोक्ताओं को कैसे बचा पाएँगे, समझ से परे है। हमारे उपभोक्ता कोर्ट इतने सक्षम नहीं है। हमारी सरकारें भी बस उनके दिवस को मना अपने कर्त्तव्यों की इति श्री कर लेती है। ऐसे में स्थिति भयावह ही है।
अंत में
नोटबंदी फेल हुई क्योंकि सरकार की तैयारी नहीं थी। जीएसटी परेशानियाँ खड़ी कर रहा है क्योंकि सरकार की तैयारी नहीं थी। दिन-प्रतिदिन उन्हें अमेंडमेंट के नोटिफिकेशन लाना पड़ रहें है। जैसा की नोटबंदी के वक़्त हुआ, रोज नए नियम आ रहें थे। ऐसे में सरकार पूरा देश एफ डी आई के भरोसे सौंपने की तैयारी कर रही है, किस आधार पर? ना सरकार की तैयारी और ना ही देश की तैयारी। यह एक आत्म हत्या करने के समान होगा। विपक्ष कमजोर, न्याय व्यवस्था लाचार हो स्वयं जनता के सामने है। जनता स्वयं लाचार हो सब झेल रहीं है तो यह देश किसके भरोसे? जिस जनता ने प्रचंड बहुमत से स्वदेशी का टैग लगाने वाली पार्टी को देश सौंपा वही विदेशी हो चली। देश फिर किस्मत, भगवान के भरोसे हो चला। हे ईश्वर हमारी सरकार को सद्बुद्धि प्रदान करें।