विश्वसनीयता खोती सरकार, विपक्ष भी उतना ही जिम्मेदार
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अभी हाल ही आरबीआई की एक रिपोर्ट आयी है कि करीब आधा धन जनता के बीच में जा चुका है फिर भी धन की किल्लत ज्यों की त्यों बनी हुई है। जनता ने अपनी दिनचर्या में तो धन का लेनदेन करना शुरू कर दिया है किन्तु रकम वापस बैंक तक नहीं पहुंच रही है। यह एक सीन ही काफी होता है जिससे यह अंदाज़ लगाया जा सकता है कि सरकार की विश्वसनीयता कितनी है। सरकार ने नोटबंदी क्या लगाई पूरे देश में आर्थिक आपातकाल सा लग गया। बात सिर्फ नोटबंदी तक सीमित न रह कर नित नये बदलते सरकार के नियमों में उलझ गई। 50 दिन की तय सीमा में से करीब 40 दिन में 60 बार नियमों में बदलाव हआ। सरकार स्वयं इस नोटबंदी से कितनी कन्फ्यूज़ है पता चलता है। खुद के लिए गए निर्णय पर खुद ही पलट रही है, ऐसे में जनता के बीच उसकी विश्वसनीयता पर बट्टा लगाना तो लाज़मी है।
कहने को छः माह की तैयारी, जो कही नहीं दिखाई देती है। जनता का इस पर क्या रिएक्शन होगा, इसका अंदाज़ लगाने में नाकामयाब रही सरकार। फिर जनता को ही चोर साबित करने में, जनता के एक्शन पर अपनी रिएक्शन देती सरकार अपने नियमों में दिन-प्रतिदिन बदलाव करती रही। इससे भी साफ जाहिर होता है कि सरकार द्वारा बगैर सोचे-समझे, बगैर अनुभवी लोगों के अनुभव का लाभ लिए, ये निर्णय किया गया था। नोटबंदी के बाद मचे हाहाकार के बाद सरकार की ये रिएक्शन उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगा रही है। ऐसा लग रहा है मानो वह अपने फैसले को सही साबित करने के चक्कर में ऐन-केन-प्रकरेन जनता को गलत साबित करने पर आमदा किसी माफिया की तरह कार्य कर रही है जिसकी सुनवाई कहीं नहीं है। आम जनता समझ ही नहीं पा रही है कि वो क्या करे, क्या नहीं करे। उसे रोज नयी-नयी धौंस देती सरकार नज़र आ रही है। ऐसे में सरकार की विश्वसनीयता में गिरावट देश के लिए घातक साबित हो रही है।
सरकार के प्रति अविश्वसनीयता और जनता में फैले इस आक्रोश के लिए जितनी सरकार जिम्मेदार है उतना ही विपक्ष भी जिम्मेदार है। सरकार की इस गलती को, जनता को इस पर हुई परेशानियों को विपक्ष भी सही ढंग से उठाने में और सरकार पर प्रेशर बना कर बदलवाने में कामायाब नहीं हो सका। किसी भी सरकार के फैसले तभी तक अंकुश में रहते है जब विपक्ष अच्छा हो। अच्छी सरकार के लिए अच्छे विपक्ष का होना जरूरी है, तभी जन हित के फैसले हो पाते है। यहां भी विपक्ष संसद में हंगामे से ज़्यादा कुछ नहीं कर पाया। जिससे जनता के पैसों का नुकसान भी हुआ और जनता के फायदे में कोई फैसला नहीं हो पाया जबकि विपक्ष को जनता के बीच में जाकर आंदोलन करना था और संसद में सार्थक बहस होना चाहिए थी।
अभी चंडीगढ़ में हुए निगम चुनावों में भाजपा को मिली जीत को सरकार अपने नोटबंदी के फैसले को सही ठहराने में कर रही है जो कि गलत ही है। जनता की मनःस्थिति को समझे तो जनता राजनैतिक लोगों को ही अविश्सनीय मानती है। किन्तु यह उसकी विवशता है कि उसे किसी एक को चुन कर भेजना है। यहां भी उसे यह पता है कि यह फैसला गलत है, उससे उसे परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, किन्तु उसके बावजूद कालेधन के खिलाफ, भ्रष्टाचार के खिलाफ भाजपा के साथ दिखाई देती हैं। शायद कुछ अच्छा हो जाए की सोच को लेकर। यहां अन्य पार्टियों की विश्वसनीयता उससे भी ज़्यादा बदतर नज़र आती है। यह किसी फैसले के पक्ष या विपक्ष में वोट नहीं बल्कि खुद की सार्थक सोच के लिए वोट था। यह बात सभी को समझ में आ जाना चाहिए अन्यथा सरकार और विपक्ष दोनों के प्रति जनता का अविश्वसनीय होना कही बड़े खतरे में तब्दील न हो जाए। ‘जय हिन्द’
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