सब थे मौजूद, दूल्हा था गायब, फिर ऐसे हुआ निकाह
आपने फिल्म बद्री की दुल्हनिया तो देखी ही होगी। इस फिल्म में जब बद्री की शादी होती है तो इस शादी में सब लोग होते हैं दूल्हा, उसके घरवाले, दुल्हन के घरवाले और जमानेभर के रिश्तेदार। लेकिन बस दुल्हन नहीं होती है, बाद में पता चलता है दुल्हन अपना करियर बनाने के लिए अपनी शादी को बीच में ही छोड़कर चली गई।
यहां कुछ-कुछ ऐसा ही हुआ। यहां पर सब लोग मौजूद थे। दुल्हन थी, दुल्हे और दुल्हन के घरवाले और बाकी रिश्तेदार भी मौजूद थे लेकिन दूल्हा नहीं था। बात दो-तीन दिन पुरानी ही है जब शामली की एक 414 साल पुरानी मस्जिद में निकाह हो रहा था लेकिन दूल्हा सऊदी अरब में था, अब निकाह पढ़ने की पूरी तैयारी हो चुकी थी क्या करते।
तो इस समस्या को दूर करने के लिए सऊदी अरब में बैठे दूल्हा का विडियो कॉलिंग से निकाह पढ़ाया गया। जिस मस्जिद में निकाह हुआ वह शाहजहां के जमाने में बनी 414 साल पुरानी शाही जामा मस्जिद है। आज के युग में नए ट्रेंड का निकाह होता देखने को मिला। दो वकीलों और 21 हजार रुपये के मेहर में निकाह पूरा हुआ।
शामली शहर के मोहल्ला आजाद चौक निवासी रहम इलाही कुरैशी बस चालक हैं। उनकी बेटी नाहिद अंजुम का रिश्ता बिजनौर के किरतपुर निवासी आबिद से हुआ था। आबिद सऊदी अरब के रियाद में एक शाह के यहां पर काम करता है। सोमवार को बरात आनी थी, लेकिन कागजातों में कमी के चलते उसे छुट्टी नहीं मिली और लड़का निकाह में नहीं आ पाया। बाद में धर्मगुरुओं से विडियो कॉलिंग से निकाह की राय पर सहमति जताई गई। इसलिए बिना दूल्हे के ही बारात लेकर शामली पहुंचे।
दूल्हे के बड़े भाई ने बताया कि दूल्हा सऊदी अरब में रहते हुए ही विडियो कॉल के जरिए निकाह कबूल किया। मौके पर उन्होंने भी अपने भाई के लिए निकाह कबूल किया। शामली शहर का यह ऐसा पहला निकाह शहर के बड़ा बाजार स्थित 414 साल पुरानी जमा मस्जिद में शाही इमाम मौलाना शौकीन कैरानवी ने विडियो कॉलिंग से दूल्हे को कबूल कराया है। इस दौरान निकाह में लड़की पक्ष और लड़के पक्ष की ओर से 2-2 गवाह और वकीलों ने भी हिस्सा लिया और उन्हीं की मौजूदगी में निकाह कबूल किया गया।
मोहम्मद शौकीन, शाही इमाम ने बताया, ’निकाह के बाद मस्जिद परिसर में ही दोनों पक्ष के लोगों ने छुआरे बांटकर एक दूसरे को निकाह की मुबारकबाद दी और दोनों की उम्र भर सलामती की दुआएं कीं। इस्लाम सहूलियत का धर्म है। इस्लाम में लोगों की सहूलियत को देखते हुए फैसले सुनाए जाते हैं। मैं करीब 11 साल से शामली में हूं, लेकिन इससे पहले मैंने ऐसा निकाह नहीं देखा।’
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