सुप्रीम कोर्ट का एतिहासिक फैसला, जम्मू कश्मीर के केस दूसरे राज्य में किये जा सकते हैं ट्रांसफर
By Satish Tripathi
देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर राज्य से जुड़ा हुआ एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि अब वहां के कोर्ट में लंबित मामले भी सुनवाई के लिए दूसरे राज्यों में भेजे जा सकते हैं। पांच जजों की संविधान पीठ ने यह अहम फैसला सुनाया है। अभी तक जम्मू-कश्मीर में यह प्रावधान नहीं था।
आपको बता दें कि देश के संविधान का आर्टिकल 14 कहता है कि सबको न्याय पाने का अधिकार है। अगर कोई राज्य में न्याय पाने में असमर्थ है। तो उसे एक तरह से माना जायेगा कि वह न्याय पाने में वंचित है। संविधान के आर्टिकल 136 के तहत सुप्रीम कोर्ट को अधिकार है। कि वह सभी को न्याय दिलाए।
पांच जजो की पीठ ने सुनाया फैसला
CRPC की धारा 25 कहती है कि देश के किसी राज्य से कोई केस दूसरे राज्य में ट्रांसफर हो सकता है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में रनबीर पैनल कोड RPS में ये प्रावधान नहीं है। इसलिए केस ट्रांसफर नहीं हो सकते थे। कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट आई जिन पर 5 जजों की संविधान पीठ ने ये फैसला सुनाया है। अब सुप्रीम कोर्ट जम्मू-कश्मीर के केस देश में कहीं ट्रांसफर कर सकता है।
आर्टिकल 370 के तहत ये विशेष प्रबंध मिले हैं जम्मू कश्मीर को, नही दे सकता कोई दखल
संविधान का अनुच्छेद 370 अस्थायी प्रबंध के जरिए जम्मू और कश्मीर को एक विशेष स्वायत्ता वाले राज्य का दर्जा देता है.
370 का खाका 1947 में शेख अब्दुल्ला ने तैयार किया था, जिन्हें प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त किया था.
शेख अब्दुल्ला ने 370 को लेकर यह दलील दी थी कि संविधान में इसका प्रबंध अस्थायी रूप में ना किया जाए. उन्होंने राज्य के लिए मजबूत स्वायत्ता की मांग की थी, जिसे केंद्र ने ठुकरा दिया था.
370 के प्रावधानों के अनुसार संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है. लेकिन अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू कराने के लिए केंद्र को राज्य का अनुमोदन चाहिए.
इसी विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर पर संविधान का अनुच्छेद 356 लागू नहीं होता. राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है.
भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते हैं. यहां के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है. एक नागरिकता जम्मू-कश्मीर की और दूसरी भारत की होती है.
यहां दूसरे राज्य के नागरिक सरकारी नौकरी नहीं कर सकते.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 जिसमें देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता.
अनुच्छेद 370 की वजह से ही जम्मू-कश्मीर का अपना अलग झंडा और प्रतीक चिन्ह भी है.
965 तक जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल की जगह सदर-ए-रियासत और मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री हुआ करता था.
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