सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया निर्भया गैंगरेप केस पर अंतिम फैसला
पूरे देश को हिलाकर रख देने वाले बहुचर्चित निर्भया कांड के सामूहिक दुष्कर्म और हत्याकांड के 4 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। चारों ने उस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में फांसी रोकने हेतु याचिका प्रस्तुत की थी। आज सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति आर.भानुमति और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की संयुक्त पीठ ने इस मामलें में फैसला दिया। देश के इस सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में चारों दोषियों की सजाए मौत को बजरिए फांसी बरक़रार रखा।
गुनाह रियायत योग्य नहीं, समाज में शोक की एक सुनामी
काफी विस्तृत फैसले में कोर्ट ने कहा “गुनाह रियायत योग्य नहीं है, समाज में शोक की एक सुनामी आ गई थी, हाईकोर्ट का फैसला उचित था जिसरे हम बरक़रार रखते है. सुनवाई से पहले निर्भया की मां ने कहा था, ‘उन लोगों को मौत की ही सजा होनी चाहिए, उम्रकैद से काम नहीं चलेगा। मैंने यह दिन देखने के लिए अपने आपको जिंदा रखा है।’ कोर्ट ने पीड़ित माँ के मन की गुहार को एक तरह से आज मानकर ऐसे वीभत्स अपराधियों को आगे कुछ भी ऐसे घिनोने अपराध करने पर भयावह डर रखने को मजबूर कर समाज को भी बढ़िया सन्देश दिया है।
इन 4 दोषियों को होगी फांसी, 5वें ने कर लिया था सुसाइड, 6ठा नाबालिग छूटा
दोषियों मुकेश, पवन, विनय शर्मा और अक्षय कुमार सिंह की अपीलों पर 27 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था। चारों ने 13 मार्च, 2014 को उच्च न्यायालय द्वारा दोषी ठहराये जाने और सुनाई गयी मौत की सजा के खिलाफ अपील की थी। इन चारों के अलावा 2 और दोषी थे। जिसमें से एक राम सिंह ने सुसाइड कर लिया था और दूसरा नाबालिग था। जिसको जिवेनाइल एक्ट के तहत छोड़ दिया गया था।
क्या है मामला?
साल 2012 में 16 दिसंबर की रात को 23 वर्षीय पैरामेडिकल छात्रा के साथ दक्षिण दिल्ली में एक चलती बस में जघन्य तरीके से सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसे उसके एक दोस्त के साथ बस से बाहर फेंक दिया गया था। उसी साल 29 दिसंबर को सिंगापुर के एक अस्पताल में लड़की की मौत हो गयी थी।
दोषी करार दिये जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका से निपटने के अलावा सुप्रीम कोर्ट दोषियों को दी जाने वाली सजा की मात्रा के मुद्दे पर भी विचार-विमर्श कर रहा है। दिल्ली पुलिस ने दोषियों के लिए मौत की सजा की मांग की थी, वहीं बचाव पक्ष के वकील ने कहा था कि गरीब पारिवारिक पृष्ठभूमि के होने और युवा होने की वजह से नरमी बरती जानी चाहिए।
सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने फांसी बरकरार रखने के लिए ये दलील दी
दिल्ली पुलिस की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने दलील दी थी कि इन चारों दोषियों ने बर्बर कृत्य किया है और इस मामले में चारों को फांसी की सजा दी जानी चाहिए। सजा कम करने की कोई परिस्थितियां नहीं है। इस मामले में सजा में कोई रियायत नहीं होनी चाहिए। वहीं, दिल्ली महिला आयोग की प्रमुख स्वाति मालिवाल ने कहा, ”रोज दिल्ली में 6 रेप होते हैं। 6 निर्भया बनती हैं।
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