मिलिए रेयान गार्मिक से, जो बनाते हैं गूगल के नए-नए डूडल
सर्च इंजन गूगल हर दिन की खासियत के हिसाब से डूडल लगाता है। सोशल मीडिया से लेकर अखबारों और टीवी तक गूगल के डूडल की चर्चा होती है। लेकिन इन डूडल्स के पीछे किसका दिमाग होता है। चलिए आपको उस शख्स से मिलवाते हैं। उनका नाम है रेयान गार्मिक। अमेरिका के रहने वाले रेयान को बचपन से ही ड्राइंग बनाने का शौक था। बचपन का ये शौक आज उनका करियर बन चुका है। इंसान की कलाकारी के शुरूआती नमूने , इन ड्राइंग्स का आज की हाई टेक्नोलॉजी से मिलन हो रहा है। आज दुनियाभर के करोड़ों लोग उनके मुरीद बन गए है। जो लोग भी गूगल के होम पेज पर डूडल की तरीफ करते हैं, वो रेयान की तारीफ करते हैं। गूगल के वो चीफ डूडलर हैं।
आज तक नहीं तलाशी दूसरी नौकरी-
उनके अंडर करीब दर्जनभर लोग काम करते हैं। जो गूगल के डूडल या उसके लोगो को बदल-बदलकर लोगों का ध्यान खींचने की कोशिश करते हैं। रेयान ने जो पहली नौकरी के लिए अप्लाई किया था वो गूगल ही थी। साल 2006 में उन्हें वेब ग्राफिक्स स्पेशलिस्ट के तौर पर नौकरी पर रखा गया। इसके बाद अब तक रेयान ने दूसरी नौकरी नहीं तलाशी।
कलाकारी दिखाने का जरिया है इंटरनेट-
रेयान का बनाया सबसे मशहूर डूडल है गूगल मैप का पेगमैन। आज भी जब गूगल स्ट्रीट व्यू की सेटिंग खोलते हैं, तो पेगमैन कूदकर आपके सामने आ जाता है। इतनी कड़ी मेहत के बाद आखिरकर रेयान को डेनिस ह्यंग की गूगल डूडल टीम में जगह मिल ही गई। डेनिस को डूडल का जनक कहा जाता है। वहां पहुंचकर रेयान को इंटरनेट की ताकत का अंदाजा हुआ। वो कहते हैं कि अगर कोई कलाकर पेंटिंग बनाता है तो वो ही उसे समझ सकता है या फिर कोई खरीददार। लेकिन अगर कोई कलाकर बाकी दुनिया से अपनी कलाकारी के जरिए बात करना चाहता है तो इंटरनेट पर डिजिटल ड्रांइग , स्केच या पेंटिंग इसका सबसे अच्छा जरिया है।
कलाकारी और तकनीकी समझ जरूरी-
वे कहते हैं कि गूगल का कामयाब डूडलर होने के लिए कोई शर्त नहीं है। बस आपको अच्छा काम करने की आदत होनी चाहिए। डूडलर के अंदर कलाकारी और तकनीकी समझ का तालमेल होना सबसे जरूरी है। गूगल के डूडल आज इस बात के लिए बदनाम हो चुके हैं कि लोग उन्हें देखने के चक्कर में काम पर ध्यान नहीं देते।
डूडल रखता है अपनी राय-
इसकी शुरूआत 1988 में हुई थी। जब गूगल के संस्थापाक लैरी पेज और सर्जेन ब्रिन मैन फेस्टिवल में जा रहे थे। वो स्केच के जरिए लोगों को बताना चाहते थे कि वो ऑफिस से बाहर हैं। इसी तरह डूडल की शुरूआत हुई गूूगल के तकनीक विशेषज्ञ एशर फेल्डमैन कहते हें कि गूगल के डूडल बिना किसी तमाशों के अपनी बात करोड़ों लोगों तक पहुंचाते हैं। वैसे कुछ डूडल बड़े मुद्दों पर अपनी राय रखते नजर आते हैं। जैसे रूस के सोची में 2014 के विंटर ओलंपिक के वक्त बनाया गया । रेयान कहते हैं कि अपनी कला के सीधे असर को दिखाने के बजाय तकनीक की मदद से उसके ज्यादा बेहतर इस्तेमाल के तरीके खोजें। तभी कंपनियों को उनकी काबिलियत और उनके बेहतर इस्तेमाल की सूझेगी।
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