आदिवासी महिलाओं की जिंदगी के लिए आईबीएम की जॉब छोड़ी
अक्टूबर 2013 की बात है आईटी सलाहकार विकास दास दुर्गा पूजा मनाने के लिए ओडिशा के बालासोर में अपने घर गए थे। दुर्गा पूजा के समय दास का घर आकर्षण का केंद्र रहता है। इस समय बहुत से लोग दिव्य देवी को देखने के लिए उनके घर के आस-पास एकत्र थे। यद्यपि विकास के माता-पिता उदारवादी थे, लेकिन उन्हें हमेशा अपने परिवार के सदस्यों द्वारा आसपास रहने वाले आदिवासी समुदाय से दुर रहने के लिए कहा गया था। एक बच्चे के रूप में उन्हे अपने माता-पिता द्वारा ‘वसुधैव कुटुम्बकम-दुनिया एक परिवार हैं’ वाली धारणा सिखाई गई पर वही दूसरी ओर उनके परिवार द्वारा आदिवासी समुदाय के साथ भेदभाव किया जा रहा है। यह देख कर मुझे बहुत खराब लगा कि हम देवी की ही प्रार्थना कर रहें और वहीं दूसरी तरफ इन लोगों का अपमान। विकास ने इस भेदभाव के मूल कारणों को जानने का फैसला किया। समय के साथ एहसास हुआ कि आदिवासी गरीब, अशिक्षित और कुपोषित हैं। इसमें कुछ महिलाऐं ऐसी है जिन्होंने अपने परिवार के लिए बहुत सारे काम किए है। इस प्रकार उन्होंने इन महिलाओं को पूरी तरह से समुदाय के उत्थान के लिए सशक्त बनाने का निर्णय लिया।
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विकास ने दूसरे गांवों में जाकर उनके साथ रहकर वहां की समस्याओं को समझने की कोशिश की। उन्होंने अपने साथियों से भी जुड़ने के लिए संपर्क किया और जल्द ही इन गांवों में उनके साथ सात लोगों की कोर टीम गांव पहुंची। शुरूआत में थोड़ी मुश्किल आई क्योंकि वहां पर पुरूषों ने कभी महिलाओं को घर से बाहर जाने और अजनबियों से बात करने की अनुमति नहीं दीं।
2014 में विकास ने अपनी जॉब छोड़कर और अपनी बचत से ‘‘वट वृक्ष सोशल इंटरप्राइज’ नाम से लॉन्च किया।
टीम ने एक छोटे आदिवासी गांव में मिलकर काम करना शुरू किया, जिसकी आबादी सिर्फ 100-200 लोग थे। उन्होंने उन महिलाओं के साथ काम करना शुरू किया जो शुरू से ही हस्तशिल्प, हर्बल और कॉस्मेटिक, हथकरघा जानती थी और शुरू से ही मेहनती थी पर उनके पास अपने उत्पाद को बेचने का कोई साधन नहीं था। इस प्रकार वट वृक्ष का पहला लक्ष्य एजेंटों और बिचौलियों को काटने और कारीगरों को उनके उत्पादो ंके लिए सही मूल्य उपलब्ध कराना था। इसके बाद आदिवासी महिलाओं को अन्य गांवों से महिला उद्यमियों से जोड़ा गया था। वट वृक्ष टीम ने महिलाओं द्वारा बनाए गए सामान को घर’-घर बेचा साथ ही लोकल मार्केट में भी उन सामानों को उतारा।
पहले उनके पास इतने पैसे भी नहीं होते थे कि वह अपना खर्चा निकाल सके। हालांकि वह अब बांस के उत्पाद बना रही है। पर आदिवासियों द्वारा उत्पादों की ज्यादा बिक्री हो इसके लिए विकास ने एक तरीका निकाला। अगर कोई भी ग्राहक इनके बनाए उत्पाद खरीदता हैं तो आपको उत्पाद के पीछे की कहानी का वर्णन करने वाली पुस्तिका मुफ्त में दी जाएगी। वट वृक्ष द्वारा उन्हें कौशल विकास के माध्यम से वस्तुओं को बनाना सिखाया और उत्पादों को बाजार प्रदान करने की कोशिश की। आज उन सभी गांवों की महिलाएं आरामदायक जीवन जी रही हैं left ibm job for the welfare of tribal women
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