इस्लाम या मुस्लिम बहुल देशों में समलैंगिक संबंधों, वो भी नाबालिग अथवा नादान लड़कों के साथ को नाज़ायज़ मानकर उनके खिलाफ काफी कड़े कानून लागू हैं। पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान में भी ऐसे नीच जुर्म के खिलाफ कड़े कानून हैं। पिछले कई दशकों से गृह युद्ध के आग में जल रहे इस देश में नाबालिग लड़कों का यौन शोषण, बलात्कार और यौन गुलाम बनाया जाना आम बात बनकर बदस्तूर जारी है।
गिरफ्त से बचकर भागे 3 नाबालिगों से बातचीत :
अफगानिस्तान में बच्चों पर नाचने-गाने का पेशा अपनाए जाने का दबाव बनाया जाता है। अफगानिस्तान में इसे “बचा-बाजी” कहते हैं। समाचार एजेंसी AFP ने अपनी विशेष रिपोर्ट में अफगानिस्तान के 3 नाबालिगों से बात की है, जो किसी तरह से अपने यौन शोषकों के गिरफ्त से बचकर निकल कर भाग पाए हैं।
इन 3 बच्चों में एक जावेद (बदला हुआ नाम) है, जो अब अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में “बचा-बाजी” की महफिलों में नाच-गाकर जीवनयापन करते हैं। जावेद के अनुसार उनके कमांडर ने 4 साल तक उनका यौन शोषण करने के बाद नया “बाल-गुलाम” खरीद लिया और उन्हें दूसरे स्थानीय सरदार को “तोहफे” के तौर पर दे दिया। जावेद की उम्र अब 19 साल है। जावेद ने AFP को बताया कि उनका नया मालिक उन्हें एक शादी में मनोरंजन के लिए ले गया था। शादी में गोलीबारी शुरू हो गई और उस अफरा-तफरी में वो वहां से भाग निकला।
नकली बाल और नकली स्तन लगाते हैं
ऐसे लड़कों की बड़ी मुश्किल ये है कि वो यौन शोषण करने वालों की गिरफ्त से छूट भी जाएं तो कानूनी तौर पर उन्हें कोई सुरक्षा नहीं मिलती, न ही आगे का जीवन गुजारने के लिए कोई मदद मिलती है। जावेद जरा भी पढ़ा लिखा नहीं है। उसके पास जीवनयापन का और कोई जरिया भी नहीं है। उसे केवल नाचना-गाना ही आता है, जिससे वो अपना पेट पाल सकता है। इसलिए जावेद अब स्थानीय “बचा-बाजी” महफिलों में डांस-शो पेश करता है और पुरुष-वैश्या के तौर पर भी अपनी सेवा देता है। जावेद ने AFP को बताया कि महफिल के बाद मुझे घर ले जाने के लिए अक्सर झगड़ा हो जाता है। “बचा-बाजी” की महफिलों में मनोरंजन करने वाले लड़के खुद को महिला की तरह तैयार करते हैं। वो नकली बाल और नकली स्तन लगाते हैं, साथ ही महिलाओं की तरह ही मेकअप करते हैं।
पुलिसवाले गरीब कमसिन बच्चों को ऐसे लोगों को सौंप देते हैं
15 वर्षीय गुल (बदला हुआ नाम) ने 2 बार कैद से भागने की विफल कोशिश की। दोनों बार उसकी जमकर पिटाई हुई, लेकिन तीसरी बार वो भागने में सफल रहा। अब वो कहीं टिककर नहीं रहता क्योंकि उसे लगता है कि फिर कोई उसे गुलाम बना लेगा। गुल के माता-पिता को भी घर छोड़ना पड़ा क्योंकि उन्हें डर था कि गुल के भागने के बाद उसका मालिक कमांडर उसे परेशान करेगा। गुल ने बताया कि कुछ पुलिसवाले भी गरीब घरों के कमसिन बच्चों को ऐसे लोगों को सौंप देते हैं।
वेश्यावृत्ति के अलावा कोई चारा नहीं बचा
अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने इस साल “बचा-बाजी” के खिलाफ कड़ा कानून बनाया है, लेकिन ये कानून कब से लागू होगा, इस बारे में स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है। फरवरी में पुलिस ने “बचा-बाजी” की कई महफिलों पर छापा मारा था, लेकिन ऐसी महफिल आयोजित करने वालों के बजाय पीड़ित बच्चों को ही गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। जावेद ने बताया कि इन छापों के बाद नाच-गाकर जीवनयापन करना बहुत मुश्किल हो गया है। जावेद कहते हैं कि ऐसे में मेरे पास वेश्यावृत्ति के अलावा कोई चारा नहीं बचा है।”