Monday, September 25th, 2017 01:12:46
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9 बार पाकिस्तान में घुसकर किया था हमला, आखिरी वक्त में कह गए आंख नम करने वाली बात




9 बार पाकिस्तान में घुसकर किया था हमला, आखिरी वक्त में कह गए आंख नम करने वाली बातSocial

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आज के दिन 1965 में भारत मां के वीर सपूत ने हंसते -हंसते देश के करोड़ो लोगों को बचाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। सिंधी समुदाय की प्रथागत परंपरा है कि लोग कभी भी समुदाय और राष्ट्र के लिए खुद को कुर्बान करने में संकोच नहीं करते। इस प्रवृत्ति को हेमू कलानी ने युवाओं को देश में ब्रिटिश शासन के दिनों और स्वतंत्रता के बाद कई युवा सिंधियों की तरह शुरू किया था। के. एल. मालकानी, हरेश मसंद, कैप्टन मुरलीधर कोरहानी समेत कई सारे देश के आर्मड फोरसेस देश की सुरक्षा के लिए चीन और पाकिस्तान से युद्ध के समय अपने को न्यौछावर कर दिया था। इन दोनों देशों से युद्ध के दौरान प्रेम रामचंदानी की अहम भूमिका थी। क्या हुआ उस समय यह जानने से पहले आपको उनके जीवन का छोटा सा परिचय निम्न है।

यह थे प्रेम रामचंदानी

प्रेम रामचंदानी का जन्म सिंध में 19 अक्टूबर 1941 में हुआ था। 1948 में जब वो महज सात साल के थे उस समय भारत -पाकिस्तान के विभाजन के दौरान मुंबई शिफ्ट हो गए थे। जय हिंद कॉलेज से ग्रेजुएशन के दौरान ही उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें इंडियन एअर फोर्स में ही जाना है। अपना ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद उन्होंने एंट्रेस एग्जाम दी जिसमें वो पास हो गए। इसके बाद उन्हें जोधपुर के एयर फोर्स कॉलेज में ट्रेनिंग के लिए भेजा गया। उन्होंने अपनी पूरी ट्रेनिंग हैदराबाद में की थी। इसके बाद उन्होंने एयर फोर्स, फायटर पायलेट के तौर पर ज्वाइन किया था।

प्रेम रामचंदानी को फ्लाइंग ऑफिसर के रूप में 22 जून 1963 को कमीशन दिया गया था और 3 स्क्वाड्रन ‘‘कोब्राज’’ के साथ पोस्ट किया गया था। जिसका लक्ष्य था ‘‘लक्ष्य वैद्य’’। उन्हें सेवा संख्या 7442 और एयर क्राफ्ट ‘‘मायस्टेयर’’ का प्रभार दिया गया था। उनके साहस, बहादुर कार्रवाई और खुफिया ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया था।

इस शहीद के आखरी शब्द सुनकर आपकी आंखे भी नम हो जाएगी

18 से 22 सितम्बर तक इस वीर फाइटर पाइलट ने 9 बार पाक मे घुसकर सफलतापूर्वक मिशन को पूरा किया लेकिन दसवें हमले मे पाक गोलीबारी से उनके क्राफ्ट मे आग लग गई जिसके चलते यह वीर सैनिक बुरी तरह से झुलस गया। डाक्टरों के प्रयत्नों के बावजूद यह वीर सैनिक चार दिन बाद 26 सितम्बर 1965 को मौत से हार गए। अन्तिम क्षणों में इस वीर शहीद सैनिक के शब्द थे ‘मुझे अफसोस है कि अपने देश पर निच्छावर करने के लिए मेरे पास केवल एक जान है’। इस वीर सैनिक पर सभी भारतीयों को विशेषकर सिंधियो को बहुत गर्व है। 27 सितंबर को राष्ट्रीय सम्मान के साथ पारंपरिक हिंदू तरीके से अग्नि संस्कार किया गया था।

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