आज भारत तरक्की की ओर हैं लेकिन गांव का नाम लेते ही हमारे दिमाग में वहीं देहाती पिक्चर बनने लगती है। जिसमें कुछ लोग धोती-कुर्ता पहने किसी पेड़ के नीचे चबूतरे पर बीड़ी या हुक्का फूंक रहे हैं, कुछ ताश के पत्ते खेल रहे हैं, कुछ महिलाएं है जो कुंए से पानी भर रही हैं और रात में हर घर में उजाले के लिए चिमनी जल रही है।
देश में सबसे ज़्यादा अगर कोई बिजली की समस्या से जूझता है तो वो हैं गांव के लोगा। देखा जाए तो खेती करने के लिए सबसे ज़्यादा जरूरत बिजली की होती हैं लेकिन इन्हें ही नाप तौल के बिजली दी जाती है। इनके लिए बिजली घंटे के हिसाब से सेंशन की जाती है। ऐसा प्रतीत होता है कि बिजली की गांव वालों को कोई जरूरत ही नहीं है।
गांव अक्सर अंधेरे से जूझते रहते हैं। इस बात में कोई शक नहीं है लेकिन कुछ गांव ऐसे भी है जिन्होंने अपनी इस समस्या से छुटकारा पा लिया है। वो कहते हैं न कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी होती है ठीक उसी तर्ज पर गांव में भी नए-नए अविष्कार होते ही रहते हैं। कुछ ऐसा ही अविष्कार केरल के एक गांव कल्लादिकोड़े में भी हुआ है।
यहां के लोग भी अंधेरे को अपनी किस्मत मानकर सरकार के भरोसे बैठे थे लेकिन एक ड्राइवर ने इस सोच से बाहर निकलकर कुछ ऐसा कर दिया कि गांव की किस्मत ही बदल गई। इसी गांव के रहने वाले हरिनारायण कई साल से अंधेरे के आदी हो चुके थे लेकिन उन्हें इस अंधेरे में नहीं रहना था इसलिए वो कुछ ऐसा करना चाहते थे कि गांव रोशन हो जाए।
हरिनारायण अपने प्रयासों में लगे हुए थे कि उनके दिमाग में एक आइडिया आया। उन्होंने अपनी बुलेट बाइक को एक जनरेटर में तब्दील कर दिया। अपने इस बुलेट जनरेटर से हरिनारायण अपनी जरूरतों को आसानी से पूरा कर लेते है इस जनरेटर के जरिए वो अपने आस-पास रहने वाले लोगों को भी मदद कर देते हैं।
हरिनारायण का ये अविष्कार सूखे कुंओं से पानी निकालने में भी सक्षम है, जिससे सिंचाई के लिए भी पानी उपलब्ध हो रहा है। अपने जनरेटर को बनाने के लिए हरिनारायण ने अपनी बाइक के साथ एक डाइनेमो जोड़ा है, जिसकी मदद से करीब 24 वोल्ट बिजली पैदा होती है। इसमें से 12 वोल्ट से वो अपनी बैटरी चार्ज करते हैं, जबकि 12 वोल्ट से पानी भरने जैसा काम करते हैं। उनके इस अविष्कार पर अब तक 3000 रूपए खर्च हुए हैं और इस अविष्कार के जरिए अब वे थ्री इडियट के फुंसुक वांगड़ू बन गए हैं।